'जी रये, जागि रये धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये', आज उत्तराखंड में मनाया जा रहा है लोक पर्व हरेला

Harela Festival Uttarakhand 2025: उत्तराखंड में आज हरियाली का प्रतीक लोक पर्व हरेला मनाया जा रहा है. लोक मान्यताओं के अनुसार ये पर्व हर साल श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है.

harela-festival-uttarakhand-
Harela Festival Uttarakhand (सांकेतिक तस्वीर)

न्यूज तक

16 Jul 2025 (अपडेटेड: 16 Jul 2025, 11:52 AM)

follow google news

Harela Festival Uttarakhand 2025: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. ये प्रदेश अपनी समृद्ध और विविध संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां साल में तरह तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक प्रमुख पर्व है हरेला. इस त्यौहार को हरियाली और नवऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है. हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है. इसमें चैत्र, आषाढ़ और श्रावण शामिल है. लेकिन, श्रावण मास में मनाए जाने वाला हरेला सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि ये महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और उत्तराखंड में भगवान शिव का वास माना जाता है. 

Read more!

आज मनाया जा रहा है हरेला पर्व

उत्तराखंड में इस साल 16 जुलाई 2025 को हरेला पर्व मनाया जा रहा है. कहा जाता है कि इस दिन से उत्तराखंड में सावन माह की शुरुआत होती है. हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में ये कुछ दिन बाद या पहले शुरू होता है, जो कि देश की धार्मिक परंपराओं में विविधता को दर्शाता है.

हरियाली से जुड़ा है हरेला

हरेला पर्व को हरियाली का प्रतीक माना जाता है. इस त्यौहार के दौरन नौ दिन पहले घर या मंदिर में जौ, गेंहू, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट जैसे सात अनाजों को बांस की टोकरी (रिंगाल) में बोया जाता है. इसके बाद हर रोज सुबह इसमें पानी डाला जाता है. इस दौरान इसे सूरज की सीधी रोशनी से बचाना होता है. इसके लिए टोकरी को किसी कपड़े या पेपर से कवर किया जाता है.

कैसे पतीसना जाता है हरेला

बोए गए इन आनाजों की नवें दिन गुड़ाई की जाती है. इसके बाद दसवें दिन पौधों को काटकर ‘हरेला पतीसना’ की परंपरा निभाई जाती है. इसे तिलक व चन्दन के साथ पूजते हैं. सबसे पहले इन पौधों को देवता को चढ़ाया जाता है. इसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला पतीसना जाता है.

मिलती हैं पारंपरिक दुआएं

हरेला लगाने के दौरान घर के बुजुर्ग पारंपरिक पंक्तियां बोलते हैं, जो इस प्रकार हैं:

'जी रये, जागि रये..धरती जस आगव,
आकाश जस चाकव है जये..
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो..
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये,
जांठि टेकि झाड़ जाये' कहीं जाती हैं.

एकता का प्रतीक है हरेला

मान्यता है कि हरेला पर्व तब तक एक ही स्थान पर बोया जाता है जब तक परिवार का विभाजन न हो जाए. इसके बाद ही इसे अलग-अलग बोया जाता है. इस तरह ये त्योहार पारिवारिक एकता को बनाए रखने का संदेश देता है.

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की मुलाकात, उत्तराखण्ड के विकास पर हुई चर्चा

    follow google newsfollow whatsapp