देसी जुगाड़ ऐसा की 1 रुपए में बनेगा घर का खाना, इस आविष्कार को देख आप भी कहेंगे कमाल

इन्द्र मोहन

अबतक आपने बहुत सारे चूल्हों को देखा होगा, इससे पहले आपने या तो लकड़ी के चूल्हे का प्रयोग किया होगा या बिजली का चूल्हा का या फिर कोयले का चूल्हे का... लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जुगाड़ चूल्हा दिखाएंगे जिससे आप एक बार मात्र एक रुपए के खर्च कर अपने पूरे परिवार का खाना बना सकते हैं.

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अबतक आपने बहुत सारे चूल्हों को देखा होगा, इससे पहले आपने या तो लकड़ी के चूल्हे का प्रयोग किया होगा या बिजली का चूल्हा का या फिर कोयले का चूल्हे का... लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जुगाड़ चूल्हा दिखाएंगे जिससे आप एक बार मात्र एक रुपए के खर्च कर अपने पूरे परिवार का खाना बना सकते हैं, सुनकर आपको अजूबा लग रहा होगा. लेकिन अशोक ठाकुर की इस मेहनत को सलाम करिए. अशोक ठाकुर लोहे का काम करते हैं लेकिन अनुभव से ऐसा कमाल किया की 1 रुपए के खर्च में परिवार का एक समय का खाना बन जाए. 

सिर्फ 1 रुपए है खर्च

मोतिहारी मिस्कॉट मोहल्ले के रहने वाले अशोक ठाकुर की एक छोटी सी दुकान मीना बाजार में है और यही पर वे छोटे मोटे प्रयोग करते रहते हैं. लोगों का काम करके अपना और अपने पूरे परिवार का भरण पोषण करते है. इसी कड़ी में जब गैस की महंगाई चरम पर चली गई तो इन्होंने एक देशी जुगाड़ से देशी चूल्हे की खोज की और इस चूल्हे ने इन्हें राष्ट्रपति तक से सम्मानित होने का मौका दे किया. इस चूल्हे की कीमत मात्र आठ सौ रुपए है और इसपर आप अपने घर के लोगों का खाना मात्र एक रुपए में तो बना ही सकते हैं साथ में अपने मवेशियों के लिए दाना बना सकते हैं. और तो और जाड़े के दिनों में तप सकते हैं वो भी मात्र एक रुपए में. 

कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं चूल्हे का 

सातवीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ देने वाले अशोक पारम्परिक चूल्हे बनाते थे, उनमें धान की भूसी ईंधन के रूप में ज़्यादा समय के लिए कामयाब नहीं थी. इसलिए उन्होंने इस चूल्हे को मॉडिफाई करके भूसी के चूल्हे का रूप दिया. इस चूल्हे की खासियत यह है कि इसे कहीं भी लाया-ले जाया सकता है, क्योंकि, इसका वजन सिर्फ 4 किलो है. इसमें धान की एक किलो भूसी लगभग एक घंटे तक जल सकती है. यह चूल्हा धुंआ-रहित है और इसे कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है. 

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कृषि विभाग देता है चूल्हे पर सब्सिडी

कृषि विभाग इस चूल्हे के खरीदने पर किसानों को सब्सिडी पर देता है जिससे कि भूसा का प्रयोग कर किसान अपने घर के लोगों के लिए ईंधन की व्यवस्था कर सके. वो भी काफी कम कीमत पर. बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मोतिहारी के रहने वाले 50 वर्षीय अशोक ठाकुर ऐसे ही लोगों की फ़ेहरिस्त में शामिल हैं, जिन्होंने अपने जुगाड़ से कमाल कर दिया. लोहे का काम करने वाले अशोक ने कभी भी नहीं सोचा था कि उन्हें कभी अपने एक जुगाड़ के चलते ‘इनोवेटर’ कहलाने का मौका मिलेगा. यह संभव हो पाया है तो बस एक अलग नजरिये से. जिसने कचरे से खजाना खोज लिया है.

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