पद्म अवॉर्ड: मुजफ्फरपुर की निर्मला देवी को सुजनी कला के लिए मिला सम्मान, जानिए क्या है?

आशीष अभिनव

निर्मला देवी ने सुजनी कढ़ाई को जीआई टैग दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई. उनकी कलाकृतियां आज भारत के कई प्रमुख म्यूजियम और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का हिस्सा हैं.

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Sujani Kala: मुजफ्फरपुर की रहने वाली 75 वर्षीय निर्मला देवी का नाम इस बार पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है. यह सम्मान उन्हें सुजनी कला के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिया जा रहा है. उनके चयन से न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे गांव में खुशी का माहौल है. पिछले 39 वर्षों से निर्मला देवी इस पारंपरिक कला को सहेजने और संवारने का कार्य कर रही हैं.  

सुजनी कला को नया जीवन देने का सफर

निर्मला देवी ने बिहार की सुजनी कढ़ाई जैसी प्राचीन कला को न केवल पुनर्जीवित किया, बल्कि इसे शहरी और वैश्विक बाजारों तक पहुंचाया. सुजनी कढ़ाई की शुरुआत पुराने कपड़ों से की गई थी, जिन पर महिलाएं अपने हाथों से मछली, घर, फूल जैसी आकृतियां काढ़ती थीं. इसे नवजात शिशुओं को लपेटने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. समय के साथ, इस कला को आधुनिक स्वरूप दिया गया और इसका इस्तेमाल कुशन कवर, लेटर होल्डर, कढ़ाई वाले कुर्ते और साड़ियां बनाने में होने लगा.  

1000 से अधिक महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर 

निर्मला देवी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इस कला को सहेजने और इसके माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में समर्पित किया. उन्होंने भूसरा महिला विकास समिति की स्थापना की और इसके माध्यम से 15 से अधिक गांवों की 1000 से ज्यादा महिलाओं को सुजनी कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया. उनके इस प्रयास से न केवल ग्रामीण महिलाओं को आजीविका मिली, बल्कि यह कला बिहार की पहचान बन गई.  

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वैश्विक स्तर पर पहुंचाई सुजनी कढ़ाई  

निर्मला देवी ने सुजनी कढ़ाई को जीआई टैग दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई. उनकी कलाकृतियां आज भारत के कई प्रमुख म्यूजियम और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का हिस्सा हैं. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दिया कि स्थानीय शिल्प कला भी वैश्विक पहचान बना सकती है.  

निर्मला देवी की प्रतिक्रिया  

पद्म श्री के लिए चयनित होने पर निर्मला देवी ने अपनी खुशी साझा करते हुए कहा, "यह मेरे लिए और पूरे गांव के लिए गर्व का क्षण है. मैंने जो सपना देखा था, उसे साकार करने में मुझे सबका सहयोग मिला. मैं चाहती हूं कि यह कला आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहे और इसे और ऊंचाई पर ले जाया जाए." 

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