क्या बिहार में हो रही है 'वोटबंदी'? चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर उठे सवाल, योगेंद्र यादव ने जताई चिंता

न्यूज तक

बिहार में चुनाव आयोग की नई मतदाता जांच प्रक्रिया पर विवाद गहराया है, जिसमें लाखों लोगों के मताधिकार छिनने का खतरा बताया जा रहा है।.योगेंद्र यादव ने इसे ''वोटबंदी" करार देते हुए लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया है.

ADVERTISEMENT

Bihar Election
Bihar Election
social share
google news

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एक नई बहस ने तूल पकड़ लिया है. मुद्दा है मतदाता सूची से जुड़ा, जिसे लेकर विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंताएं गहराती जा रही हैं. दरअसल चुनाव आयोग की हालिया कार्रवाई पर इंडिया गठबंधन के कई नेताओं ने सवाल खड़े किए हैं. खासतौर पर भारत जोड़ो अभियान से जुड़े योगेंद्र यादव ने इसे "वोटबंदी" जैसा करार दिया है. उनका कहना है कि ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो लाखों लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर सकती है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या वाकई बिहार में 2 करोड़ वोटरों के नाम काटे जाएंगे. इस मुद्दे पर मिलिंद खांडेकर (इंडिया टुडे के Tak Channels के मैनेजिंग एडिटर) ने भारत जोड़ो अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव से विस्तार से चर्चा की. उनका मानना है कि चुनाव आयोग जो प्रक्रिया अपना रही है वो "वोटबंदी" के समान है और यह लाखों योग्य मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है.

चुनाव आयोग का तर्क बनाम जमीनी हकीकत

चुनाव आयोग का कहना है कि महाराष्ट्र चुनाव के बाद धांधली के आरोपों के चलते बिहार में मतदाता सूची की गहन जांच की जा रही है. उनका तर्क है कि 8 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 5 करोड़ (4.96 करोड़) को किसी नए प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके नाम 2003 की सूची में थे.

यह भी पढ़ें...

हालांकि, योगेंद्र यादव इस तर्क को सिरे से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि:

हर व्यक्ति को फॉर्म भरना होगा. चुनाव आयोग के दावों के विपरीत योगेंद्र यादव जोर देते हैं कि बिहार के हर मतदाता को नया फॉर्म भरना होगा, जिसमें फोटो और हस्ताक्षर सहित अपनी डिटेल्स देनी होंगी. 2003 के मतदाताओं के लिए केवल इतनी छूट है कि उन्हें जन्म प्रमाण पत्र नहीं देना होगा, बल्कि 2003 की मतदाता सूची की फोटोकॉपी लगानी होगी.

"5 करोड़" का आंकड़ा भ्रामक: यादव बताते हैं कि 2003 में 4.96 करोड़ मतदाता थे, लेकिन उनमें से 1.10 करोड़ की मृत्यु हो चुकी है और लगभग 90 लाख लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं. इसलिए, वास्तव में 2003 की सूची से जुड़े जीवित और मौजूदा मतदाताओं की संख्या केवल 3.15 करोड़ के आसपास है. इसका मतलब है कि शेष लगभग पौने पांच करोड़ लोगों को जन्म प्रमाण पत्र सहित अन्य दस्तावेज जमा करने होंगे.

दस्तावेजों की उपलब्धता: योगेंद्र यादव के अनुसार चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे कई दस्तावेज, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और भूमि आवंटन प्रमाण पत्र, बिहार की ज्यादातर आबादी के पास उपलब्ध नहीं हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि बिहार में केवल 2.8% लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र है, और केवल 16% लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र है.

आधार और EPIC की अनदेखी: सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग ने आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड और यहां तक कि अपने खुद के इलेक्शन फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) जैसे सामान्य पहचान पत्रों को भी अमान्य कर दिया है, जो कि अधिकांश भारतीयों के पास होते हैं.

"नोटबंदी" और "वोटबंदी" में समानता

योगेंद्र यादव ने इस पूरी प्रक्रिया को नोटबंदी से जोड़ते हुए कहा, 'जैसे नोटबंदी में कम समय में घोषणा की गई थी, वैसे ही चुनाव आयोग ने 24 जुलाई की शाम को नोटिस जारी किया कि 25 जुलाई की सुबह से बिहार में यह अभियान शुरू हो जाएगा, जिससे लोगों को तैयारी का पर्याप्त समय नहीं मिला.

उन्होंने आगे कहा कि नोटबंदी की तरह, इस अभियान में भी नियमों और स्पष्टीकरणों में लगातार बदलाव हो रहे हैं, जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है. यादव के अनुसार, जैसे नोटबंदी में पहले "दवाई" तलाशी गई और बाद में बीमारी, उसी तरह यहां भी पहले यह अभियान शुरू कर दिया गया और अब चुनाव आयोग नए-नए कारण (जैसे डुप्लीकेशन रोकना, अवैध प्रवासियों को हटाना) गिना रहा है.

प्रवासियों पर भी खतरा

योगेंद्र यादव ने बताया कि चुनाव आयोग का ध्यान प्रवासियों पर भी है. मुख्य चुनाव आयुक्त ने कथित तौर पर कहा है कि बिहार में 20% लोग प्रवासी पाए जाएंगे और उनके नाम काटे जाएंगे. यह उन लाखों लोगों के लिए चिंता का विषय है जो काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में रहते हैं लेकिन अपने मूल निवास पर वोट देते हैं. पहले कानून उन्हें इसकी अनुमति देता था, लेकिन अब चुनाव आयोग खुद यह तय करेगा कि किसी व्यक्ति का "साधारण निवास स्थान" क्या है.

लोकतंत्र के लिए खतरा

योगेंद्र यादव ने इस पूरी कवायद को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बताया है. उनका कहना है कि पिछले 75 सालों से चुनाव आयोग का लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को मतदाता सूची में शामिल करना रहा है, लेकिन अब इसके विपरीत कम से कम लोगों को शामिल करने के बहाने ढूंढे जा रहे हैं. उन्होंने इसे 19वीं सदी के अमेरिका के "दक्षिण अमेरिका" (अमेरिकन साउथ) में अश्वेत लोगों को मताधिकार से वंचित करने की रणनीति के समान बताया, जहां कानूनी रूप से भेदभाव खत्म होने के बावजूद, विभिन्न प्रमाण पत्रों की मांग करके उन्हें वोट देने से रोका जाता था.

यह अभियान न केवल चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि एक संवैधानिक संस्था किस तरह से नागरिक अधिकारों के हनन का कारण बन सकती है. बिहार में चल रहा यह अभियान, चाहे जानबूझकर हो या अक्षमता के कारण, अगर लाखों लोगों को उनके मताधिकार से वंचित करता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा.
 

 

    follow on google news
    follow on whatsapp