जानिए जामा मस्जिद के शाही इमामों का सियासी कनेक्शन, नए इमाम सैयद शाबान बुखारी का क्या होगा रुख?
जामा मस्जिद की 400 साल से ये परम्परा चली आ रही है कि इमामों ने जीवनकाल में ही अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की है.
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Syed Shaban Bukhari: दिल्ली की जामा मस्जिद में बदलाव का नया दौर शुरू हुआ है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक नौजवान शाही इमाम बना है. सैयद शाबान बुखारी ने जामा मस्जिद की सबसे बड़ी पदवी संभाली है. करीब 400 साल पुरानी मुगलों के जमाने की दिल्ली की जामा मस्जिद के सबसे नौजवान फेस हैं शाबान बुखारी. 29 साल के शाबान जामा मस्जिद के 14वें इमाम बने. शाबान बुखारी को जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने उत्तराधिकारी चुना है. शाबान को 2014 में पिता ने पहली जिम्मेदारी नायाब इमाम बनाकर दी थी. तब से उनकी ट्रेनिंग चल रही थी. अब प्रमोशन हुआ है. वैसे तो उनके पिता अहमद बुखारी एक्टिव तो रहेंगे लेकिन शाबान 'शाही इमाम' के फेस भी हैं और फैसले लेने के काबिल भी.
400 साल से चली आ रही है परम्परा
जामा मस्जिद की 400 साल से ये परम्परा चली आ रही है कि इमामों ने जीवनकाल में ही अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की है. सैयद अहमद बुखारी के पिता सैयद अब्दुल्ला बुखारी जामा मस्जिद के 12वें इमाम रहे. 2009 में 87 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. उन्होंने भी अपने जीवन काल में 2000 में अपने बेटे सैयद अहमद बुखारी को शाही इमाम बनाया था. इसी परम्परा पर चलते हुए सैयद अहमद बुखारी ने अपने छोटे बेटे शाबान को पगड़ी पहनाने की दस्तारबंदी रस्म पूरी की.
कौन हैं शाबान अहमद बुखारी?
1995 में पैदा हुए शाबान, सैयद अहमद बुखारी की सबसे छोटी संतान हैं. शाबान ने शुरूआती पढ़ाई मदरसा और दारुल उलूम देवबंद से की. उन्होंने मास्टर्स डिग्री नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी से ली है. दिलचस्प बात ये है कि, मुसलमानों की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक के हेड बने शाबान ने 2015 में गाजियाबाद की एक हिंदू लड़की से शादी की थी. वैसे तो परिवार ने शुरू में विरोध किया था लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद रजामंदी से शादी भी कराई. आज शाबान के परिवार में पत्नी शाजिया और दो बच्चे हैं.
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शाही इमाम का हमेशा रहा है राजनीतिक कनेक्शन
जामा मस्जिद का इमाम बनना काम तो धर्म-कर्म का है लेकिन जामा मस्जिद का ये भी इतिहास रहा है कि, इमामों ने खुद को राजनीति और चुनावों से काभी अलग नहीं रखा है. पॉलिटिकल गाइड और फिलॉसफर बनकर मुसलमानों को बताते रहे कि, चुनावों में क्या करना है. पिछले 5 दशक से ये सिलसिला चला आ रहा है. इसकी शुरूआत 1977 में शाबान के दादा अब्दुल्ला बुखारी ने की थी. ये संभव है कि जो शाबान बुखारी ने बाप-दादा ने किया वैसा ही कुछ वो भी करेंगे. मुसलमानों को बताएंगे कि 2024 में चुनाव में क्या लाइन लेनी है. कांग्रेस या बीजेपी-किसका समर्थन करना है, किसका विरोध. समर्थन या विरोध नहीं करके अगर न्यूट्रल भी रहना है तो ये भी बताया जाएगा. चुनावी फरमान माना ही जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं. जिसका समर्थन किया वो जीत जाएगा, इसकी भी गारंटी नहीं रही है.
कांग्रेस-बीजेपी दोनों से रहे है संबंध
अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग पार्टियों का सुविधानुसार समर्थन या विरोध यही जामा मस्जिद की राजनीति रही है. न कांग्रेस से स्थाई दोस्ती रही, बीजेपी से स्थाई दुश्मनी. राजनीतिक पसंद-नापसंद के हिसाब से मुसलमानों को बताते रहे कि, किसके लिए वोट करना है. सबसे पहले 1977 के चुनाव में शाही इमाम ने इंदिरा गांधी के खिलाफ वोट करने की अपील की थी. नसबंदी के कारण इंदिरा गांधी से नाराजगी थी. 2004 में शाही इमाम ने मुसलमानों से बीजेपी का समर्थन करने की अपील की थी. चुनावों में समर्थन के लिए शाही इमाम के पास इंदिरा गांधी भी आती रहीं और और सोनिया गांधी भी. 2014 के चुनावों से पहले सोनिया गांधी ने जामा मस्जिद जाकर शाही इमाम अहमद बुखारी से मुलाकात भी की थी. अहमद बुखारी ने मुसलमानों से कांग्रेस का समर्थन करने की अपील भी लेकिन चुनाव में कांग्रेस की हार, बीजेपी की जीत हुई थी.
पिछले चुनाव में न्यूट्रल रहे थे बुखारी
2019 के चुनावों में जामा मस्जिद न्यूट्रल रही. शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी ने कहा कि न किसी पार्टी को समर्थन नहीं देंगे, न किसी के लिए अपील करेंगे.तब भी कांग्रेस की हार, बीजेपी की जीत हुई. 2015 में अहमद बुखारी ने दिल्ली के चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन करने की अपील की थी लेकिन आप ने ही समर्थन ठुकरा दिया. 2012 में सपा के लिए वोट की अपील की लेकिन 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव में शाही इमाम ने सपा के खिलाफ मायावती की बीएसपी का समर्थन करने की अपील जारी की थी.
अब ये भी जान लीजिए कि क्या है जामा मस्जिद का इतिहास
1650 के दशक में मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में जामा मस्जिद बनवाई थी. 400 साल से बुखारी परिवार के वंशज ही जामा मस्जिद के शाही इमाम बनते चले आए हैं. मुगल साम्राज्य खत्म हो गया. सरकार वाले सिस्टम में शाही इमाम जैसा कुछ पद बना नहीं लेकिन बुखारी परिवार शाही इमाम वाला सिस्टम चला रहा है. जामा मस्जिद की निगरानी दिल्ली वक्फ बोर्ड करता है लेकिन जामा मस्जिद में सिस्टम और नियम बुखारी परिवार के हिसाब से ही चलते हैं.