आर्टिकल 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में हो रहा पहला बड़ा चुनाव, जानिए 2019 से अब तक क्या-क्या बदला  

News Tak Desk

ADVERTISEMENT

NewsTak
social share
google news

Jammu-Kashmir Election: 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा बदलाव हुआ. साल 1954 से संविधान के आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे को इस दिन समाप्त कर दिया गया. जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा भी छिन लिया गया और उसे एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. तब से लेकर अब तक प्रदेश में विधानसभा या लोकसभा का कोई चुनाव नहीं हुआ था. अब जाकर लोकसभा का चुनाव हो रहा है. जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें है. सात चरणों में होने वाले इस लोकसभा चुनाव के चार चरण संपन्न हो चुके है जिसमें प्रदेश की 4 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बारामूला में वोटिंग होनी अभी बाकी है जो 20 मई को होगी. वैसे इस चुनाव में दिलचस्प बात ये रही कि बड़ी संख्या में वोटर बाहर निकले और मतदान किया जो इससे पहले के चुनावों में विरले ही देखने को मिला है. 

आर्टिकल 370 के हटने के बाद यह पहला बड़ा मौका है जब इतने बड़े पैमाने पर जम्मू-कश्मीर चुनाव हो रहे है. वैसे इससे पहले तो कश्मीर में चुनाव एक दहशत भरी कहनी से कम नहीं रहा है. कभी आतंकवादियों से चुनाव न कराने की धमकी मिलना तो कभी लोगों के विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी की खबरें आना यहां की आम बात थी. हालांकि इस चुनाव में कुछ अलग देखने को मिला है. प्रदेश में बिना किसी दहशत और झड़प के जबरदस्त मतदान देखने को मिला. चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक कश्मीर घाटी में 38.49 फीसदी मतदान हुआ जो ऐतिहासिक है. आइए आपको हम बताते हैं कि, 2019 के बाद से 2024 तक जम्मू-कश्मीर में ऐसे क्या बदलाव हुए जिसके ऐसे नतीजे देखने को मिल रहे है.    

- मतदान में वोटरों की बढ़ती भागीदारी- जम्मू-कश्मीर की एकमात्र श्रीनगर सीट पर 38.49 फीसदी मतदान हुआ जो 1996 के बाद सर्वाधिक है. बता दें कि, साल 1996 में यह  40.94 फीसदी था. 2019 और 2014 के पिछले दो लोकसभा चुनावों में, श्रीनगर में मतदान प्रतिशत 14.43 और 25.86 फीसदी था. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में  ये पहला चुनाव है और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सितंबर के अंत में विधानसभा और नगर निकाय के चुनाव भी होने है.

स्थानीय दलों की बढ़ती भूमिका- देशभर की तरह जम्मू-कश्मीर में बीजेपी उतना मजबूत नहीं है. बीजेपी के यहां कमजोर होने का फायदा उठाने का मौका प्रदेश के स्थानीय दलों के पास है. नेशनल कांफ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), अपनी पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस जैसे स्थानीय दलों के लिए खुला मैदान है. हालांकि चुनाव के नतीजों में ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर जीत किसकी होती है. 

- जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने इस चुनाव में एक नई रणनीति के तहत मैदान में आई है. पार्टी ने श्रीनगर से उमर अब्दुल्ला, बारामूला से रुहुल्लाह मेहदी और आनंतनाग-राजौरी से मियां अलताफ को उम्मीदवार बनाया है. पार्टी ने स्थानीय मजबूत उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर इस चुनाव को जबरदस्त बना दिया है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी जो अपनी चुनावी रणनीति के लिए जानी जाती है. उसने इस बार कश्मीर घाटी की तीनों सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है जो प्रदेश में उसकी स्थिति को साफ तौर पर दिखाता है. 

ADVERTISEMENT

जम्मू-कश्मीर के लोगों ने चुनाव बहिष्कार के नारे, आतंकवादियों की धमकियां और प्रदर्शन रैलियों की जगह लोकतंत्र में अपने भागीदारी से पूरा सिस्टम ही बदल दिया है. राजनीति में बढ़ती युवाओं की भागीदारी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति रुझान ने प्रदेश में चुनाव के लिए एक नए कलेवर को दिखाया है. हालांकि ये कितना सफल हो पता है ये तो देखने वाली बात होगी. 

इस स्टोरी को न्यूजतक के साथ इंटर्नशिप कर रहे IIMC के रेडियो टेलीविजन विभाग के छात्र देवशीष शेखावत ने लिखा है.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT