अरविंद केजरीवाल क्यों देने जा रहे इस्तीफा? BJP का दबाव या करप्शन में घिरी AAP का मास्टर स्ट्रोक, विस्तार से समझिए
केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही जो दांव चला उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. जब जेल में रहते हुए उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया तो जेल से बाहर आते ही अचानक ये फैसला क्यों?
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न्यूज़ हाइलाइट्स
अरविंद केजरीवाल 17 सितंबर को अपना इस्तीफा सौंपेंगे.
अब देखना ये है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
तिहाड़ जेल से 177 दिन बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जमानत पर बाहर आए और BJP उनके इस्तीफे की मांग को लेकर हमलावर हो गई. अरविंद केजरीवाल जबसे शराब नीति घोटाले के आरोपी बनाए गए हैं, तभी से इनके इस्तीफे की मांग की जा रही है. हालांकि केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही जो दांव चला उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. जब जेल में रहते हुए उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया तो जेल से बाहर आते ही अचानक ये फैसला क्यों?
फैसले के पीछे सबसे बड़ा कारण सशर्त जमानत बताया जा रहा है, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते. किसी सरकारी फाइल पर साइन नहीं कर सकते, केस से जुड़ा कोई सार्वजनिक बयान नहीं दे सकते और केवल उन्हीं फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जो उपराज्यपाल के पास जानी हैं.
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शक्तियों को जमानत की शर्तों ने सीमित कर दी हैं. उधर शराब नीति घोटाले में भ्रष्टाचार का दाग भी है. तो क्या इस दाग को हटाने से लेकर सत्ता विरोधी लहर को बदलने के लिए और विपक्षी खेमे में भाजपा विरोधी लहर का फायदा उठाने के लिए केजरीवाल ने खुद को इस लिटमस टेस्ट में झोंक दिया?
जनता न्याय करेगी तो कुर्सी पर बैठूंगा- केजरीवाल
इधर केजरीवाल ने इस्तीफा देने की बात कह ये भी कहा कि 'जब तक जनता अपना फैसला नहीं सुना देती, मैं कुर्सी पर नहीं बैठूंगा. मुझे कानूनी अदालत से न्याय मिला है, अब मुझे जनता की अदालत से न्याय मिलेगा. मैं जनता के आदेश के बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा.' तो क्या बीजेपी के इस्तीफे वाले स्पिन बॉल पर अरविंद केजरीवाल ने छक्का जड़ दिया?
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'अप्रत्याशित' राजनीति में केजरीवाल भी हैं माहिर
सियासी जानकारों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में 'अप्रत्याशित' सोचने और उसे अंजाम देने की कला में महारत हासिल कर ली है. यह एक ऐसी कला है जिसके लिए मौजूदा मोदी-शाह शासन के तहत भारतीय जनता पार्टी जानी जाती है.
AAP सूत्र ने इंडिया टुडे को बताया- "दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा देने का फैसला खुद अरविंद केजरीवाल ने लिया. उन्होंने तिहाड़ जेल के अंदर ही पूरी योजना बनाई थी." आप प्रमुख ने शनिवार को बंद कमरे में हुई बैठक में दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा देने के अपने फैसले की घोषणा की. इस बैठक में आप के चुनिंदा पांच से छह नेता शामिल थे, जहां केजरीवाल ने पद छोड़ने का संकल्प सबके सामने रखा था.
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सुप्रीम कोर्ट की पाबंदिया के बीच केजरीवाल कैसे देंगे इस्तीफा?
सवाल ये भी है कि जमानत की शर्तों के मुताबिक अरविंद केजरीवाल को दफ्तर जाने, फाइलें देखने और उनपर दस्तखत करने की पाबंदी है. ऐसे में वे इस्तीफा कैसे दे पाएंगे. मामले पर संविधान विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट में वकील आरके सिंह का कहना है कि कैंप ऑफिस में सारी स्टेशनरी मौजूद रहती है. इस्तीफे का कोई सेट प्रोफार्मा नहीं होता. यानी वो इस्तीफा दे सकते हैं. इसमें सुप्रीम कोर्ट की पाबंदिया आड़े नहीं आ सकती.
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तो क्या पार्टी स्तर के कामों में करेंगे फोकस
माना जा रहा है कि सरकारी कामों में न उलझते हुए अरविंद केजरीवाल पार्टी के संगठनात्मक कार्यों पर फोकस करेंगे. फिलहाल उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी में होने हैं. अरविंद केजरीवाल की कोशिश है कि ये चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र चुनाव के साथ हो जाए. इधर हरियाणा चुनाव में काम करने के साथ वे दिल्ली चुनाव की तैयारियों पर फोकस करेंगे और सत्ता में रहते हुए जो सत्ता विरोधी लहर है उसे सत्ता छोड़कर भावनात्मक सपोर्ट में बदलने की कोशिश करेंगे. ध्यान देने वाली बात है कि केजरीवाल दिसंबर 2013 से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. उनकी पार्टी बीच में (2014-2015) एक साल छोड़कर लगातार सत्ता में रही है. ऐसे में सत्ता विरोधी लहर आम आदमी पार्टी के चुनौती है.
विपक्ष के भाजपा विरोधी शोर का भी मिल सकता है लाभ
राजनैतिक विशेषज्ञों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद मौजूदा राजनीतिक माहौल में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ असंतोष की भावना बढ़ रही है. हरियाणा के बाद महाराष्ट्र चुनाव के दौरान दिल्ली के चुनाव हो गए तो बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के विरोधी शोर का बल AAP को मिलेगा.
राष्ट्रपति शासन से बचना भी एक वजह?
जब अरविंद केजरीवाल जेल में थे तब भाजपा के कई नेताओं ने दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी. इसमें तर्क दिया जा रहा था कि जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री सरकार के दैनिक कामकाज को करने में विफल हैं. जमानत पर रिहा होने के बाद भी शर्तों का हवाला देकर बीजेपी फिर दिल्ली में राट्रपति शासन की मांग कर सकती है. वहीं केजरीवाल के इस्तीफे के बाद पार्टी का कोई नेता सीएम बन सकता है जिससे इस जोखिम से बचा जा सकता है.
गौरतलब है कि शराब नीति केस में अरविंद केजरीवाल 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार हुए थे. 177 दिन बाद 13 सितंबर को उनकी रिहाई हुई है. पार्टी के सांसद संजय सिंह 4 अक्टूबर 2024 को गिरफ्तार हुए थे और 181 दिन बाद 3 अप्रैल को जमानत पर छूटे थे. मनीष सिसोदिया 26 फरवरी 2024 को गिरफ्तार हुए थे और 510 दिन बाद 9 अगस्त को छूटे थे. वहीं के कविता 15 मार्च को गिरफ्तार हुई थीं और 27 अगस्त को उनको जमानत मिली थी.
अन्ना आंदोलन से जन्मी AAP पर करप्शन का दाग कैसे धुलेगा?
आम आदमी पार्टी जो अन्ना आंदोलन के बाद जन्मी थी. भष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़कर आई और दिल्ली वालों ने उन्हें सत्ता सौंप दी. अब जब पार्टी भ्रष्टाचार के आरोप में फंसी है, पार्टी के टॉप लीडर शराब नीति केस में जमानत पर हैं, पार्टी सत्ता में है और बीजेपी करप्शन को लेकर उसपर खूब हमलावर है. लोकसभा चुनाव में AAP को दिल्ली में एक झटका भी मिल चुका है. दिल्ली की 7 सीटों पर आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. इन सब चुनौतियों के बीच अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.
इनपुट: अमित बी. , संजय शर्मा
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