इतिहास और बौद्ध धर्म का संगम है सारनाथ, जानें इससे जुड़े सभी रहस्य
सारनाथ न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां कई रहस्य भी छिपे हुए हैं. यह स्थान आपको इतिहास के पन्नों को पलटने का अवसर देता है और आत्मिक जागरण की राह दिखाता है.
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वाराणसी की पवित्र धरती से कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. यह वही स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे "धम्मचक्र प्रवर्तन" के नाम से जाना जाता है. सारनाथ की यात्रा आपको इतिहास के गलियारों में ले चलती है, जहां शांत वातावरण और प्राचीन स्मारक आत्मिक जागरण का अनुभव कराते हैं.
सारनाथ न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां कई रहस्य भी छिपे हुए हैं.
धमेख स्तूप
यह 25 मीटर ऊँचा स्तंभ, बलुआ पत्थर से बना है और इस पर चक्र और सिंह की मूर्तियां अंकित हैं. स्तंभ के शीर्ष पर मौजूद सिंहों की मूर्तियां, 4 दिशाओं में मुख किए हुए हैं, जो बौद्ध धर्म के प्रचार को दर्शाते हैं. स्तंभ के निचले भाग में ब्राह्मी लिपि में अशोक के शिलालेख हैं, जो बौद्ध धर्म के नीति-नियमों का वर्णन करते हैं. कहा जाता है कि धमेख स्तूप यहां का सबसे आकर्षक स्तूप है.
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अशोक स्तंभ
सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ, भारत के राष्ट्रीय चिन्ह का प्रारूप है. इसकी प्रारंभिक उंचाई 55 फीट थी. जोकि आज 7 फीट 9 इंच की रह गई है. स्तंभ, बलुआ पत्थर से बना है और इस पर चक्र और सिंहों की मूर्तियाँ अंकित हैं. स्तंभ के शीर्ष पर चार सिंह, चार दिशाओं में मुख किए हुए हैं, जो बौद्ध धर्म के प्रचार को दर्शाते हैं. स्तंभ के निचले भाग में ब्राह्मी लिपि में अशोक के शिलालेख हैं, जो बौद्ध धर्म के नीति-नियमों का वर्णन करते हैं.
चौखंडी स्तूप
यह ईंटों से बना एक विशाल स्तूप है. माना जाता है कि भगवान बुद्ध के चार प्रमुख शिष्यों - सारिपुत्र, महामोग्गल्लान, आनंद और उपालि - के अवशेष यहां रखे गए हैं. स्तूप के चारों ओर चार छोटे स्तूप भी हैं, जो इन शिष्यों का प्रतीक माने जाते हैं.
मूलगंध कुटी विहार
यह मंदिर उस स्थान पर बना है, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद छह वर्षों तक निवास किया था. मंदिर में भव्य प्रतिमा स्थापित है. मंदिर में शांत वातावरण है जहां आत्मिक सुकून मिलता है.
आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है वातावरण
सारनाथ की यात्रा सिर्फ दर्शनीय स्थलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां का शांत वातावरण आत्मिक ऊर्जा से भरपूर है. सुबह के समय मंदिरों से आती हुई भक्तिमय धुन और शाम ढलते समय दीपों की जगमगाहट मन को शांति प्रदान करती है. यहां घूमते हुए इतिहास की गूंज सुनाई देती है और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों पर मनन करने का अवसर मिलता है. सारनाथ की यात्रा इतिहास प्रेमियों, आध्यात्मिक साधकों और शांति की तलाश करने वालों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकती है. यह स्थान आपको इतिहास के पन्नों को पलटने का अवसर देता है और आत्मिक जागरण की राह दिखाता है.
कैसे पहुंचे?
सारनाथ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है, जब मौसम सुहावना रहता है. वाराणसी से सारनाथ तक आसानी से बस या टैक्सी मिल जाती है. सारनाथ में रहने के लिए विभिन्न बजट के अनुसार होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं.