बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) शुरू हो चुका है. 25 जून से 26 जुलाई तक चलने वाले इस अभियान का पहला चरण तो पूरा हो गया है, लेकिन इस बीच ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है.
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दरअसल, गैर सरकारी संगठन "एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स" (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं. याचिका में चुनाव आयोग (ECI) के 24 मई को जारी आदेश को "मनमाना" बताया गया है और कहा गया है कि इससे लाखों लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.
विपक्षी दल भी नाराज
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है. माना जा रहा है कि आने वाले हफ्तों में और भी याचिकाएं दाखिल की जा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के बाद शुरू होने की उम्मीद है.
क्या है ADR की दलील?
ADR का कहना है कि ECI ने बिना किसी ठोस आधार के मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का आदेश दिया है. इसमें नागरिकता का प्रमाण देने की भी शर्त जोड़ी गई है, जिससे उन लोगों के वोट कट सकते हैं जो कागज़ पूरे नहीं दे पाएंगे.
बड़ी तैयारी में चुनाव आयोग
इस अभियान के लिए चुनाव आयोग ने 77 हजार से ज्यादा बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) की तैनाती की है. ये BLO दूसरे सरकारी कर्मचारियों और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बिहार के करीब 7.8 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं के दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं.
हालांकि, पहले सभी मतदाताओं को जरूरी दस्तावेज़ जमा करना अनिवार्य था लेकिन बाद में चुनाव आयोग ने कुछ शर्तों में बदलाव किए हैं.
मुद्दा क्या है?
मुख्य विवाद इस बात को लेकर है कि क्या नागरिकता का सबूत मांगना सही है? और क्या इससे आम लोगों का वोट काटने का खतरा बढ़ गया है? ADR और कई राजनीतिक दलों को लगता है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और लाखों लोग अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं.
अब देखना ये होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है। चुनाव से पहले इस फैसले का सीधा असर बिहार की राजनीति पर पड़ सकता है.
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