बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चुनाव आयोग की तरफ से चलाए गए SIR लेकर राहुल गांधी और तेजस्वी यात्रा ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी. वोटर अधिकार यात्रा को खत्म हुए 10 दिन गुजर चुके हैं, बावजूद इसके अब तक महागठबंधन में ना तो सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर साफ हो पाई है और ना ही तेजस्वी यादव बिहार में अपने कैंपेन के अगला शेड्यूल जारी कर पाए हैं. आरजेडी के अंदर खाने से मिल रही जानकारी के मुताबिक तेजस्वी यादव आगामी 15 सितंबर से बिहार के उन जिलों के दौरे पर निकलने की तैयारी में हैं, जहां वोटर अधिकार यात्रा नहीं पहुंची थी.
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वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव और राहुल गांधी बिहार के 25 जिलों का दौरा कर चुके हैं, इसके अलावा बिहार 13 जिले ऐसे हैं जहां तेजस्वी यादव चुनाव की घोषणा होने से पहले पहुंचना चाहते हैं. तेजस्वी के इस दौरे को लेकर पार्टी ने तैयारी भी कर रखी है लेकिन अब तक शेड्यूल जारी नहीं होना यह सवाल खड़े कर रहा है कि क्या महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर फंसा पेंच तेजस्वी इन 13 जिलों के दौरे के पहले सुलझा लेना चाहते हैं.
सीट शेयरिंग में फंसा पेंच
महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर कोऑर्डिनेशन कमिटी की बैठकों के कई दौर हो चुके हैं, बावजूद इसके अब तक ना तो आरजेडी और ना ही कांग्रेस समेत अन्य घटक दलों ने अपने पत्ते खोले हैं. बंद कमरे में बैठकों के दौरान घटक दलों की तरफ से अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं और इस दावेदारी के बीच फार्मूला अभी तय नहीं हो पाया है. 6 सितंबर को तेजस्वी यादव ने कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी. इसके बाद VIP नेता मुकेश सहनी ने 15 सितंबर तक सीट शेयरिंग पर ऐलान और डिप्टी सीएम की उम्मीदवारी की घोषणा की डेडलाइन तय कर दी.
इस बैठक के बाद 9 सितंबर को दिल्ली में कांग्रेस नेताओं की अलग से बैठक हुई. बिहार कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ घंटों मंथन किया, जिसके बाद बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने सीट शेयरिंग को लेकर किसी डेडलाइन के अंदर घोषणा की बात को खारिज कर दिया. बिहार कांग्रेस प्रभारी ने स्पष्ट किया की सीट शेयरिंग कांग्रेस भी जल्द से जल्द चाहती है लेकिन किसी डेडलाइन में बांधना इसे ठीक नहीं होगा. उधर तेजस्वी यादव भी लगातार यही कह रहे हैं की सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत चल रही है और जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता तब तक मीडिया के सामने इससे जुड़ी जानकारी नहीं दी जा सकती.
दलों को करना होगा एडजस्ट
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जाहिर है कांग्रेस से इससे नीचे के आंकड़े पर इस बार जाने को तैयार नहीं है लेकिन महागठबंधन में नए दलों की एंट्री की वजह से आरजेडी और कांग्रेस दोनों को कुछ सीटों पर कंप्रोमाइज करना पड़ सकता है.
बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू खुद ऐलान कर चुके हैं कि पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे दलों के महागठबंधन में शामिल होने के बाद सबको एडजस्ट करना होगा. 2020 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की VIP ने एनडीए से चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं लिहाजा उन्हें भी एडजस्ट करना होगा. लेफ्ट के दलों को भी उनके मजबूत इलाकों में सीटें देनी तय हैं, इसमें भाकपा माले सबसे अहम दावेदार होगी.
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तेजस्वी नहीं दोहराना चाहते 2020 वाली गलती
महागठबंधन की तरफ से सीएम कैंडिडेट के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा भले ही आधिकारिक तौर पर नहीं हो पाई हो लेकिन यह बात आरजेडी और उसके सहयोगी दल भी मानते हैं कि अगर महागठबंधन की जीत विधानसभा चुनाव में हुई तो मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ही बनेंगे. सीट शेयरिंग पर सहमति बने बगैर कांग्रेस सीएम कैंडिडेट को लेकर तेजस्वी के नाम पर सहमति देगी इसकी उम्मीद भी ना के बराबर है.
वहीं तेजस्वी यादव 2020 के विधानसभा चुनाव में की गई गलती को नहीं दोहराना चाहतेय तेजस्वी यादव हर सहयोगी दल को उसकी जमीनी ताकत के हिसाब से ही सीट देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस को इस बार 70 सीट की बजाय कम सीटों पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया जा रहा है.
सीट शेयरिंग का फॉर्मूला
कांग्रेस महागठबंधन में नए सहयोगियों के आने के कारण कुछ सीटों पर तो कंप्रोमाइज करने को तैयार नजर आती है लेकिन यह आंकड़ा 60 के नीचे ना जाए इसके लिए वह रणनीति बनाकर आगे बढ़ रही है. महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अंतिम ऐलान भले ही अभी ना हो पाया हो लेकिन जानकारी सूत्र बताते हैं कि सीट शेयरिंग को लेकर जिस फार्मूले पर बातचीत आगे बढ़ रही है उसमें आरजेडी 130 से 135 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. कांग्रेस के पहले में 52 से 56 सिम दी जा सकती हैं, मुकेश सहनी की वीआईपी को 18 से 20 और लेफ्ट पार्टियों को 30 से 35 सीटें मिल सकती हैं. हालांकि सीटों के एडजस्टमेंट को लेकर अभी बातचीत का दौर जारी है इसलिए पक्के तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता.
कांग्रेस और राजद में खींचतान?
एक तरफ जहां तेजस्वी यादव बीते विधानसभा चुनाव की गलती नहीं दोहराना चाहते तो वहीं कांग्रेस भी पुरानी गलतियों से सीख लेकर नई शर्तों के साथ सीट एडजेस्टमेंट चाहती है. तेजस्वी यादव 2020 में मुख्यमंत्री बनते-बनते इसलिए रह गए थे क्योंकि तब महागठबंधन केवल 15 सीट और 11150 वोटों के अंतर से सत्ता से चूक गया था.
जाहिर है तेजस्वी इस बार पुरानी कोई गलती दोहराना नहीं चाहते. 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 70 सीट लेने वाली कांग्रेस के ऊपर आरजेडी की तरफ से हार का ठीकरा फोड़ा गया था. तब आरजेडी के सीनियर नेताओं ने यहां तक का डाला था कि कांग्रेस में अपनी क्षमता से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसका कमतर प्रदर्शन महागठबंधन को सत्ता से दूर रखने का कारण बना.
वहीं कांग्रेस का इस मामले पर अपना तर्क है. बिहार कांग्रेस प्रभारी इस बार खुले तौर पर कह रहे हैं कि एनडीए जिन सीटों पर मजबूत है वहां केवल कांग्रेस ही नहीं लड़ेगी बल्कि अन्य सहयोगी दलों को भी वैसे सीटों पर अपने उम्मीदवार देने होंगे. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि 2020 में उन्हें ऐसी सीटें दी गई थी जहां एनडीए की स्थिति बेहद मजबूत थी. इस बार कांग्रेस से एनडीए की मजबूत स्थिति वाली सीटों को महागठबंधन के सभी घटक दलों के बीच बराबर बांटने की शर्त के साथ बातचीत कर रही है.
महागठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर जो खींचतान चल रही है वह इस बात का संकेत है कि फिलहाल सीट बंटवारे पर अंतिम तस्वीर साफ होने में वक्त लगेगा. ऐसे में तेजस्वी यादव अपने एकला चलो वाले प्लान को कब तक टालते हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा. हालांकि आरजेडी के आंदोलन सूत्रों की माने तो तेजस्वी 15 सितंबर से हर हाल में बिहार के उन 13 जिलों का रुख करने को तैयार है जो वोटर अधिकार यात्रा में कवर नहीं हो पाए थे.
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