Explainer: मोदी नहीं वाजपेयी सरकार में हुई थी एथनॉल ब्लेंडिंग की शुरुआत, RTI में चौंकाने वाला खुलासा

एथनॉल ब्लेंडिंग की नीति कोई नई नहीं है, इसकी शुरुआत 2001 में वाजपेयी सरकार ने की थी. RTI में मिले दस्तावेज़ों से पता चला कि इस योजना को बाद में UPA और फिर मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया.

RTI  में खुलासा
RTI में खुलासा

अलका कुमारी

16 Sep 2025 (अपडेटेड: 16 Sep 2025, 09:17 AM)

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पिछले कुछ दिनों से देश में एथनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल E-20 को लेकर काफी हो-हल्ला हो रहा है. कुछ लोगों का मानना है कि इस पेट्रोल का असर उनकी गाड़ियों के माइलेज पर पड़ेगा तो कुछ कीमत कम न होने को लेकर केंद्र पर जमकर निशाना साध रहे हैं. 

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इन तमाम विवादों के बीच ज्यादातर लोगों को यही लग रहा होगा कि एथनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल मोदी सरकार की नई पहल है, लेकिन हाल ही में RTI के जरिए मिले सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि यह योजना लगभग 25 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय शुरू हुई थी.

इंडिया टुडे टीवी को पेट्रोलियम मंत्रालय से मिली नौ महत्वपूर्ण नोटिफिकेशन ये साफ दिखता है कि इस योजना की शुरुआत साल 2001 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हुई थी और फिर 2022 में पूरे देश में E20 फ्यूल को लागू किया गया. 

RTI के इन दस्तावेजों से यह भी साफ होता है कि इस पॉलिसी को यूपीए सरकार के कार्यकाल में आगे बढ़ाया गया और देश के और ज्यादा हिस्सों तक फैलाया गया. इसके बाद मोदी सरकार ने इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से लागू किया और E10 से लेकर E20 तक के लक्ष्य को जमीन पर उतारा.

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर एथनॉल ब्लेंडिंग का ये पूरा मामला है क्या और इसे लेकर विवाद क्यों हो रहे हैं.

एथनॉल ब्लेंडिंग क्या है और क्यों जरूरी है?

एथनॉल गन्ना, मक्का और अन्य फसलों से बनाया जाने वाला एक तरह का प्राकृतिक ईंधन होता है. इसे पेट्रोल के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने को एथनॉल ब्लेंडिंग कहते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे हवा में प्रदूषण कम होता है और पेट्रोल की खपत भी घटती है. 

भारत जैसे देश में जहां पेट्रोल का ज्यादातर हिस्सा बाहर से आयात करना पड़ता है, इससे विदेशी तेल पर निर्भरता कम होती है. साथ ही, किसानों को फसलों से एथनॉल बनाने के लिए नई आमदनी के मौके मिलते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरती है.

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वाजपेयी सरकार ने इस नीती की रखी थी नींव 

भारत में एथनॉल ब्लेंडिंग की शुरुआत वाजपेयी सरकार के वक्त हुई थी. सरकारी दास्तावेज के अनुसार साल 2001 में वाजपेयी सरकार के वक्त महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में 5% एथनॉल मिश्रित पेट्रोल के तीन पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे.

इसके बाद 3 सितंबर 2002 को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी हुई, जिसमें कहा गया, 'कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार एथनॉल मिश्रित पेट्रोल की सप्लाई पर विचार कर रही है. "

इसके बाद, तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्रालय ने ऑटोमोबाइल कंपनियों, चीनी मिलों और राज्य सरकारों से सलाह लेने के बाद 1 जनवरी 2003 से नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 5 प्रतिशत एथनॉल मिलाना अनिवार्य कर दिया.

इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगालशामिल थे और चार केंद्र शासित प्रदेश में दादरा नगर हवेली, दमन दीव, चंडीगढ़ और पांडिचेरी थी शामिल थें.

यूपीए सरकार ने भी किया सपोर्ट 

वाजपेयी के बाद देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई तो उसने इस योजना को और ज्यादा राज्यों तक फैलाने का फैसला लिया.

साल 2004 में एथनॉल ब्लेंडिंग को उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) में भी लागू किया गया. इसके बाद साल 2006 में इस योजना को 10 और राज्यों में फैलाया गया. जिनमें छत्तीसगढ़, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, सिक्किम शामिल थे.

इस तरह कुल 19 राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश एथनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम में शामिल हो गए.

2013 का बड़ा फैसला

3 जनवरी 2013 को यूपीए सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया. Essential Commodities Act, 1955 के तहत आदेश जारी कर तेल कंपनियों को निर्देश दिया गया कि वे देश के सभी राज्यों में 5% एथनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल उपलब्ध कराएं. इस आदेश में यह भी कहा गया कि जरूरत पड़ने पर इसे 10% तक बढ़ाया जा सकता है.

यह पहला मौका था जब एथनॉल को राष्ट्रीय ईंधन नीति का हिस्सा बनाया गया. इससे एथनॉल ब्लेंडिंग को केवल प्रयोग या क्षेत्रीय योजना की बजाय एक देशव्यापी नीति में तब्दील कर दिया गया.

मोदी सरकार और एथनॉल ब्लेंडिंग

साल 2014 में जब मोदी सरकार आई तो उसने एथनॉल ब्लेंडिंग को तेजी से बढ़ावा दिया. उनका मुख्य मकसद था देश में जो तेल बाहर से आता है, उसे कम करना और देश में बने जैव ईंधन (जैसे एथनॉल) को ज्यादा इस्तेमाल करना. इससे पेट्रोल की बचत होगी और देश ऊर्जा के मामले में ज्यादा आत्मनिर्भर बनेगा.

2019 में E10 की शुरुआत

5 फरवरी 2019 को सरकार ने आदेश दिया कि पेट्रोल में अब 10% एथनॉल (E10) मिलाना जरूरी होगा. इसे 29 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया. यह कदम 2013 में यूपीए सरकार द्वारा तय किए गए लक्ष्य को पूरा करने के लिए था.

2021: E100 और E20 की शुरुआत

22 मार्च 2021 को सरकार ने E100 यानी 100% एथनॉल को एक अलग ईंधन के रूप में मंजूरी दी, जिसे अकेले भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फिर 2 जून 2021 को E20 यानी 20% एथनॉल वाला पेट्रोल मंजूर किया गया, जिसे 1 अप्रैल 2022 से लागू करने का लक्ष्य रखा गया. आखिरकार, 15 दिसंबर 2022 से E20 ईंधन पूरे देश में उपलब्ध हो गया.

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हालिया विवाद और प्रतिक्रिया

साल 2025 की शुरुआत में ही भारत के पेट्रोल में 20 फीसदी एथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य हासिल कर लिया है. यानी अब पेट्रोल में 20 फीसदी एथेनाल मिलाया जा रहा है.

इस लक्ष्य के हासिल करने के साथ ही कई वाहन मालिकों और ऑटो एक्सपर्ट्स ने E20 फ्यूल को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि एथनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल का इस्तेमाल करने से वाहनों की माइलेज कम हो रही है और पुराने मॉडलों में इंजन की दिक्कतें आ रही हैं.

विपक्ष का आरोप और नितिन गडकरी का जवाब

इस मामले में विपक्ष आरोप लगा रहा है कि नितिन गडकरी के दोनों बेटों की कंपनी एथनॉल प्रोड्यूस करती है और इस नियम के बाद उनके बेटे निखिल के कंपनी का रेवेन्यू कई गुना बढ़ गया है. इसी को लेकर विपक्ष समेत ऑटोसेक्टर का धरा सरकार और नितिन गडकरी को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं. 

इसके जवाब में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इथेनॉल-ब्लेंडेड पेट्रोल प्रोग्राम की आलोचना को राजनीति से प्रेरित बताया. 

गडकरी ने हाल ही में नागपुर में एग्रीकोस वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इन आरोपो का जवाब देते हुए कहा कि, 

"मेरा दिमाग 200 करोड़ रुपये प्रति माह का है. मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है और मैं नीचे नहीं गिरता."

इसी कार्यक्रम में गडकरी ने सीधे तौर पर इस विवाद का जिक्र किए बिना कहा, "मैं अपने बेटों को सुझाव देता हूं, लेकिन धोखाधड़ी का सहारा नहीं लेता.

इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बताते हुए कहा है कि E20 फ्यूल पूरी तरह सुरक्षित है और इसे नियामकों व वाहन निर्माताओं की मंजूरी मिली हुई है.

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