UPI से पेमेंट करने पर देना होगा चार्ज? क्यों बार-बार ठप हो रहा ये? इसके पीछे की असली कहानी क्या है?

UPI से पेमेंट पर चार्ज वसूलने की क्यों उठ रही मांग, GST काउंसिल क्या करने वाला था? सरकार ने सब्सिडी क्यों घटाई? क्यों बार-बार ठप हो रहे ये पेमेंट एप्स? ऐसे कई सवालों के जवाब सुलझाएंगे ये पहेली.

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तस्वीर: अर्पिता यादव.

बृजेश उपाध्याय

21 Apr 2025 (अपडेटेड: 21 Apr 2025, 02:06 PM)

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पहले पॉकेट में कैश लेकर लोग चलते थे. फिर ATM कार्ड आया तो बैंकों में कैश काउंटर पर भीड़ छंटी और लाइनें ATM पर लगनी शुरू हो गईं. नोटबंदी में कैश की किल्लत के चलते देश हिल गया. हालांकि इस समय तक UPI (Unified Payments Interface) ने एंट्री मार ली थी. आज घर से निकलते वक्त पॉकेट में वॉलेट नहीं फोन और फोन में वॉलेट का होना जरूरी होता है.

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तेजी से बढ़ते UPI पेमेंट के इस ट्रेंड के बीच UPI के चार्जेबल होने की चर्चाएं तेज हो गई हैं. हालांकि इन चर्चाओं के बीच सरकार ने वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज जारी कर ये साफ कर दिया की UPI पर जीएसटी लगाने का कोई इरादा नहीं है. ये फ्री है. फिर भी ये सवाल उठा किया इस तरह की मांग क्यों होने लगी. क्या भविष्य में इसपर चार्ज लगाया जाएगा? 

Personal Finance की इस सीरीज में इंडिया टुडे ग्रुप के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर के साप्ताहिक कार्यक्रम 'हिसाब-किताब' से UPI की पूरी गणित आपको बताने जा रहे हैं. 

फिर UPI का सिस्टम बार-बार ठप क्यों हो रहा

अब सवाल ये है कि UPI का सिस्टम बार-बार ठप क्यों हो रहा है?  पिछले महीने भर में ये 4 बार ठप हो चुका है. क्या तेजी से बढ़ते यूजर्स के कारण सिस्टम पर असर आ रहा है. क्या यूजर के हिसाब से इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर डवलप नहीं हो पा रहा है? क्या इन्फ्रास्टक्चर डवलप नहीं होने की वजह इसका फ्री होना है? क्या आगे चलकर यूपीआई से पेमेंट करना महंगा पड़ेगा? क्या UPI हर पेमेंट पर यूजर्स से पैसे लेगा? ये सारे सवाल यूजर्स को परेशान कर रहे हैं.

वर्ष 2019 में हर महीने करीब 100 करोड़ पेमेंट यूपीआई से होते थे. पिछले महीने ये आंकड़ा 1800 करोड़ पहुंच गया है. यानी 5 साल में ये 18 गुना बढ़ गया है. यूपीआई वही हैं, उनका सिस्टम और इन्फ्रास्टक्चर वही है पर ट्रांजेक्शन कई गुना बढ़ गया है. 

कैसे काम करता है UPI 

UPI जिसे NPCI (National Payments Corporation of India) ने विकसित किया है. यह सिस्टम दो बैंकों के बीच तुरंत पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा देता है. कुल पांच लेयर से होकर पेमेंट डेस्टिनेशन तक पहुंचता है. इस प्रोसेस में कुछ खर्चे भी होते हैं जिसका वहन यूजर नहीं बल्कि यूपीआई एप खुद करता है. 

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क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड यूज पर लगता है चार्ज? 

आपने देखा होगा कि कई दुकानदार क्रेडिट या डेबिट कार्ड यूज करन से मना करते हैं और पेमेंट यूपीआई या कैश में मांगते हैं. वजह है इन दुकानदारों से बैंक MDR यानी merchant discount rate वसूल करता है. ये एक से दो पर्सेंट हो सकता है. वहीं यूपीआई सभी के लिए फ्री है. 

1 हजार के ट्रांजेक्शन पर खर्च हो रहे ढाई रुपए 

एक consultancy कंपनी PWC की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 हजार रुपए का यूपीआई से ट्रांजेक्शन करने पर जो पार्टीज इन्वॉल्व हैं उन्हें ढाई रुपए खर्च करना पड़ता है. चूंकि यूपीआई यूजर्स से पैसे चार्ज नहीं किए जाते हैं. ऐसे में इसकी भरपाई नहीं हो पा रही. केंद्र सरकार ने इन कंपनियों को 2000 रुपए से कम ट्रांजेक्शन पर सब्सिडी देना शुरू की है. हालांकि ये ऊंट के मुंह में जीरा है. एक हजार रुपए के ट्रांजेक्शन पर खर्च ढाई रुपए और सब्सिडी मिलती है महज 20 पैसे. 

कैसे होगी इसकी भरपाई? 

पेटीएम या फोन पे एप दूसरी सर्विस भी दे रहे हैं जैसे रिचार्ज, सामान ऑर्डर करने से लेकर फूड ऑर्डर करने तक. माना जा रहा है कि इस ट्रांजेक्शन से पैसे कमा लेंगे. इस मॉडल पर ये काम चल रहा है. हालांकि अभी भी बैंक भी अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बढ़ा पा रहे है. पेमेंट एप का भी यही हाल है. इसलिए ये बार-बार मांग उठ रही है कि UPI के लिए भी क्रेडिट कार्ड की तरह फीस चार्ज करने पर इनकी आमदनी हो सके. इस पैसे को ये इन्वेस्ट कर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम कर सकें.  

2 कारणों से UPI पर चार्ज का दिया गया तर्क 

फिलहाल दो कारणों से यूपीआई को चार्जेबल करने की वकालत की गई. पहला सब्सिडी. सरकार ने एक तरफ कहा कि UPI पेमेंट पूरी तरह से फ्री है. हालांकि पिछले महीने इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ये विचार कर रही है कि जो मर्चेंट (दुकानदार) चालीस लाख से ज्यादा का कारोबार करते हैं, उसके लिए कोई एक चार्ज लगाया जाए. इस तर्क के पीछे एक और ट्रिगर प्वाइंट ये बना. वो ये है कि सब्सिडी की रकम सरकार ने कम कर दी. पहले ये रकम 2500 करोड़ रुपए सालाना थी. पिछले वित्त वर्ष में यूपीआई पर दी जाने वाली सब्सिडी के लिए 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान था. इस वर्ष से घटकर 434 करोड़ रुपए हो गया है. ये ग्राफ लगातार गिरा है. चर्चा शुरू हुई कि सरकार सब्सिडी घटा रही है तो बैंकों या यूपीआई एप्स को नुकसान की भरपाई के लिए कोई रास्ता देगी. 

दूसरा कारण 

रिजर्व बैंक ने 2022 में एक डिस्कसन पेपर फ्लोट किया था. उसका तर्क था कि UPI के लिए पैसे लिए जाने चाहिए. तब भी यही तर्क था कि पेमेंट कंपनियों का बैंकों का जो खर्चा हो रहा है उसकी भरपाई के लिए ये चार्ज लेना चाहिए. हालांकि तब भी वित्त मंत्रालय ने तुरंत खंडन कर दिया. सरकार ने तब भी कह दिया कि हम जनता से पैसे नहीं लेंगे. 

इधर GST काउंसिल की कमेटी इस बात पर विचार कर रही है कि पेमेंट एप्स पर जीएसटी लगाई जाए. इसमें जीएसटी पेटीएम, फोन पे, गूगल पे पर फोन के रिचार्ज कराने पर जो पैसे लेते हैं और इस तरह की जो सर्विस के विज्ञापन चला रहे हैं उसपर जीएसटी ली जाए. इसी बीच बात ये फैल गई कि UPI पर 2000 रुपए से कम के ट्रांजेक्शन पर 18 परसेंट की GST लगाई जाएगी. इसपर भी वित्त मंत्रालय ने तुरंत खंडन कर दिया. 

फिर कैसे ठीक होगा इन्फ्रास्ट्रक्चर? 

अब सवाल ये है कि खर्च और भरपाई की खाई के बीच ये यूपीआई एप झूल रहे हैं. पेमेंट बर्डेन से आए दिन ठप हो जा रहे हैं. इस चुनौतियों से पार पाने के लिए सरकार को सब्सिडी का अमाउंट बढ़ाने की जरूरत है नहीं तो ये सर्विस ऐसे ठप होते रहे तो फिर एटीएम पर लाइनें और छोटे-छोटे पेमेंट के लिए भी कार्ड लेकर घर से निकलना पड़ेगा. नतीजन दुकानदार कैश मागेगा और आम आदमी कैश-कार्ड-UPI के भंवर में परेशान होगा. 

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