DPS Dwarka News: दिल्ली के प्रतिष्ठित डीपीएस द्वारका स्कूल(DPS Dwarka Fees Case) में फीस वृद्धि और 31 बच्चों को स्कूल से निकाले जाने का मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंच गया है. स्कूल ने कोर्ट को बताया कि उसने 31 बच्चों को निकालने का आदेश वापस ले लिया है और सभी छात्रों को पुनः प्रवेश दे दिया गया है.
ADVERTISEMENT
इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि यह विवाद पहले के मुताबिक अब कम गंभीर हो गया है, लेकिन स्कूल की हरकतों पर कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने स्कूल द्वारा बच्चों को प्रवेश से रोकने के लिए 'बाउंसर्स' का इस्तेमाल करने और आर्थिक आधार पर बच्चों को अपमानित करने की निंदा की. यह मामला स्कूलों की भूमिका और उनकी जिम्मेदारियों पर गंभीर सवाल उठाता है.
क्या है पूरा मामला?
डीपीएस द्वारका में फीस वृद्धि को लेकर अभिभावकों और स्कूल प्रबंधन के बीच विवाद चल रहा था. स्कूल ने फीस न जमा करने के कारण 31 बच्चों के नाम काट दिए थे, जिसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा. स्कूल ने कोर्ट में कहा कि उसने यह आदेश वापस ले लिया है और बच्चों को दोबारा प्रवेश दे दिया गया है. हालांकि, कोर्ट ने स्कूल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और इसे बच्चों के प्रति असंवेदनशील बताया.
बाउंसर्स का इस्तेमाल, बच्चों का अपमान
हाई कोर्ट ने डीपीएस द्वारका के व्यवहार पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि स्कूल ने कुछ बच्चों को फीस न भर पाने के कारण प्रवेश से रोकने के लिए 'बाउंसर्स' का सहारा लिया, जो बेहद निंदनीय है. कोर्ट ने इसे बच्चों की गरिमा के खिलाफ और शिक्षा संस्थानों की मूल भावना के विपरीत बताया. कोर्ट के अनुसार, आर्थिक आधार पर बच्चों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना या डराना-धमकाना न केवल मानसिक उत्पीड़न है, बल्कि यह बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाता है.
ये भी पढ़ें: DPS द्वारका विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, स्कूल और सरकार से मांगा जवाब
स्कूल का व्यवसायीकरण गलत
हाई कोर्ट ने साफ किया कि एक स्कूल, भले ही वह फीस लेता हो, उसे किसी व्यावसायिक संस्थान की तरह नहीं चलाया जा सकता. डीपीएस जैसे प्रतिष्ठित स्कूल, जो एक बड़े संगठन द्वारा संचालित है, का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं, बल्कि बच्चों का समग्र विकास, शिक्षा और राष्ट्र निर्माण होना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि स्कूल का प्राथमिक लक्ष्य बच्चों को मूल्य और शिक्षा देना है, न कि व्यवसाय की तरह चलना.
फीस लेने का हक, लेकिन जिम्मेदारी भी
कोर्ट ने माना कि स्कूल को बुनियादी ढांचे, कर्मचारियों के वेतन और बेहतर शैक्षिक माहौल के लिए उचित फीस लेने का अधिकार है. हालांकि, स्कूल का अन्य व्यावसायिक संस्थानों से अलग होना चाहिए, क्योंकि उस पर बच्चों के प्रति नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है. कोर्ट ने स्कूलों को याद दिलाया कि उनकी भूमिका सिर्फ फीस वसूलने तक सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों के भविष्य को संवारने की भी है.
अभिभावकों को भी दी हिदायत
हाई कोर्ट ने अभिभावकों को भी चेतावनी दी कि उन्हें स्कूल की फीस समय पर जमा करनी होगी. कोर्ट ने 16 मई 2025 को दिए गए अपने आदेश का पालन करने की बात दोहराई, जिसमें फीस भुगतान से संबंधित निर्देश दिए गए थे. अभिभावकों को स्कूल के नियमों और कोर्ट के आदेशों का सम्मान करना होगा.
ADVERTISEMENT