Election Result: आज की साप्ताहिक बैठक में हम चर्चा करेंगे महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों पर, जो इस साल का आखिरी बड़ा राजनीतिक मुकाबला था. लोकसभा चुनावों के बाद चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में सभी की निगाहें खासतौर पर महाराष्ट्र पर टिकी थीं. सवाल था कि क्या कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन, जिसे लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन का फायदा मिला था, विधानसभा में भी उसे दोहरा पाएंगे? हालांकि, परिणाम कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.
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झारखंड-महाराष्ट्र चुनाव को लेकर तक क्लस्टर के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने इंडियन एक्सप्रेस की सहयोगी संपादक और जाने-माने पत्रकार लेखक निरजा चौधरी से खास बातचीत की. आइए जानते हैं विस्तार से उनका चुनावी नतीजों, बीजेपी और इंडिया गठबंधन को लेकर उन्होंने क्या कहा है.
मिलिंद:कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन ने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन विधानसभा में उतना दमखम क्यों नहीं दिखा पाया?
नीरजा: देखिए, महाराष्ट्र में महायुति ने बड़ी चालाकी से चुनावी रणनीति बनाई. *कन्या भगिनी योजना* जैसे कल्याणकारी कदमों ने जमीनी स्तर पर गहरी छाप छोड़ी. यह योजना हर महिला को सीधे आर्थिक मदद देती थी, और इसे बखूबी लागू किया गया. मैंने खुद गांवों में महिलाओं से बात की, और उनमें शिंदे सरकार के प्रति सकारात्मक भावनाएँ दिखीं.
महिला मतदाताओं ने इसे गेम चेंजर माना. इसके अलावा, मराठा आरक्षण और ओबीसी के मुद्दों को भी बीजेपी ने बड़ी होशियारी से साधा. इसके विपरीत, कांग्रेस-एनसीपी के बीच रणनीतिक तालमेल कमजोर पड़ा.
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मिलिंद: झारखंड में इंडिया गठबंधन को जीत मिली, लेकिन महाराष्ट्र की हार से कांग्रेस पर क्या असर पड़ेगा? क्या राहुल गांधी की राजनीतिक दिशा पर इसका प्रभाव होगा?
नीरजा: झारखंड में जीत जरूर कांग्रेस के लिए राहत की बात है, लेकिन महाराष्ट्र की हार से साफ है कि कांग्रेस को जमीनी स्तर पर और मेहनत करनी होगी. राहुल गांधी ने संसद में अच्छा प्रदर्शन किया है, जिससे उनकी छवि निखरी है. हालांकि, केवल भाषणों और विचारधारा से चुनाव नहीं जीते जाते.
प्रियंका गांधी के संसद में आने से पार्टी को नई ऊर्जा जरूर मिलेगी. लेकिन यह देखना होगा कि वे कैसे राहुल के साथ मिलकर संगठन को और मजबूत करती हैं.
मिलिंद: अब बात करते हैं शरद पवार और उद्धव ठाकरे के भविष्य की. क्या शरद पवार एनसीपी का कांग्रेस में विलय करेंगे? और उद्धव ठाकरे के पास क्या विकल्प बचते हैं?
नीरजा: शरद पवार ने हमेशा अपनी पार्टी को स्वतंत्र रखने की कोशिश की है. हालांकि, मौजूदा स्थिति में एनसीपी कमजोर हो चुकी है. पवार के पास कांग्रेस में विलय का विकल्प खुला है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा.
उद्धव ठाकरे के लिए चुनौती और बड़ी है. शिवसेना का बड़ा हिस्सा एकनाथ शिंदे के साथ है. उद्धव के पास संगठन को फिर से खड़ा करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. राज ठाकरे के साथ हाथ मिलाने का विकल्प है, लेकिन यह कदम कितना सफल होगा, यह कहना मुश्किल है.
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सवाल: प्रियंका गांधी की एंट्री से क्या राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की लड़ाई में बदलाव आएगा?
जवाब: प्रियंका की लोकप्रियता निश्चित रूप से कांग्रेस को नई दिशा दे सकती है. लेकिन बीजेपी के पास अभी भी मजबूत संगठन और नरेंद्र मोदी की करिश्माई नेतृत्व है. कांग्रेस को ज़मीनी स्तर पर, खासकर महिलाओं और युवा मतदाताओं के बीच, अपनी पहुंच बढ़ानी होगी. प्रियंका और राहुल को एक साथ मजबूत संदेश देना होगा, तभी मुकाबला दिलचस्प बन सकता है.
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