कांग्रेस के 'संकटमोचक' अभिषेक मनु सिंघवी फिर विवादों में घिरे, जानिए इनकी पूरी कहानी

कीर्ति राजोरा

24 फरवरी 1959 को जन्मे अभिषेक मनु सिंघवी खानदानी वकील परिवार से आते हैं. उनके पिता लक्ष्मीमल सिंघवी देश के जाने-माने कानूनविद और बीजेपी सांसद थे. हालांकि, अभिषेक ने राजनीति में कांग्रेस का रास्ता चुना और 25 सालों से पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी.

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Abhsihek Manu Singhvi: अभिषेक मनु सिंघवी भारतीय राजनीति और ज्यूडीशरी के महत्वपूर्ण चेहरों में से एक हैं. कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले सिंघवी ने राहुल गांधी के 'मोदी सरनेम केस' से लेकर अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह की रिहाई तक, कई बड़े राजनीतिक मामलों में विपक्ष का बचाव किया है. राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत दिलाने वाले सिंघवी ने 'नेशनल हेराल्ड केस' में भी कांग्रेस की सफलता सुनिश्चित की. यही नहीं, उन्होंने केजरीवाल के राजनीतिक करियर को भी ईडी और सीबीआई के मामलों से बाहर निकाला.  

500 रुपये की गड्डी का विवाद  

हाल ही में, राज्यसभा में सीट नंबर 222 से 500 रुपये की नोटों की गड्डी मिलने के बाद सिंघवी का नाम विवादों में आया. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस घटना का जिक्र किया, जिससे संसद में बवाल मच गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे लेकर सभापति को घेरा. सिंघवी ने अपनी सफाई में कहा कि 5 दिसंबर को वह केवल 12:57 पर सदन पहुंचे थे और 1 बजे कार्यवाही स्थगित होने के बाद वह कैंटीन में लंच करके निकल गए.  

कांग्रेस के भरोसेमंद 

सिंघवी चौथी बार राज्यसभा सांसद बने हैं और उनके प्रति कांग्रेस का भरोसा उनकी वफादारी का प्रमाण है. उन्होंने गांधी परिवार के अलावा विपक्षी नेताओं के लिए भी महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाईयां लड़ी हैं. 2015 में याकूब मेनन की फांसी रोकने से लेकर 2018 में कर्नाटक सरकार बनाने की लड़ाई तक, सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक मुकदमे लड़े. वह पहले वकील थे जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया.  

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राजनीतिक विरासत 

24 फरवरी 1959 को जन्मे अभिषेक मनु सिंघवी खानदानी वकील परिवार से आते हैं. उनके पिता लक्ष्मीमल सिंघवी देश के जाने-माने कानूनविद और बीजेपी सांसद थे. हालांकि, अभिषेक ने राजनीति में कांग्रेस का रास्ता चुना और 25 सालों से पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी. 2012 के सेक्स टेप कांड में फंसने के बावजूद उन्होंने राजनीति और वकालत दोनों में शानदार वापसी की. आज, वह भारत के सबसे महंगे वकीलों में गिने जाते हैं, जिनकी प्रति सुनवाई फीस 10-15 लाख रुपये होती है. 

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