Explainer: 'पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा समझौता', भारत पर कितना असर?

बृजेश उपाध्याय

सऊदी अरब ने परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान के साथ एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किया है. तो क्या एक देश पर हमले को दूसरे देश पर हमला माना जाएगा? भारत के लिए इस समझौते के क्या मायने हैं? जानें इस एक्सप्लेनर में.

ADVERTISEMENT

Saudi Pakistan defence samjhauta, Saudi Arabia Pakistan military deal, Bharat Saudi sambandh, Pakistan Saudi rishte, Houthi vidhrohi Saudi sangharsh
तस्वीर: न्यूज तक.
social share
google news

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार यानी 17 सितंबर को एक रक्षा समझौते हस्ताक्षर किया है. समझौते में कहा गया- 'किसी एक देश में हमला दोनों देश पर माना जाएगा.' न्यूज रॉयटर के मुताबिक वहां के अधिकार का कहना है कि इस डील व्यापक है जिसमें सभी तरह के हथियार हैं. यानी परमाणु हथियार भी शामिल हैं. यानी सऊदी अरब जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. 

इस समझौते ने वैश्विक परिदृश्य पर एक अलग चर्चा छेड़ दी. इस समझौते के पीछे कई सवाल हैं जिनका जवाब खोजा जा रहा है. अचानक ये समझौता क्यों हुआ? सऊदी अरब को इस समझौते से क्या फायदा होगा? पाकिस्तान को इस समझौते का कितना फायदा होगा और और एक बड़ा सवाल...भारत के संदर्भ में...इसका भारत और दक्षिण एशिया पर क्या असर होगा? सवाल इसलिए भी क्योंकि...

भारत-पाक में तनाव जो अभी जारी है....

अप्रैल 2025 में पहलगाम अटैक के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च कर पाकिस्तान को इस आतंकवाद का करारा जवाब दिया था. पाकिस्तानी की नापाक हरकत को भारत वैश्विक मंचों पर भी ले गया और वहां खूब किरकिरी हुई. चीन में हुए SCO शिखर सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही खूब घेरा. 

यह भी पढ़ें...

भारत और पाक के बीच रिश्ते अभी भी तनावपूर्ण हैं. क्रिकेट पिच पर भले ही दोनों देश एशिया कप में आमने-सामने हुए पर वहां भी हैंडशेक विवाद हो गया. अब सवाल ये है कि आतंकवाद को पनाह देने वाले पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के समझौता का भारत पर कितना असर होगा. इस एक्सप्लेनर में हम इसी को समझते हैं. 

भारत के लिए इस समझौते के क्या मायने हैं? 

एक्सपर्ट्स और भू-राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस समझौते का मतलब यह नहीं है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के लिए भारत के साथ युद्ध करेगा. जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है, और घोषणा का समय भी अलग है. 

एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, "यह समझौता किसी विशिष्ट देश या विशिष्ट घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है... भारत के साथ हमारे संबंध पहले से कहीं अधिक मज़बूत हैं. हम इस संबंध को आगे बढ़ाते रहेंगे और क्षेत्रीय शांति में हर संभव योगदान देने का प्रयास करेंगे."

भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार

सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वहीं भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वित्त वर्ष 2024-25 में, द्विपक्षीय व्यापार 41.88 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं. 

पाकिस्तान और सऊदी के कितना व्यापार

दूसरी ओर, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच व्यापार मुश्किल से 3-4 अरब अमेरिकी डॉलर का है. इसलिए, यह संभावना नहीं है कि सऊदी अरब भारत के खिलाफ जाएगा. 

एक भू-राजनीतिक रणनीतिकार, वेलिना चाकारोवा ने कहा कि यह दो दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच सऊदी अरब के संतुलन को दर्शाता है. 

इस समझौते पर अलग नजरिया भी

BBC से बातचीत के दौरान सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज अहमद का मानना है कि यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका है नहीं है. हालांकि जब वे इसे लंबी अवधि में देखते हैं तो ये भारत के लिए इसे झटका मानते हैं. उनका कहना है कि  खाड़ी के देश अपनी सुरक्षा के लिए पाकिस्तान, तुर्की और चीन की तरफ देख रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी तीनों देश कहीं न कहीं भारत के खिलाफ नजर आए. 

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल इसे अलग नजरिए से देखते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया X पर भारत के रिएक्शन को रिट्वीट करते हुए लिखा- 'इस समझौते का मतलब है कि सऊदी अरब का पैसा पाकिस्तान को की सेना को मज़बूत करने के लिए होगा.  पाकिस्तान का रणनीतिक रूप से पुनर्वास किया जा रहा है. इसकी शुरुआत ट्रंप द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख को खुश करने से हुई थी. पाकिस्तान खुलेआम अरब देशों को इज़राइल के खिलाफ परमाणु सुरक्षा की पेशकश कर रहा है.'

इस समझौते का एक एंगल ये भी 

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समझौता पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने के बजाय उसे मध्य पूर्व के लंबे संघर्षों में उलझा सकता है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि सऊदी अरब की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती यमन के हूथी विद्रोही हैं, जो अक्सर सऊदी पर मिसाइल हमले करते हैं. 

ऐसे हालात में "एक पर हमला यानी दोनों पर हमला" की शर्त के तहत पाकिस्तानी सैनिकों को रियाद का साथ देना पड़ सकता है. यह नया नहीं है. 1967 से पाकिस्तान 8,000 से ज्यादा सऊदी सैनिकों को ट्रेनिंग दे चुका है और कई बार अपनी सेना को सऊदी भेज चुका है. हालांकि, 2015 में यमन युद्ध में सेना भेजने से इनकार करने पर दोनों देशों के रिश्तों में खटास भी आई थी. 

"भारत और पाकिस्तान चार युद्ध लड़ चुके हैं और कम से कम तीन अन्य बड़े संघर्ष भी हुए हैं. सऊदी अरब को आज जारी बयान पर बातचीत करते समय इस पर विचार करना चाहिए था. इसका मतलब यह नहीं है कि रियाद अगले भारत-पाकिस्तान संघर्ष में कोई सार्थक भूमिका निभाने की कल्पना करता है," विश्लेषक और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर क्रिस्टोफर क्लैरी ने ट्वीट किया.

हथियार और पैसे से कर सकता है सपोर्ट?

विश्लेषकों का ये भी मानना है कि भारत और पाकिस्तान के टेंशन के बीच सऊदी अरब सीधे एंट्री नहीं मारेगा बल्कि पैसे और हथियार से सपोर्ट कर सकता है. पैसा जो पाकिस्तान की बड़ी जरूरतों में से है, क्योंकि ये देश आर्थिक स्तर पर लगातार संघर्ष कर रहा है. 

समझौते पर भारत का रिएक्शन

सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से थी. भारत ने गुरुवार को कहा कि वह इस घटनाक्रम पर कड़ी नजर रख रहा है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा. 

निष्कर्ष

देखा जाए तो ये समझौता पाकिस्तान को मध्य पूर्व में सऊदी अरब की क्षेत्रीय लड़ाइयों से जोड़े रखने के लिए है जिसका सीधा फायदा सऊदी अरब को मिलेगा. वहीं भारत-पाकिस्तान के तनाव के मामले में सऊदी अरब की भूमिका दोनों देशों में शांति बहाल करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है. 
 

    follow on google news