मुख्यमंत्रीः शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक यात्रा

देवराज गौर

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कैसे सत्ता के दावेदार बने शिवराज सिंह चौहान
कैसे सत्ता के दावेदार बने शिवराज सिंह चौहान
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एमपी सीएमः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश की सत्ता में 16 साल से काबिज हैं. आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर वह लगातार चर्चा में बने हुए हैं. इस बार उनके टिकट को लेकर भी राजनैतिक गलियारों में कई कयास लगाए जा रहे हैं. भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह तो समय ही बताएगा, लेकिन शिवराज सत्ता के दावेदार कैसे बने, हम आपको बताते हैं.

भविष्य का मुख्यमंत्री

मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकलकर शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर काफी रोमांचक रहा है. मध्यप्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली नर्मदा के किनारे बसे सीहोर जिले के जैत गांव में जन्मे शिवराज सिंह चौहान बचपन से ही गरीब, किसान, मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने लगे थे, जिसके कारण बचपन में उन्हें अपने चाचा से फटकार भी मिली थी.

शिवराज सिंह चौहान 16 वर्ष के थे तभी वह भारतीय जनता पार्टी के आनुषंगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए थे. कॉलेज गए तो वहां पर वह स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष भी बने. इमरजेंसी के दौर में शिवराज को जेल भी जाना पड़ा. लेकिन जेल जाना उनके लिए शुभ ही हुआ. उसी साल वह आरएसएस से जुड़ गए. वहां से निकले तो एबीवीपी के संगठन मंत्री बना दिए गए। उसके बाद उन्हें मध्यप्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया।

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जनता का नेताः शिवराज

शिवराज की राजनैतिक यात्रा में एक जबरदस्त मोड़ तब आया जब उन्होंने 1989 में भारतीय जनता युवा मोर्चा की अध्यक्षता करते हुए क्रांति मशाल यात्रा निकाली. जब शिवराज यात्रा निकालने की योजना बना रहे थे तब प्रदेश और केंद्रीय राजनीति के नेताओं ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी थी। उन्हें लगता था कि यह अदना सा बालक क्या कर पाएगा। लेकिन यात्रा को जनता का जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ। यात्रा जब भोपाल में समाप्त हुई तो इसमें 1 लाख से ज्यादा युवा पहुंचे। इस भीड़ ने शिवराज को बना दिया नेता।

शिवराज सिंह चौहान की एक जबरदस्त खूबी यह रही कि वह जनता के बीच पद यात्रा करके ही पहुंचते थे, इसलिए वह ‘पांव पांव वाले भईया’ के नाम से भी मशहूर हुए.

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मत चूकें चौहान

शिवराज सिंह चौहान को पहली बार 1990 में विधानसभा का टिकट मिला, जब वह पहली बार बुधनी सीट से चुनाव लडे़ और जीते भी. लेकिन यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, विधायक बनने के एक साल बाद ही 1991 में उन्हें फिर चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन इस बार विधायकी का नहीं बल्कि सांसदी का, जी सांसदी का। दरअसल 1991 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी दो जगहों से चुनाव लड़े थे उत्तर प्रदेश के लखनऊ और मध्य प्रदेश के विदिशा से। लेकिन अटल जी ने लखनऊ की सीट अपने पास रखी, और विदिशा की सीट पर उपचुनाव हुआ, जिस पर शिवराज को लड़ाया गया। शिवराज ने वह चुनाव जीता और दिल्ली पहुंच गए।

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लेकिन कुछ समय बाद शिवराज की घर वापसी हुई और उन्हें 2003 के चुनाव में राघौगढ़ से दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ाया गया। लेकिन वे वह चुनाव हार गए। दरअसल प्रदेश का मुखिया बनने से पहले शिवराज पांच बार सांसद रहे। लेकिन फिर पुनः 2005 में शिवराज सीहोर जिले की बुधनी सीट से विधायक चुने गए. उमा भारती की नाराजगी और विरोध के बावजूद शिवराज पहली बार 154 विधायकों के समर्थन के साथ मुख्यमंत्री बने.

शिवराज मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐसे जमे कि “दिग्गज” और “बड़े नेता” जैसे रूपक उनके सामने छोटे पड़ने लगे. मध्यप्रदेश की राजनीति में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड भी शिवराज ने ही तोड़ा.

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