क्या है लेटरल एंट्री और क्यों विपक्ष इसका कर रही है विरोध? सब समझिए

शुभम गुप्ता

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UPSC Lateral Entry: लेटरल एंट्री, जिसे हिंदी में सीधी भर्ती कहा जा सकता है. ये हाल के समय में चर्चा का विषय बना हुआ है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत एक्सपर्ट्स को सिविल सेवाओं में बिना UPSC परीक्षा के शामिल किया जाता है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए यह प्रक्रिया खास तौर पर विवादास्पद रही है. हम इस लेख मे लेटरल एंट्री का अर्थ, UPSC के विज्ञापन और सरकार के फैसले के खिलाफ हो रहे विरोध को विस्तार से समझेंगे.

क्या है लेटरल भर्ती?

लेटरल एंट्री का अर्थ है "सीधी भर्ती". इसे केंद्र सरकार ने 2018 में लागू किया, जिससे विशेषज्ञों को सीधे उच्च पदों पर नियुक्त किया जा सके. इसका उद्देश्य सिविल सर्वेसिज में निजी क्षेत्र के एक्सपीरियंस और एक्सपर्टिज को लाना है. यह भर्ती विशेष रूप से जॉइंट सेक्रेटरी, एडिशनल सेक्रेटरी, और डायरेक्टर लेवल के पदों के लिए की जाती है.

लेटरल एंट्री के तहत, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में उन विशेषज्ञों की भर्ती की जाती है, जिनके पास विशिष्ट क्षेत्रों में काम करने का एक्सपीरियंस हो. ये नियुक्तियां उन लोगों के लिए होती हैं, जो निजी क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय ऑर्गेनाइजेशन या अन्य सरकारी विभागों में उच्च पदों पर काम कर चुके हों.

UPSC के विज्ञापन में क्या कहा गया है?

इस बार केंद्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) ने अलग-अलग मंत्रालयों में संयुक्त सचिव और निदेशक/उपसचिव स्तर के 45 पदों के लिए भर्ती निकाली है. इनमें से 10 पद संयुक्त सचिव के लिए और 35 पद निदेशक/उपसचिव के लिए हैं. इन पदों पर नियुक्त होने वाले अधिकारी सरकार के साथ तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करेंगे और अगर उनका प्रदर्शन अच्छा रहा तो यह कॉन्ट्रैक्ट पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है. आवेदन करने की अंतिम तारीख 17 सितंबर है.

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अब तक लेटरल एंट्री के जरिए 63 नियुक्तियां हो चुकी हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से थीं. मंत्रालयों और विभागों में 57 अधिकारी लेटरल एंट्री के माध्यम से काम कर रहे हैं.

सीधी भर्ती कैसे होती है?

लेटरल एंट्री के तहत सीधी भर्ती की प्रक्रिया पारंपरिक UPSC परीक्षा से अलग होती है. इसके तहत उम्मीदवारों को बिना सिविल सेवा परीक्षा दिए ही उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है. चयन प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:

आवेदन: इच्छुक उम्मीदवारों को संबंधित मंत्रालय या विभाग द्वारा जारी की गई अधिसूचना के आधार पर आवेदन करना होता है.

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योग्यता: उम्मीदवारों को 15-20 सालों का कार्य अनुभव और अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा और कृषि जैसे क्षेत्रों में जानकारी होनी चाहिए.

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चयन: चयन प्रक्रिया में उम्मीदवार की पिछली उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाता है. इसमें किसी प्रकार की लिखित परीक्षा नहीं होती.

नियुक्ति: चयनित उम्मीदवारों को सीधा संबंधित पद पर नियुक्त कर दिया जाता है.

विरोध क्यों हो रहा है?

विपक्ष लेटरल भर्ती को लेकर विपक्ष, सरकार की जमकर आलोचना कर रहा है. लेटरल एंट्री प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण पहले भी विपक्षी दल सरकार को इस पहल के लिए घेर चुके हैं. 

  • इस प्रक्रिया में पारंपरिक UPSC परीक्षा जैसी पारदर्शिता नहीं होती. इसके चयन प्रक्रिया में केवल इंटरव्यू पर निर्भरता इसे आलोचकों के निशाने पर ले आया है.
  • कई लोग मानते हैं कि लेटरल एंट्री से पारंपरिक सिविल सेवकों का अधिकार कम हो सकता है. इससे उनकी प्रमोशन जैसे अवसरों पर भी असर पड़ सकता है.
  • बिना सिविल सेवा परीक्षा दिए हुए उच्च पदों पर नियुक्ति की संभावना से कुछ लोग यह मानते हैं कि इससे अयोग्य उम्मीदवारों का सिलेक्शन हो सकता है, जिससे प्रशासनिक कार्यक्षमता पर असर पड़ेगा.
  • आलोचकों को इस बात की भी चिंता हैं कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार अपनी पसंद के लोगों को प्रशासन में नियुक्त कर सकती है, जिससे राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना बढ़ेगी.

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