लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव चमके, क्यों बिहार में तेजस्वी की चमक पड़ गई फीकी

शुभम गुप्ता

कांग्रेस-सपा ने मिलकर यूपी में मिलकर 43 सीटीं जीतीं, जिसमें सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें हासिल की. वहीं बीजेपी का विजयी रथ रोकने में कामयाब हुई. बिहार में तेजस्वी यादव से जो उम्मीद की जा रही थी वे उसपर पूरे तरीके से खरे नहीं उतर पाए.

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Akhilesh Yadav-Tejashwi Yadav: लोकसभा चुनाव में विपक्षी इंडिया गठबंधन ने नतीजों में सबको चौंका कर रख दिया. विपक्षी इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में 234 सीटीं जीती लेकिन एनडीए ने फिर एक बार अपनी सरकार बना ली है. हालांकि विपक्षी गठबंधन का पिछले चुनाव के मुताबिक काफी अच्छा प्रदर्शन रहा है. खासकर के यूपी में. कांग्रेस-सपा ने मिलकर यूपी में मिलकर 43 सीटीं जीतीं, जिसमें सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें हासिल की. वहीं बीजेपी का विजयी रथ रोकने में कामयाब हुई. बीजेपी इस बार यूपी में 33 सीटें अपना नाम कर सकीं. यूपी में इंडिया गठबंधन के प्रदर्शन का श्रेय अखिलेश यादव को दिया जा रहा है.

हालाँकि, पड़ोस के राज्य बिहार में तेजस्वी यादव से जो उम्मीद की जा रही थी वे उसपर पूरे तरीके से खरे नहीं उतर पाए. कहा जा रहा है कि युवाओं के बीच नीतीश कुमार की गिरती लोकप्रियता के बावजूद तेजस्वी यादव मौके को भुना नहीं सके. बिहार में इंडिया ब्लॉक में शामिल राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वामपंथी दल और विकासशील इंसान पार्टी ने नौ सीटें जीतीं जबकि एनडीए ने 30 सीटें जीतीं. इनके अलावा निर्दलीय के खाते में एक सीट गई. 

एग्जिट पोल ने भविष्यवाणी की थी की बिहार में एनडीए को 33 सीटें और INDIA को सिर्फ 6 सीटें मिल सकती हैं.यूपी में जो एग्जिट पोल दिखाए गए थे वे असली नतीजों के बिल्कुल विपरीत हैं. बिहार में एनडीए को 47 फीसदी वोट मिले. 2019 के मुकाबले इस बार एनडीए को छह फीसदी वोट प्रतिशत का नुकसान हुआ है. वहीं इंडिया ब्लॉक को इस बार 37 फीसदी वोट मिले हैं. पार्टीवर की बात करें तो राजद को सात फीसदी वोट शेयर की बढ़त मिली. वहीं जद (यू) और भाजपा को तीन-तीन फीसदी वोट का फायदा हुआ लेकिन यूपी में सपा जितना नहीं.

आइए जानते हैं सपा ने कैसे बेहतरीन प्रदर्शन किया 

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1. अखिलेश ने ली जिम्मेदारी 

सपा ने यूपी की 80 में से 62 सीटों पर चुनाव लड़ा, यानी की 80 फीसदी सीटों पर. वहीं राजद ने 40 में से 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे जो कि 60 फीसदी सीटें हुईं. राजद ने अपने हिस्से से 4 सीटें VIP को दी. VIP उनमें से एक सीट पर भी जीत नहीं सकी. वहीं अखिलेश को आलोचकों का शिकार होने पड़ा कि उन्होंने अपनी सहयोगी दलों को ज्यादा (17)सीटें दे दी. हालांकि उनका ये दांव काम भी आया. पप्पू यादव को हराने के तेजस्वी यादव के दृढ़ संकल्प की कीमत न केवल पूर्णिया बल्कि पड़ोसी सीटों पर भी गठबंधन को उठानी पड़ी.

2. सपा ने बेहतरीन टिकट वितरण

सपा ने इस बार सिर्फ 5 यादवों को टिकट दिया जो कि कुल टिकटों का सिर्फ आठ प्रतिशत है. अखिलेश ने ये दांव खेलकर जातीय राजनीति करने वाला ठप्पा भी अपने ऊपर से हटा दिया. वहीं तेजस्वी यादव ने अपने 23 उम्मीदवारों में से 9 यादव को उम्मीदवार बनाया. जो कि कुल उम्मीदवारों का 39 फीसदी है. इसलिए, यह सभी जातियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का पार्टी का संदेश देने में सक्षम नहीं था. इनके आधे टिकट मुस्लिम-यादव उम्मीदवारों को मिले. 

अखिलेश अपने सामाजिक गठबंधन को MY से आगे बढ़ाकर PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्याक) को शामिल करने में कामयाब रहे जिनका फायदा उन्हें मिला.

3. सपा ने बीजेपी-बसपा के वोटर्स में की सेंधमारी 

सपा (गठबंधन) को 16 फीसदी जबकि राजद (गठबंधन) को केवल 10 फीसदी अपर कास्ट का वोट मिला. वहीं कुर्मी/कोइरी वोटर्स ने सपा को 34 फीसदी और राजद को केवल 19 फीसदी समर्थन दिया. तेजस्वी नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाए.

CSDS पोस्ट पोल डेटा 2024 के अनुसार SP+ को 82 प्रतिशत यादवों का समर्थन प्राप्त हुआ, जबकि राजद+ को केवल 73 फीसदी वोट मिला. सपा को गैर-यादव ओबीसी वोटर्स ने 34 फीसदी समर्थन दिया जबकि राजद को केवल 14 मिला. बिहार में भाजपा को हराने के लिए EBC/MBC वोट बैंक में सेंध लगाना जरूरी था, जो तेजस्वी करने में कामयाब नहीं हो सके.

अगर मुस्लिम वोटर्स की बात करें तो अखिलेश और सहयोगियों को 92 फीसदी मुस्लिम वोट मिला, जबकि तेजस्वी और सहयोगियों को 87 फीसदी वोट मिला. 

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