लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने राहुल गांधी, क्या होता है ये? कितना प्रभावशाली है ये पद? सब जानिए 

अभिषेक

Opposition Leader Rahul Gandhi: सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि, इन सभी नियुक्तियों में राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उसी टेबल पर बैठेंगे, जहां प्रधानमंत्री और अन्य सदस्य बैठेंगे. इन नियुक्तियों से जुड़े फैसलों में प्रधानमंत्री को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी से भी उनकी सहमति लेनी होगी. 

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Opposition Leader Rahul Gandhi: 18वीं लोकसभा का सत्र शुरू हो चुका है. लगभग सभी सांसदों ने शपथ भी ले ली है. आज लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला भी चुन लिए गए. इन सब के बीच कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से सांसद राहुल गांधी को लोकसभा में नेता विपक्ष बनाने का ऐलान किया. यह फैसला मंगलवार यानी बीती रात INDIA ब्लॉक की बैठक में में लिया गया. उसके बाद कांग्रेस संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को पत्र लिखा और इस फैसले की जानकारी दी. आज यानी बुधवार को राहुल गांधी ने सदन में ये जिम्मेदारी भी संभाल ली हैं. स्पीकर ओम बिरला की नियुक्ति के बाद वो औपचारिक प्रक्रिया का भी हिस्सा बने. राहुल गांधी एक नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद क्या होगा बदलाव? कौन-कौन से निर्णयों में उनकी होगी भूमिका? आइए आपको बताते हैं. 

पहले जानिए नेता विपक्ष के क्या होती है शक्तियां और अधिकार?

- कैबिनेट मंत्री के बराबर का दर्जा 
- सरकारी बंगला
- सचिवालय में दफ्तर
- उच्च स्तरीय सुरक्षा
- देश के भीतर प्रत्येक वर्ष के दौरान 48 से ज्यादा यात्राओं का भत्ता
- मुफ्त रेल यात्रा
- सरकारी गाड़ी या वाहन भत्ता
- 3.30 लाख रुपए मासिक वेतन-भत्ता
- टेलीफोन, सचिवीय सहायता और चिकित्सा सुविधाएं

विपक्ष के नेता बनने से संसद में बढ़ेगा राहुल गांधी का रुतबा 

नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी को अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया है. इससे प्रोटोकॉल सूची में उनका स्थान भी बढ़ जाएगा और वे विपक्षी गठबंधन के पीएम फेस के स्वाभाविक दावेदार भी हो सकते हैं. राहुल गांधी ने अपने ढाई दशक से ज्यादा लंबे राजनीतिक करियर में यह पहला संवैधानिक पद है, जो उन्होंने संभाला है. आपको बता दें कि, इस बार राहुल गांधी पांचवीं बार के सांसद हैं. मंगलवार को उन्होंने संविधान की प्रति हाथ में लेकर सांसद पद की शपथ ली थी.

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प्रमुख नियुक्तियों में राहुल गांधी का रहेगा दखल

देश की संसद जिसमें निम्न सदन लोकसभा और उच्च सदन राज्यसभा में विपक्ष के नेताओं को साल 1977 में वैधानिक मान्यता दी गई थी. वैसे आपको बता दें कि, विपक्ष के नेता के पद का उल्लेख संविधान में नहीं है बल्कि इसका उल्लेख संसदीय विधि में है. अब नेता विपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी की संवैधानिक पदों की नियुक्तियों में अहम भूमिका रहेगी. नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी लोकपाल, CBI के डायरेक्टर, मुख्य चुनाव आयुक्त, चुनाव आयुक्त, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयुक्त, NHRC प्रमुख के चयन से संबंधित कमेटियों के सदस्य होंगे और इनकी नियुक्ति में नेता विपक्ष का रोल रहेगा. वे इन पैनलों में बतौर सदस्य शामिल होंगे.

सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि, इन सभी नियुक्तियों में राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उसी टेबल पर बैठेंगे, जहां प्रधानमंत्री और अन्य सदस्य बैठेंगे. इन नियुक्तियों से जुड़े फैसलों में प्रधानमंत्री को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी से भी उनकी सहमति लेनी होगी. 

सरकार की कमेटियों में निभाएंगे प्रमुख भूमिका 

राहुल गांधी बतौर नेता विपक्ष 'लोक लेखा' कमेटी के भी प्रमुख बन जाएंगे, जो सरकार के सारे खर्चों की जांच करती है और उनकी समीक्षा करने के बाद टिप्पणी भी करती है. यानी राहुल गांधी सरकार के आर्थिक फैसलों की लगातार समीक्षा कर पाएंगे और सरकार के फैसलों पर अपने विचार भी रख सकेंगे. उनके पास ये अधिकार होगा कि वो सरकार के कामकाज की लगातार समीक्षा करते रहें.

पहले राजीव गांधी फिर सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी को नेता विपक्ष की जिम्मेदारी

देश के इतिहास में यह तीसरा मौका है जब गांधी परिवार का कोई सदस्य लोकसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका में होगा. इससे पहले राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं. राजीव गांधी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक नेता विपक्ष रहे वहीं सोनिया गांधी 13 अक्टूबर 1999 से 06 फरवरी 2004 तक नेता प्रतिपक्ष को जिम्मेदारी संभाली है. अब उनके बेटे राहुल गांधी इस भूमिका में नजर आएंगे. 
 

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