चम्बल नदी में लौटा कछुओं का बड़ा कुनबा, 3 हजार से ज्यादा संकटग्रस्त बाटागुर के नवजातों को छोड़ा गया

Umesh Mishra

धौलपुर की चम्बल नदी में संकटग्रस्त बाटागुर कछुआ प्रजाति के 3,267 शावकों को छोड़ा गया. जानिए कैसे हुआ सफल संरक्षण और क्यों यह मिशन वन्यजीव सुरक्षा की मिसाल है.

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तस्वीर: उमेश मिश्रा, राजस्थान तक.
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चम्बल नदी का किनारा नन्हे कछुओं की हलचल से चहक उठा. संकटग्रस्त बाटागुर कछुआ प्रजाति के 3,267 शावकों को सफल संरक्षण के बाद प्राकृतिक आवास में छोड़ा गया. यह देश में कछुओं के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है. 

कैसे हुआ ये सफल संरक्षण? 

धौलपुर के राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य और टीएसए फाउंडेशन इंडिया के संयुक्त प्रयास से पहले अंडों को नदी किनारे सुरक्षित स्थानों पर संरक्षित किया गया. 160 से ज्यादा नेस्ट बनाए गए. अंडों को जानवरों से बचाने के लिए लकड़ी के कवर लगाए गए. 

इन अंडों से हेचरी में शावकों का सुरक्षित विकास किया गया और फिर उन्हें मोर बसैया गांव के पास चम्बल नदी में छोड़ा गया. ये पूरी प्रक्रिया क्षेत्रीय वन अधिकारी दीपक मीणा और टीएसए फाउंडेशन के पवन पारिक के निर्देशन में हुई. 

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संकटग्रस्त प्रजातियां 

  • Red Crowned Roofed Turtle- रंग-बिरंगे चेहरे और गर्दन वाला दुर्लभ मीठे पानी का कछुआ. 
  • Three-striped Roofed Turtle-  जिसे “तीन धारीदार छत वाला कछुआ” कहते हैं. 

इन दोनों की तस्करी सबसे ज्यादा होती है और इनका प्राकृतिक आवास भी खतरे में है. 

चम्बल नदी भारत में इकलौती जगह है जहां इनकी पर्याप्त संख्या मौजूद है. इसलिए यह संरक्षण प्रोग्राम सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा का संदेश भी देता है. 

डॉ. आशीष व्यास, उप वन संरक्षक, राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य के मुताबिक- "हर साल इस प्रयास को दोहराया जाएगा ताकि संकटग्रस्त प्रजातियों का भविष्य सुरक्षित रह सकें."

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