धौलपुर: घड़ियाल के 200 अंडों से बाहर निकले 181 बच्चे, ऐसे बढ़ाया जा रहा विलुप्तप्राय जीव का कुनबा
alligator crocodile birth: राजस्थान तक आपको बता रहा है घड़ियालों के प्रजनन और बच्चों के नदी में बड़े हो जाने तक की चुनौतियां और प्रोसेस.

राजस्थान के धौलपुर (dholpur news) जिले में चंबल नदी से फिर खुशखबरी आई है. विलुप्तप्राय जीव घड़ियाल का कुनबा फिर बढ़ने वाला है. देवरी घड़ियाल पालन केंद्र में 200 अंडों से 181 बच्चे (alligator birth) निकले हैं. बाकी 19 अंडों से भी बच्चों के निकलने का इंतजार है. इन बच्चों को अभी देवरी घड़ियाल पालन केंद्र में ही रखा जाएगा. जब इनकी लंबाई 1.2 मीटर तक हो जाएगी तब इन्हें सर्दी के मौसम में चंबल नदी में छोड़ दिया जाएगा. राजस्थान तक आपको बता रहा है घड़ियालों के प्रजनन और बच्चों के नदी में बड़े हो जाने तक की चुनौतियां और प्रोसेस.
चंबल नदी में हाल ही में हुई जीवों की गणना में 2 हजार 4 सौ 56 घड़ियाल पाए गए हैं. गौरतलब है कि वर्ष 1975 से 1977 तक विश्वभर की नदियों का सर्वे किया गया था. इस दौरान पूरी दुनिया में महज 200 घड़ियाल पाये गये थे जिनमें 46 घडियाल राजस्थान और मध्य प्रदेश में बहने वाली चम्बल नदी में मिले थे. देश में सबसे अधिक घड़ियाल चंबल नदी में ही पाए जाते हैं. इसके बाद बिहार की गंडक नदी और तीसरे नंबर पर यूपी की गिरवा नदी चौथे नंबर पर उत्तराखंड में राम गंगा नदी और पांचवे नंबर पर नेपाल में नारायणी और राप्ती नदी में घड़ियाल हैं.
घड़ियालों का कुनबा बढ़ाने के लिए उठाया गया कदम
चूंकि घड़ियाल तेजी से दुनियाभर में विलुप्त हो रहे थे. ऐसे में भारत सरकार ने वर्ष 1978 में चंबल नदी के 960 किलोमीटर एरिया को राष्ट्रीय चम्बल घडियाल अभ्यारण्य घोषित करने के साथ ही देवरी घड़ियाल पालन केंद्र की स्थापना की गई. यहां हर साल अंडों को रखकर एक निश्चित तापमान 30-35 डिग्री में रखा जाता है. इनसे बच्चे होने के बाद इन्हें पालकर 1.2 मीटर लंबा होने तक इंतजार किया जाता है. फिर इन्हें चंबल नदी में छोड़ दिया जाता है.
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इसलिए घड़ियाल पालन केंद्र में रखे जाते हैं अंडे
जब ये देखा गया कि इनकी संख्या काफी कम है. इसके साथ ही मादा घड़ियाल के अंडों को शिकारी पक्षी, पशु और जीवों से बचा पाना भी मुश्किल था. इनके नन्हे बच्चे चंबल नदी की तेज धारा में भी जान गवां बैठते हैं. इनका भी शिकार तेजी से हो जाता है. ऐसे में घड़ियाल पालन केंद्र में हर साल 200 अंडों को रखकर इनसे बच्चों का जन्म कराया जाने लगा. देखा गया कि नेचुरल बर्थ के बाद नेचर में इनके अंडों का सर्वावाइल महज 20 फीसदी ही है. यानी 100 अंडों से केवल 20 बच्चे ही बचकर बड़े घड़ियाल बन पा रहे थे. वहीं रिसर्च सेंटर में इनका सर्वाइवल 90 फीसदी तक हो गया है. चूंकि ये विलुत्पप्राय जीवों की कटेगरी में आते हैं इसलिए इनका संरक्षण करना बेहद जरूरी हो गया था.
हर साल 15-19 मई के बीच अंडों का होता है कलेक्शन
देवरी घड़ियाल पालन केंद्र की प्रभारी ज्योति डंडोतिया के मुताबिक हर साल 15-19 मई के बीच चम्बल अभयारण्य की नेस्टिंग साइट से करीब 200 अंडे देवरी के कैप्टिविटी हैचरी में रखे जाते हैं. बच्चों के अंडे से निकलने के बाद करीब 3 साल लग जाते हैं इनकी लंबाई 1.2 मीटर तक होने में. इसके बाद इनको चंबल नदी में सर्दी के मौसम में छोड़ा जाता है.
ऐसे होती है घड़ियाल की नेचुरल बर्थ
मादा घड़ियाल नर घड़ियाल के साथ फरवरी माह में मेटिंग करती है. मादा अप्रैल में अंडे देती है. एक मादा घड़ियाल पहली बार में 18-50 और दूसरी बार में इससे भी ज्यादा अंडे देती है. अंडों को बचाने के लिए ये रेत में 30-40 सेमी का गड्ढा खोदकर गाड़ देती है. मई-जून में जब बच्चे मदर कॉल करते हैं तो मादा रेत हटाकर बच्चों को बाहर निकालती है. बाहर निकलने के बाद भी इन्हें बचाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. नदी में मगरमच्छ और दूसरे जीव, शिकारी पक्षी से बच्चे बच गए तो बारिश में चंबल के भरने पर तेज धारा के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में 98 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है. वहीं पालन केंद्र से आने वाले बच्चों में सर्वाइवल 70 फीसदी होता है.
सर्दियों में घड़ियालों की चंबल में छोड़ने की ये है वजह
चूंकि घड़ियाल ठंडे खून का प्राणी है. इसे सर्दियों में भूख कम लगती है. ऐसे में सर्दियों में इन्हें चंबल में छोड़ने पर भोजन के लिए काफी परेशान नहीं होना पड़ता है. इन्हें यहां नया वातावरण मिलता है और ये धीरे-धीरे एडजस्ट कर जाते हैं.










