धौलपुर: चंबल नदी के किनारे खुले डिब्बे और भरभराकर निकले घड़ियाल, देखें

Umesh Mishra

देवरी घड़ियाल केंद्र पर कृत्रिम वातावरण में नदी से प्रतिवर्ष 200 अंडे लाकर उनका लालन-पालन किया जाता है. तीन वर्ष बाद इनको चम्बल सेंचुरी में छोड़ा जाता है.

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धौलपुर: चंबल नदी के किनारे खुले डिब्बे और भरभराकर निकले घड़ियाल, देखें
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crocodile in chambal river: राजस्थान के धौलपुर में बह रही चंबल घड़ियालों का घर है. यहां घड़ियाल अपना कुनबा बढ़ाते रहते हैं. फिर चंबल में लकड़ी के बड़े-बड़े बॉक्स खोलकर घड़ियालों को छोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी. इन घड़ियालों के पूंछों में एक रेडियो कॉलर आईडी भी लगाई गई. फिर ये उसके साथ ही चंबल नदी की धारा में विलीन हो गए.

दरअसल धौलपुर और मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की सीमा पर बहने वाली चम्बल नदी में घडियाल के संरक्षण और संवर्द्धन के तहत 27 घडियालों को चम्बल नदी के देवरी घाट पर छोड़ा गया. इनमें 13 नर और 14 मादा घड़ियाल शामिल हैं. इस वर्ष राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य में 84 घड़ियाल छोड़ने का टारगेट है. अभी तक 52 घड़याल छोड़े जा चुके हैं. इस जलीय जीव का संरक्षण और संवर्द्धन मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के देवरी घड़ियाल केन्द्र पर कृत्रिम वातावरण में किया जा रहा है.

चंबल नदी में दो हजार 108 घड़ियालों के साथ 878 मगरमच्छ और 96 डॉल्फिन समेत अन्य जलीय जीव हैं.

गौरतलब है कि वर्ष 1975 से 1977 तक विश्वव्यापी नदियों के सर्वे के दौरान 200 घडियाल पाये गये थे. जिनमें से 46 घड़ियाल चम्बल नदी के प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद विचरण करते हुये मिले थे. भारत सरकार ने चम्बल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र को राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य वर्ष 1978 में स्थापित किया था. तभी से देवरी घड़ियाल केंद्र पर कृत्रिम वातावरण में नदी से प्रतिवर्ष 200 अंडे लाकर उनका लालन-पालन किया जाता है. तीन वर्ष बाद इनको चम्बल सेंचुरी में छोड़ा जाता है.

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देवरी घड़ियाल केंद्र द्वारा पूर्व में चम्बल नदी के बाबूसिंह घेर घाट पर भी 25 घडियाल छोड़े गये थे. जिनमें से 13 मादा और 12 नर शामिल थे. देवरी घड़ियाल केन्द्र से घड़ियालों को चम्बल नदी के किनारे बॉक्स में ले जाया जाता है. बॉक्स में से घड़ियालों को चम्बल नदी में छोड़ दिया जाता हैं. इन सभी घड़ियालों की उम्र करीब तीन साल है. चम्बल नदी में छोड़े गए घड़ियाल करीब एक से डेढ़ महीने तक नदी के किनारे पर ही विचरण करेंगे और उसके बाद नदी के गहरे पानी में चले जाएंगे.

इस महीने में मेटिंग करते हैं घड़ियाल

चम्बल नदी में घड़ियालो का परिवार लगातार बढ़ रहा है. घड़ियाल दिसम्बर और जनवरी माह में मेटिंग करते हैं. मार्च और अप्रैल में अंडे देते हैं और जून के महीने में बच्चे अंडों से बाहर आ जाते हैं. मादा घड़ियाल रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती हैं. करीब महीने भर बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं. बच्चों की आवाज सुनकर मादा रेत हटा कर बच्चों को निकालती है और चंबल नदी में ले जाती है.

घड़ियाल के अंडों को इनसे है खतरा

सबसे बड़ा खतरा तो चंबल नदी खुद ही है. इसकी मुख्यधारा में आने वाले बच्चे तेज बहाव में जान दे बैठते हैं. सबसे अधिक नुकसान बारिशों के दिनों में होता है,जब चंबल भर जरती है. इसके अलावा बाज, कौवे, सांप, मगरमच्छ सहित अन्य मांसाहारी जलीय जीव इनके लिए खतरा रहते हैं.घड़ियाल अत्यंत दुर्लजीव है. ये दुनिया में करीब करीब सभी जगह से लुप्त हो चुका है. भारत में ही इसकी सबसे ज्यादा संख्या पाई जाती है. इनकी सबसे ज्यादा संख्या चम्बल नदी है.

अंडों को बचाने के लिए बनाई गई ये व्यवस्था

मध्य प्रदेश के देवरी अभ्यारण केंद्र में 200 अंडे प्रति वर्ष चम्बल से कलेक्शन कर कैप्टिविटी हैचरी में रखते हैं, जहां एक चैम्बर बना हुआ है. यहां तापमान को 30 डिग्री से 35 डिग्री तक मेंटेन किया जाता हैं. उसके बाद हैचिंग का कार्य किया जाता है. यहां नन्हे घड़ियालों की देखभाल की जाती है और उसके बाद नन्हें घड़ियालों की लंबाई 1.2 मीटर होने पर चम्बल नदी में छोड़ा जाता हैं. अगर लम्बाई कम होती हैं तो इन्हे देवरी अभ्यारण केंद्र में रखा जाता हैं और लम्बाई पूरी होने पर इन्हें चम्बल नदी में छोड़ा जाता है.

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