बेहद प्रसिद्ध है भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, यहां एक साथ होती है भगवान शिव और विष्णु की पूजा
ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जहां भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. तो चलिए इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस मंदिर से जुड़ी सारी जानकारियों से रूबरू कराते हैं.
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देशभर में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. लेकिन अगर आप भगवान शिव और विष्णु दोनों के भक्त हैं तो आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां आप दोनों के दर्शन कर सकते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर की. भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. तो चलिए इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस मंदिर से जुड़ी सारी जानकारियों से रूबरू कराते हैं.
लिंगराज मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
- यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे 11वीं शताब्दी में सोम वंश के राजा जाजति केशरी द्वारा बनवाया गया था.
- लिंगराज का अर्थ है “लिंगम के राजा” जो यहां भगवान शिव को कहा गया है.
- लिंगराज मंदिर को भारत में एकमात्र मंदिर माना जाता है जहां भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा होती है.
- इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां केवल हिंदू धर्म के लोगों को ही मंदिर में एंट्री दी जाती है.
- यह मंदिर अपनी शानदार नक्काशी और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो मूर्तियां हैं, वे कामसूत्र से प्रेरित है जो विभिन्न कामुक छवियों को प्रदर्शित करता है.
- आपको बता दें कि विमान, जगमोहन, नटमंदिर और भोग-मंडप मंदिर परिसर की 4 मुख्य इमारतें हैं, जो कुल मिलाकर 2,50,000 वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है.
- बता दें, मंदिर परिसर में लगभग 150 छोटे-छोटे मंदिर हैं.
जानें लिंगराज मंदिर में दर्शन और आरती का समय
अगर आप लिंगराज मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे हैं तो मंदिर खुलने और आरती का समय पहले पता कर लें, इससे आप परेशान नहीं होंगे. जानकारी के मुताबिक, मंदिर खुलने का समय सुबह 2 बजे है और 2:30 बजे पहले मंगल आरती होती है. फिर सुबह 4 बजे बल्ल्व भोग लगता है. इसके बाद आप सुबह 6 से 10 बजे तक मंदिर में मूर्ति के पास से दर्शन कर सकते हैं. फिर सुबह 10 से 11 बजे तक छप्पन भोग लगता है. इसके बाद शाम को 5 से 6 बजे तक फिर आरती होती है. और आखिर में रात 10 बजे बड़ा श्रृंगार होता है और फिर 10:30 बजे मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं.
लिंगराज मंदिर घूमने जाने का बेस्ट टाइम
वैसे तो यहां घूमने के लिए आप कभी भी आ सकते हैं, लेकिन इसकी यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च महीने के बीच माना गया है, क्योंकि इस दौरान यहां ठंड रहती है जिससे आपको यात्रा में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. वहीं गर्मियों के मौसम में भुवनेश्वर काफी गर्म रहता है, ऐसे में यहां आने से बचना चाहिए.
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आपको बता दें, यहां महाशिवरात्रि का त्योहार बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. जिसके कारण इस दौरान यहां काफी भीड़ उमड़ती है.
लिंगराज मंदिर में जाने से पहले ध्यान रखें ये बातें
- आपको बता दें, मंदिर के अंदर गैर-हिंदुओं को जाने की इजाजत नहीं है.
- इस मंदिर में कैमरा, मोबाईल फोन, पॉलीथीन, चमड़े की चीजें और बैग लाने की अनुमति नहीं है.
- मंदिर में फोटोग्राफी करना सख्त मना है.
- मंदिर में प्रवेश करने से पहले अपने जूते उतार दें.
- बता दें, लिंगराज मंदिर पर्यटकों और श्रद्धालुओं के घूमने के लिए बिलकुल फ्री है. इसलिए किसी के झांसे में आकर पैसे न दें.
कैसे पहुंचें लिंगराज मंदिर?
लिंगराज मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में है और यह भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. बता दें, यहां तक पहुंचने के लिए हवाई, रेल या सड़क मार्ग तीनों में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है.
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- हवाई जहाज से- अगर आप हवाई जहाज से लिंगराज मंदिर जाने का प्लान बना रहे हैं तो आपको बता दें कि यहां का नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर एयरपोर्ट है. यह एयरपोर्ट मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. ऐसे में यहां पहुंचने के बाद आप टैक्सी या कैब द्वारा लिंगराज मंदिर जा सकते हैं.
- ट्रेन से- बता दें, पर्यटक या श्रद्धालु ट्रेन के जरिए भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन आसानी से पहुंच सकते हैं. और फिर यहां से लिंगराज मंदिर पहुंचने के लिए कैब, टैक्सी या ऑटो किराए पर ले सकते हैं.
- सड़क मार्ग से- आप बस या निजी वाहन से देश के किसी भी शहर से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से लिंगराज मंदिर पहुंच सकते हैं.
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