नई कार खरीदना हर किसी का सपना हो सकता है, लेकिन बिना सोचे-समझे फैसला लेने पर यही बोझ लगने लगता है. अक्सर लोग गाड़ी खरीदने से पहले केवल पसंद देखते हैं- मॉडल कौन-सा अच्छा है, कलर कैसा है, कंपनी कौन-सी है...वगैरह-वगैरह. सबसे जरूरी बात है फाइनेंशियल प्लानिंग जो लोग करते नहीं है. फिर डाऊन पेमेंट के बाद बारी आती है ईएमआई की. कुछ महीनों में मंथली बजट गड़बड़ाने लगा जाता है. जो कार कुछ दिनों पहले फर्राटा भरती नजर आती थी वही चुभने लग जाती है.
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फिर सोचते हैं...काश कि फाइनेंशियल प्लानिंग कर ली होती तो ये दिन न देखना पड़ता. ऐसी ही कहानी है रघु की. रघु, एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. इनकी सैलरी ₹80,000 प्रति महीना है. अभी तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ऑफिस आते-जाते थे, लेकिन अब चाहते हैं कि अपनी कार से सफर करें. ऑफिस भी, फैमिली आउटिंग भी.
रघु के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन्हें अपने बजट, जरूरत और मंथली खर्चों के साथ-साथ फाइनेंशियल गोल को ध्यान में रखते हुए कौन कैसे प्लानिंग करनी चाहिए? Personal Finance की इस सीरीज में हम आपको वो फार्मूला बताने जा रहे हैं जिसे अपनी सैलरी पर लगाकर आप कार का बजट, डाऊन पेमेंट और EMI सब तय कर सकते हैं.
घर खरीदना या किराए पर लेना क्या है सही ? इस पैरामीटर पर परखें, कभी फंसेंगे नहीं
सैलरी बताएगी कार का बजट क्या हो? "50% रूल"
- ये एक आसान फॉर्मूला है. अपनी सालाना सैलरी का 50% निकालें. यही आपकी कार का बजट होगा.
- रघु की सालाना सैलरी = ₹80,000 × 12 = ₹9.6 लाख.
- 50% रूल = ₹4.8 लाख. यानी रघु 4 लाख 80 हजार से 5 लाख रुपए तक की कार ले सकते हैं.
डाऊन पेमेंट, EMI और मेंटिनेंस खर्च क्या हो?
"20/4/10 रूल" से तय करें डाऊन पेमेंट, EMI और मेंटेनेंस
- ये रूल बताता है कि कार की कुल लागत को कैसे मैनेज करना है.
- 20% डाऊन पेमेंट: ₹1 लाख
- 4 साल की EMI: ₹4 लाख का लोन अगर 10% ब्याज पर लिया जाए तो EMI करीब ₹10,200 प्रति माह.
- 10% सैलरी ईंधन/मेंटेनेंस पर: यानी ₹6,000–₹8,000 प्रति माह.
- कुल खर्च: ₹16,000–₹18,000 प्रति माह. सुरेश की सैलरी के हिसाब से ये मैनेज हो सकता है.
नई कार या सेकेंड हैंड? जानें कब कौन सही?
- अगर आप 10 साल या उससे ज्यादा समय तक एक ही गाड़ी चलाना चाहते हैं, तो नई कार लें.
- अगर 5 साल में गाड़ी बदलने का प्लान है, तो अच्छी कंडीशन में सेकेंड हैंड कार ज्यादा बेहतर साबित होगी.
- सेकेंड हैंड कार के फायदे
- सेकेंड हैंड कार में कम पैसे में फीचर्स ज्यादा मिलते हैं.
- रीसेल पर नुकसान कम होता है.
- पैसे भी बचते हैं.
रघु ₹5 लाख की नई या उसी बजट में ज्यादा फीचर्स वाली सेकेंड हैंड कार दोनों पर विचार कर सकते हैं.
घर खरीदना है तो लगा लें रेट और सैलरी के बीच ये फार्मूला, सारा कन्फ्यूजन हो जाएगा दूर !
पेट्रोल, डीजल, CNG या इलेक्ट्रिक? क्या चुने?
फ्यूल | फायदे | नुकसान |
CNG | सस्ता ईंधन | पिकअप कम, कम सर्विस सेंटर |
इलेक्ट्रिक | ऑपरेटिंग कॉस्ट कम | शुरुआती कीमत ज्यादा |
पेट्रोल | सस्ती शुरुआती कीमत | लॉन्ग टर्म में खर्चीली |
डीजल | लंबी दूरी के लिए बेहतर | मेंटेनेंस और टैक्स ज्यादा |
अगर सुरेश का रोज का यूज़ ज्यादा है तो CNG या इलेक्ट्रिक बेहतर है, लेकिन अगर माइल्ड यूज़ और रीसेल वैल्यू चाहिए तो पेट्रोल कार फायदेमंद होगी.
निष्कर्ष: प्लान करें, फिर लें निर्णय
सपनों की कार लेने से पहले अगर रघु की तरह आप भी बजट, EMI, और उपयोग पर सोच-समझकर फैसला लेंगे, तो कार आपको कभी बोझ नहीं लगेगी. हर सफर में सुकून मिलेगा, खर्च मैनेजेबल रहेगा और जब कार बेचनी होगी तो अच्छा रिटर्न भी मिलेगा.
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