Shivraj Patil news: कांग्रेस के दिग्गज नेता और देश के पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल का 90 साल की उम्र में शुक्रवार का निधन हो गया. पाटिल ने लंबे समय से बिमार चल रहे थे. उन्होंने महाराष्ट्र के लातूर में अंतिम सांस ली. पाटिल अंतिम समय तक कांग्रेस के सिपाही रहे, हालांकि, कई सालों पहले उन्होंने राजनीतिक जीवन स दूरी बना ली थी. उन्होंने सत्तर के दशक में राजनीति में कदम रखा और एक विधायक से लेकर संसद सदस्य तथा देश के गृहमंत्री बनने तक का लंबा सफर तय किया.
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महाराष्ट्र की धरती से ताल्लुक रखने वाले शिवराज पाटिल चाकूरकर, मराठवाड़ा क्षेत्र के लातूर से कई बार सांसद चुने गए थे. उन्होंने शून्य से शिखर तक का अपना सियासी सफर तय किया. उन्हें भारतीय राजनीति में एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता के तौर जाना जाता था. वे के लातूर ग्रामीण सीट से 1973 से 1980 तक विधायक रहे. इसके बाद 1980 में ही लातूर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके साथ ही वे उन्होंने केंद्र सरकार में मंत्री पद संभाला और बाद में एक राज्य के राज्यपाल भी बने.
किसान परिवार में जन्में, बनाई अलग पहचान
देश के इस पूर्व गृहमंत्री का जन्म लातूर जिले के चाकुर में 12 अक्टूबर 1935 को हुआ था. उनके पिता का नाम शिवराम पाटिल और माता का नाम शारदा पाटिल था. एक किसान परिवार और मध्यमवर्गीय बैकग्रउंड से आने के बावजूद शिवराज पाटिल ने राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई. उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा लातूर से ही पूरी की. इसके उस्मानिया यूनिवर्सिटी से विज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. फिर मुंबई यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति में एंट्री ली.
नगर पालिका से संसद तक की यात्रा
शिवराज पाटिल ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1967 से 69 के दौरान लातूर नगर पालिका से की. इसके बाद वे साल 1973 से 1980 तक लातूर ग्रामीण सीट से विधायक रहे. 1980 के आम चुनाव में उन्होंने लातूर संसदीय सीट से जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे. इसी के साथ उन्होंने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार में रक्षा राज्य मंत्री के रूप में पहली बार केंद्र में मंत्री पद संभाला. इसके बाद 1980 से 1999 तक लगातार सात बार लोकसभा चुनाव जीते.
इंदिरा से मनमोहन युग तक रही महत्वपूर्ण भूमिका
शिवराज पाटिल की राजनीतिक पहुेच इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकारों तक बनी रही. इंदिरा और राजीव गांधी की सरकारों में उन्होंने रक्षा, वाणिज्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और अंतरिक्ष राज्य मंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी कुशलतापूर्वक संभाली. बाद में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उन्होंने लोकसभा स्पीकर का पदभार संभाला और जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी तो सबसे पावरफुल मंत्री बने.
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कांग्रेस की हर सरकार में रहे मंत्री
इसके बाद 1982 से 1983 में रक्षा राज्य मंत्री के रूप में उन्हें वाणिज्य मंत्रालय का पूर्ण स्वतंत्र प्रभार दिया गया था. इसके अलावा लगभग एक वर्ष के लिए उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, अंतरिक्ष और महासागर विकास मंत्रालय जैसे विभागों का दायित्व भी संभाला. 1983 में उन्हें सी.एस.आई.आर. इंडिया के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया. उन्होंने रक्षा, विदेश मामले, वित्त, और संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते जैसी विभिन्न समितियों में भी अपनी सेवाएं दीं. राजीव गांधी के कार्यकाल में उन्हें कार्मिक एवं रक्षा उत्पादन मंत्री नियुक्त किया गया, जिसके बाद उन्होंने नागरिक उड्डयन और पर्यटन का स्वतंत्र प्रभार भी संभाला. अस्सी के दशक से लेकर 2008 तक कांग्रेस की लगभग हर सरकार में उन्होंने मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं.
लोकसभा स्पीकर के रूप में पाटिल का योगदान
नब्बे के दशक में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने. इस सरकार में शिवराज पाटिल ने 1991 से 1996 तक लोकसभा के 10वें स्पीकर के रूप में कार्य किया. स्पीकर के तौर पर उन्होंने लोकसभा के आधुनिकीकरण, कंप्यूटरीकरण, संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू करने और एक नई लाइब्रेरी बिल्डिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को गति दी. उन्होंने देश और विदेश में आयोजित हुए कई संसदीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया.
1992 में स्पीकर रहते हुए शिवराज पाटिल ने उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार देने की शुरुआत की. उन्होंने संसद सदस्यों को सूचना वितरण की व्यवस्था को सुधारा, संसद पुस्तकालय भवन के निर्माण में योगदान दिया और लोकसभा की कार्यवाही (जिसमें दोनों सदनों के प्रश्नकाल का सीधा प्रसारण शामिल था) के प्रसारण जैसी महत्वपूर्ण पहलों में अपना योगदान दिया.
चुनाव हारने के बाद बने गृहमंत्री और फिर दिया इस्तीफा
शिवराज पाटिल 2004 का लोकसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन सोनिया गांधी ने उन पर अपना विश्वास बनाए रखा. उन्हें राज्यसभा के माध्यम से संसद का सदस्य बनाया गया और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया. हालांकि, 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद उन्होंने सुरक्षा में हुई चूक की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 30 नवंबर 2008 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
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पंजाब के राज्यपाल के साथ चंडीगढ़ की अतिरिक्त जिम्मेदारी
केंद्रीय गृहमंत्री का पद छोड़ने और राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद शिवराज पाटिल को राज्यपाल नियुक्त किया गया. वो साल 2010 से 2015 तक पंजाब के राज्यपाल रहे. इसके साथ ही उन्हें चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी मिली. सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी में शिवराज पाटिल ने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई.
1963 में विजया पाटिल से विवाह और निजी जीवन
बता दें कि शिवराज पाटिल लिंगायत समुदाय से आते थे. उन्होंने 1963 में विजया पाटिल से विवाह किया. उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं. उनकी बहू, डॉ. अर्चना पाटिल चाकुरकर भी सक्रिय राजनीति में हैं. पाटिल के दो भतीजी भी हैं. इसके अलावा शिवराज पाटिल को सत्य साईं बाबा का एक निष्ठावान अनुयायी भी माना जाता था. लगभग पांच दशक के संसदीय और प्रशासनिक अनुभव, विभिन्न मंत्रालयों में कार्य करने और लोकसभा स्पीकर के रूप में उनके महत्वपूर्ण योगदान के साथ शिवराज पाटिल को भारतीय राजनीति में एक अहम और जानकार व्यक्ति के तौर पर याद किया जाएगा.
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