उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित उन्नाव रेप केस में एक बड़ा फैसला सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व बीजेपी विधायक और इस मामले के मुख्य आरोपी कुलदीप सेंगर की जमानत पर रोक लगा दी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक को एक नोटिस जारी करते हुए जवाब भी मांगा है. अब इस मामले में 4 सप्ताह के बाद फिर से सुनवाई होगी. दरअसल, 23 दिसंबर को कुलदीप सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दी थी, जिसके बाद विरोध शुरु हो गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और आज यानी 29 दिसंबर को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है.
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उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि, इस मामले में सेंगर को जमानत नहीं दी जा सकती है. वहीं हाईकोर्ट से सेंगर को जमानत मिलते ही पीड़िता दिल्ली पहुंची और जमानत का विरोध किया. साथ ही लोग भी इसका विरोध करने लगे.
23 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने सशर्त दी थी जमानत
23 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस केस में BJP के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को सस्पेंड भी कर दिया था. ध्यान देने वाली बात है कि सेंगर को उम्रकैद की सजा मिली है. उच्च अदालत ने मामले में जमानत दे दी और शर्त रखा कि सेंगर को विक्टिम से 5 किमी दूर रहना होगा. हालांकि जमानत मिलने के बाद भी सेंगर जेल से बाहर नहीं आ सकते क्योंकि उन्हें पीड़िता के पिता के हत्या के मामले में 10 साल की सजा हुई है. इधर जमानत पर विरोध बढ़ने लगा और CBI ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी.
कोर्ट रूम में क्या कुछ हुआ?
सीबीआई की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सेंगर की जमान का विरोध किया. उन्होंने कहा- यह बहुत ही भयानक मामला है. दो मुख्य पहलुओं पर आरोप तय किए गए थे. SG ने अदालत को ट्रायल कोर्ट के दोषसिद्धि के आदेश के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि आदेश में कहा गया है- अभियोजन पक्ष सेंगर का अपराध साबित करने में सफल रहा है, IPC की धारा 376 और POCSO की धारा 5(c) के तहत बच्ची 16 साल से कम उम्र की थी, यह एक निष्कर्ष था जिसे रिकॉर्ड किया गया था. ट्रायल में यह पाया गया है कि बच्ची नाबालिग थी. वह सिर्फ 15 साल और 10 महीने की थी.
सजा सुनाते समय ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बिना किसी शक के 376 के तहत दोषी ठहराया था. 376(1) के तहत सजा न्यूनतम 10 साल और अधिकतम आजीवन कारावास है. 376(2) के तहत सजा न्यूनतम 20 साल और अधिकतम जैविक जीवन के अंत तक है. जब वह 16 साल से कम उम्र की थी, तो यह गंभीर सजा के तहत आएगा.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने माना कि- यह मानते हुए कि पीड़िता नाबालिग नहीं है, फिर भी न्यूनतम 10 साल की सजा लागू होगी और अधिकतम सजा आजीवन कारावास है. SG ने SC को बताया कि सेंगर को 376(2)(i) के तहत दोषी ठहराया गया था, जो 16 साल से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार से संबंधित है और सजा न्यूनतम 20 साल है और जैविक जीवन के अंत तक जा सकती है. मामले के तथ्यों को देखते हुए आजीवन कारावास न्यूनतम है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल
कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा- क्या आपका तर्क यह है कि जब पीड़िता नाबालिग हो तो लोक सेवक की अवधारणा पूरी तरह से अलग या अप्रासंगिक है? इसपर एसजी ने हां में जवाब दिया. उन्होंने कहा- POCSO मामलों में, पेनिट्रेटिव यौन हमला अपने आप में एक अपराध है. यह धारा 3 के तहत एक स्वतंत्र अपराध है. 2019 के संशोधन से पहले, जो अपराध होने के बाद आया था, न्यूनतम 7 साल था. कुछ परिस्थितियों में पेनिट्रेटिव यौन हमला गंभीर यौन हमला होता है, जो इसे करने वाले व्यक्ति पर आधारित होता है. अगर कोई व्यक्ति हावी स्थिति में है, तो इसे गंभीर हमला माना जाएगा. SG ने उदाहरण दिए कि गंभीर पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट के तहत क्या-क्या आएगा - पुलिसकर्मी, संसद सदस्य आदि. इस एक्ट में पब्लिक सर्वेंट को परिभाषित नहीं किया गया है.
यह संदर्भ द्वारा दी गई परिभाषा है, IPC के तहत जो भी परिभाषित है, वही मान्य होगा. किसी भी कानून में इस्तेमाल होने वाले हर शब्द को मशीनी तरीके से परिभाषा नहीं मिलती. संदर्भ के अनुसार, पब्लिक सर्वेंट का मतलब कोई भी ऐसा व्यक्ति होगा जो बच्चे पर ऐसी हावी स्थिति में है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम आज केस का फैसला नहीं कर रहे हैं. कोर्ट ने CBI की याचिका पर सेंगर को नोटिस जारी किया. कोर्ट ने 2 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा. इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इस मामले में सेंगर को रिहा नहीं किया जाएगा.
जमानत मिलने के बाद पीड़िता ने जताया था दुख
आपको बता दें कि 23 दिसंबर को जैसे ही दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सेंगर को सशर्त जमानत दी थी, इसके बाद ही पीड़िता ने न्याय की गुहार लगाते हुए दुख भी जताया था. उन्होंने कहा कि 'जैसे हमने जजमेंट सुना तो मुझे बहुत दुःख हुआ. मुझे लगा की मैं यहीं जान दे दूं. लेकिन मैंने अपने बच्चों के बारे में सोचा. मैंने अपने परिवार के बारे में सोचा. इसलिए कुछ हिम्मत नहीं की. लेकिन हमारे साथ में अन्याय हुआ है.'(यहां पढ़ें पूरी खबर)
इनपुट- अनीश माथुर/सृष्टि ओझा
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