बिहार में CAG रिपोर्ट पर नीतीश सरकार को फटकार! 70 हजार करोड़ का नहीं दे सकी हिसाब-किताब

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Bihar CAG report: CAG रिपोर्ट ने नीतीश सरकार की पोल खोली: बिहार 70,877 करोड़ का हिसाब नहीं दे पाया, विपक्ष हमलावर, बड़े विभाग सवालों के घेरे में.

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CAG रिपोर्ट में खुलासा: बिहार सरकार 70,877 करोड़ रुपये का नहीं दे पाई हिसाब
नीतीश सरकार 70,877 करोड़ रुपये का नहीं दे पाई हिसाब
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Bihar CAG report: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज हो गईं है. सत्ता पक्ष जहां अपने काम को गिना रहा है, वहीं विपक्ष उसे राज्य के विकास के मुद्दों पर घेरने का काम कर रहा है. लेकिन इसी बीच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(CAG) की रिपोर्ट ने माहौल को गर्म कर दिया है.

CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार सरकार 70,877 करोड़ रुपए का कोई हिसाब-किताब नहीं दे पाई है. कैग ने यह साफ कहा है कि बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) के यह माना जा सकता है कि इस राशि का गबन कर लिया गया है. आइए आसान भाषा में समझते हैं इस पूरी रिपोर्ट को.

विधानसभा में पेश हुई कैग की रिपोर्ट

दरअसल गुरुवार को राज्य विधानसभा में इस रिपोर्ट को पेश किया गया. रिपोर्ट के पेश होते ही विपक्ष इसे लेकर सरकार पर हमलावर हो गई. इस रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि शर्त के बावजूद 31 मार्च, 2024 तक महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी), बिहार को 70,877.61 करोड़ रुपये के 49,649 बकाया उपयोगिता प्रमाणपत्र(यूसी) नहीं मिले. यह नियमों का सीधे तौर पर उल्लंघन हैं क्योंकि किसी भी योजन की राशि जारी होने के बाद तय समय सीमा में यूसी देना अनिवार्य होता है.

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किस विभाग में कितना हिसाब बाकी?

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) ना जमा करने वाले विभागों में सबसे आगे पंचायती राज विभाग(28,154.10 करोड़ रुपए), फिर शिक्षा विभाग (12,623.67 करोड़ रुपये), शहरी विकास (11,065.50 करोड़ रुपए), ग्रामीण विकास (7,800.48 करोड़ रुपए) और कृषि (2,107.63 करोड़ रुपए) शामिल है. इन विभागों द्वारा अपने हिस्से के पैसों का हिसाब नहीं दिया गया.

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पैसों की हेराफेरी और गबन का शक

कैग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यूसी नहीं प्राप्त होने की स्थिति में यह सुनिश्चित भी नहीं किया जा सकता है जो राशि वितरित हुई है वह तय काम के लिए हुआ है. साथ ही धन का हेराफेरी, दुरुपयोग और गबन का भी जोखिम पैदा करती है. क्योंकि जिस काम के लिए पैसा लिया गया, उसके खर्च का कोई प्रमाण नहीं है.

बहुत पुराना है लापारवाही का यह मामला

कैग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि बिहार सरकार में यह कोई नई समस्या नहीं बल्कि लंबे समय से चली आ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक 70,877.61 करोड़ रुपए में से 14,452.38 करोड़ रुपए की राशि वित्त वर्ष 2016-17 या उससे भी पहले की है. यह रिपोर्ट सरकार की वित्तीय अनुशासनहीनता को सीधे तौर पर दर्शाती है.

बजट का 20% भी नहीं हुआ खर्च

कैग कि रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वितीय वर्ष 2023-24 में राज्य का कुल बजट 3.26 लाख करोड़ था, लेकिन सरकार इसका 79.92% यानी केवल 2.60 लाख करोड़ रुपए ही खर्च कर सकी. इसके अलावा बची हुई राशि 65,512.05 करोड़ में से भी राज्य द्वारा केवल 36.44% यानी 23,875.55 करोड़ भी सरेंडर किए.

राज्य पर बढ़ा कर्ज का बोझ

कैग कि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023-24 में राज्य की वित्तीय देनदारियां बीते वर्ष के मुकाबले 12.34% बढ़ी. इनमें से 59.26% देनदारियां आंतरिक ऋण (Internal Debt) की हैं. आंतरिक ऋण की शुद्ध देनदारी ₹28,107.06 करोड़ (13.51%) की वृद्धि के साथ बढ़ी है.

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