गुरु नानक जयंती आज! मध्य प्रदेश से है खास कनेक्शन? नर्मदा किनारे छिपा है ये रहस्य

पीताम्बर जोशी

आज पूरा देश आज 554 वां प्रकाश पर्व मना रहा है. वहीं नर्मदापुरम का प्रकाश पर्व अपने आप मे खास माना जाता है, दरअसल प्राचीन काल मे जिस अमिट स्वर्ण स्याही से श्री गुरुनानक जी सहित सभी सिख गुरुओं की अमर गुरु मुखी वाणी जिस ग्रन्थ के 799 अंगों (पन्नो) में दर्ज है.

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MP NEWS: आज पूरा देश आज 554 वां प्रकाश पर्व मना रहा है. वहीं नर्मदापुरम का प्रकाश पर्व अपने आप मे खास माना जाता है, दरअसल प्राचीन काल मे जिस अमिट स्वर्ण स्याही से श्री गुरुनानक जी सहित सभी सिख गुरुओं की अमर गुरु मुखी वाणी जिस ग्रन्थ के 799 अंगों (पन्नो) में दर्ज है. वह ग्रन्थ साहिब नर्मदा किनारे स्थित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा में आज भी मौजूद है.

लगभग 400 साल पहले धर्म प्रचार करते हुए होशंगाबाद (नर्मदापुरम) में आये गुरु नानक जी ने नर्मदा किनारे मंगलवारा घाट पर राजा होशंगशाह के बगीचे में काफी समय बिताया था. इस दौरान गुरुवाणी में मिले मन्त्रो को पंजाब के कीरतपुर साहिब में ग्रन्थ साहिब में अंकित किया था. यह सिख समुदाय का दूसरा हस्तलिखत ग्रन्थ है. जिसमे अमिट सवर्ण स्याही बनाने का रहस्य भी मौजूद है.

जानकारों के मुताबिक सन 1718 में ग्रन्थ का निर्माण हुआ.इसमे गुरु नानक जी द्वारा बताए गए मंत्र स्तुति पंजाबी लिपि में दर्ज है. जानकार इस स्थान को पाकिस्तान के करतारपुर से भी महत्वपूर्ण बताते हैं. 799 पन्नो के ग्रन्थ के आखिरी पन्ने में दर्ज है. जिसमे बताया गया है की स्वर्ण स्याही बनाने के लिए विजय सार की लकड़ी का पानी, कीकर की गोंद, काजोल को तांबे के बर्तन में रखकर किस तरह बनाया गया है. ग्रंथ में इस अमिट स्याही को नीम की लकड़ी की कलम से उकेरे गए थे.

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फोटो-एमपी तक

क्या है मध्य प्रदेश से खास कनेक्शन?

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गुरुद्वारा के ग्रंथि(पंडित) हरभजन सिंह ने बताया कि “गुरु ग्रंथ साहिब नर्मदापुरम में सुशोभित है. यह तकरीबन 350 से 400 साल पुराना स्वरुप है. और यह जो लिखा गया है हमारे श्रीधर्म के सांतवे गुरु हरराय साहेब जी है उनकी हजूरी के अंदर उनके सम्मुख हैं. जो संवत 1718 के अंदर कीरतपुर पंजाब के अंदर लिखा गया है. इसकी विशेषता यह है कि गुरु ग्रंथ साहिब में सोने का भी प्रयोग किया गया है. स्याही विशेष प्रकार से बनाई गई है. गोद, कीकर और रत्ती सोना, सोना भी स्याही की क्वांटिटी के हिसाब से सोना भी उसमें डाला गया है.

ग्रंथि आगे बताते हैं कि रावाल, रखनी, कीकर यह सभी सामग्रियों को तांबे के बर्तन में और जो विजय साल लकड़ी होता है. उसके पानी का प्रयोग किया गया है. तांबे के बर्तन में कुछ समय रखकर इंक तैयार की गई है और फिर हाथों से पूरा गुरु ग्रंथ लिखा गया है. ऐसे जो पुरातन ग्रंथ है जो देश के अंदर कुछ ही जगहो पर सुशोभित है. नर्मदापुरम में 1973 से ही गुरु ग्रंथ विराजमान है. गुरु ग्रंथ में 799 अंग(पेज) हैं. गुरु ग्रंथ में एक पेज की एक गिनती बताई गई है. ग्रंथ को सुखासन स्थान पर विराजमान किया गया है. विश्राम अवस्था में रहते हैं. विशेष प्रोग्राम पर विशेष प्रकाश के लिए प्रकाशमान और संगत दर्शन के लिए रखा जाता है.

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