चुनाव प्रचार छोड़ दुकानदारी करने क्यों बैठ गए कैलाश विजयवर्गीय, वजह कर देगी हैरान
Kailash Vijayvargiya: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों (MP Assembly Election) में कुछ ही दिन बाकी हैं. ऐसे में सभी दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. बीजेपी (BJP) जहां सत्ता बचाने की कोशिश कर रही है, तो वहीं कांग्रेस (Congress) सत्ता वापसी की तैयारी में है. लेकिन भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय (Kailash […]
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Kailash Vijayvargiya: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों (MP Assembly Election) में कुछ ही दिन बाकी हैं. ऐसे में सभी दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. बीजेपी (BJP) जहां सत्ता बचाने की कोशिश कर रही है, तो वहीं कांग्रेस (Congress) सत्ता वापसी की तैयारी में है. लेकिन भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) चुनाव प्रचार छोड़ अपनी पुश्तैनी दुकान संभाल रहे हैं. आइए जानते हैं क्या है वजह?
दुकानदारी करने बैठ गए विजयवर्गीय
दिवाली के दौरान कैलाश विजयवर्गीय का अलग अंदाज देखने को मिला. विजयवर्गीय एक सामान्य किराना व्यापारी की तरह दुकान पर बैठे और दुकानदारी करते हुए नजर आए. दरअसल, विजयवर्गीय दिवाली के त्यौहार के दौरान हर साल अपनी पुश्तैनी दुकान पर बैठने जरूर जाते हैं. कैलाश विजयवर्गीय इंदौर-1 विधानसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं. सभी प्रत्याशी जहां चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, वहीं विजयवर्गीय को दुकानदारी करते हुए देखकर हर कोई हैरान है.
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कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, “मैं धनतेरस से लेकर दिवाली तक रोज बैठता हूं. चुनाव की व्यस्तता के कारण कल नहीं बैठ पाया था. साल में तीन दिन जरूर बैठता हूं, दिवाली पर पूजा भी करते हैं. ये हमारी परंपरा है. मेरी माता जी कहती थीं कि दुकान हमारी माता है, जो हमारा जीवन चलाए उसका आदर करना चाहिए. इसलिए मैं कहीं पर भी जाऊं, इन तीन दिन में जितना भी समय मिलता है, मैं दुकान पर जरूर बैठता हूं. कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हमारे परिवार का पूरा खर्च दुकान माता से ही चलता है. जैसे भगवान का मंदिर पूजनीय है, वैसे ही हमारे लिए दुकान पूजनीय है.”
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पुश्तैनी है दुकान
इंदौर के नंदानगर में कैलाश विजयवर्गीय की पुश्तैनी दुकान है. विजयवर्गीय के राजनीति में कदम रखने से पहले उनके माता-पिता ने घर में किराने की दुकान डाली थी. कैलाश विजयवर्गीय की मां को सभी काकी जी के नाम से जानते थे, इसलिए दुकान का नाम काकीजी पड़ गया. ये पुश्तैनी दुकान आज भी बाजार में संचालित हो रही है. जब भी कैलास विजयवर्गीय दिवाली के त्यौहार के दौरान अपनी दुकान पर बैठने जरूर जाते हैं.
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