MP Politics: ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह लेंगे सुरेश पचौरी? क्या इस समझौते के तहत थामा था BJP का दामन?

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Rajya Sabha elections Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं. इस सीट पर बीजेपी की तरफ से कई दावेदार कतार में है.

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सुरेश पचौरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया
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Rajya Sabha elections Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं. इस सीट पर बीजेपी की तरफ से कई दावेदार कतार में है. पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से लेकर गुना से पूर्व सांसद केपी यादव भी दावेदारों की सूची में हैं. इसी बीच लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए सुरेश पचौरी भी दावेदार माने जा रहे हैं.

दरअसल साल 2019 के दौरान लोकसभा चुनाव में हार के बाद ज्योतिरादित्य सिधिंया ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. तो वहीं हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया था. राजनीतिक जानकारों की माने तो ऐसा हो सकता है कि पचौरी और बीजेपी के बीच राज्यसभा सीट को लेकर समझौता हुआ हो. ऐसा इसलिए क्योंकि पचौरी ने लोकसभा चुनाव के ऐन वक्त पहले बीजेपी का दामन थामा था. जिसका खामियाजा कांग्रेस को मध्य प्रदेश में बुरी तरह हार का उठाना पड़ा.  

 

 

कैसा रहा है पचौरी का राजनीतिक सफर?

सुरेश पचौरी ने 1972 में एक युवा कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 1984 में राज्य युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने. वह 1984 में राज्यसभा के लिए चुने गए और 1990, 1996 और 2002 में फिर से चुने गए. एक केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में उन्होंने रक्षा, कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत और पेंशन, और संसदीय मामले और पार्टी के जमीनी स्तर के संगठन कांग्रेस सेवा दल के अध्यक्ष भी रहे.

दो बार मैदान में उतरे और हारे

सुरेश पचौरी ने अपने राजनीतिक करियर में केवल दो बार चुनाव लड़ा. साल 1999 में, उन्होंने भोपाल लोकसभा सीट से बीजेपी की उमा भारती को चुनौती दी और 1.6 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए. इसके अलावा उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में भोजपुर से शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री और दिवंगत सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. 

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