कमलनाथ की हां के बाद भी क्यों नहीं मिला वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट? हो गया सबसे बड़ा खुलासा
Virendra Raghuvanshi: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने आधी रात को 88 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर सभी को चौंका दिया. लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी हुई शिवपुरी विधानसभा सीट को लेकर. कांग्रेस की इस दूसरी सूची में शिवपुरी विधानसभा का कहीं भी कोई जिक्र नहीं था. जबकि ये माना जा रहा था कि […]
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Virendra Raghuvanshi: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने आधी रात को 88 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर सभी को चौंका दिया. लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी हुई शिवपुरी विधानसभा सीट को लेकर. कांग्रेस की इस दूसरी सूची में शिवपुरी विधानसभा का कहीं भी कोई जिक्र नहीं था. जबकि ये माना जा रहा था कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की ‘कपड़ा फाड़’ लड़ाई के बाद शिवपुरी विधानसभा सीट पर घोषित उम्मीदवार केपी सिह का नाम बदलकर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट मिल जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एमपी तक ने जब स्थानीय राजनीति की पड़ताल की तो चौंकाने वाला खुलासा सामने आया.
आपको बता दें कि दो दिन पहले वीरेंद्र रघुवंशी के समर्थक कमलनाथ के बंगले पर पहुंचे और केपी सिंह को टिकट देने का विरोध किया. इसके बाद कमलनाथ का वो चर्चित बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘वे तो खुद वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट देना चाहते थे.
लेकिन ऐन वक्त पर उनका नाम कैसे बदल गया, उन्हें नहीं मालूम और इस परेशानी के लिए कार्यकर्ताओं को दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ने चाहिए, क्योंकि इस सीट का भाग्य तय करने की जिम्मेदारी उनको ही दी थी’. इसके बाद केंद्रीय चुनाव समिति की दिल्ली में हुई बैठक में भी इस सीट को लेकर काफी बवाल हुआ.
अब समझने वाली बात ये है कि जब कमलनाथ की वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट देने के मामले में हां थी तो इसके बाद भी आखिर उनको टिकट क्यों नहीं मिला, जबकि वे तो कोलारस से बीजेपी के सिटिंग विधायक हैं और ऐसी स्थिति में वे बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए थे तो जाहिर है, उनको टिकट मिलता लेकिन ऐन वक्त पर पर्दे के पीछे कुछ ऐसा हुआ, जिसके कारण वीरेंद्र रघुवंशी का पत्ता कट गया.
इन 4 प्वाइंट में समझें, कैसे हो गया वीरेंद्र रघुवंशी के साथ बड़ा खेला?
प्वाइंट नंबर 1
कांग्रेस के स्थानीय सूत्रों के अनुसार केपी सिंह वो नाम है, जिनके कारण स्थानीय राजनीति की पूरी स्क्रिप्ट बदल गई. केपी सिंह पिछोर विधानसभा सीट से 30 साल से लगातार जीतकर विधायक बन रहे हैं लेकिन 2013 से इस सीट पर बीजेपी ने प्रीतम लोधी को आगे किया और 2018 आते-आते इस सीट पर प्रीतम लोधी की हार घटकर सिर्फ दो हजार वोटों की रह गई.
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शिवपुरी में हुए परिसीमन के बाद पिछोर सीट पर 30 हजार लोधी वोट और बढ़ गए और उससे प्रीतम लोधी को फायदा होना तय था, जिसके कारण केपी सिंह ने कांग्रेस में सीट बदलने की कोशिशें शुरू कर दी और आखिरकार कांग्रेस ने उनको पहली ही सूची में शिवपुरी विधानसभा सीट पर टिकट दे दिया.
प्वाइंट नंबर 2
सूत्र बताते हैं कि केपी सिंह के संबंध हमेंशा से ही सिंधिया परिवार से अच्छे रहे हैं. दोनों कांग्रेस में ही थे. जिस गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा का चुनाव जीतते थे, उसी के अंतर्गत आने वाली पिछोर सीट से सिंधिया को हमेंशा ही बंपर वोट मिले है.
हालत ये है कि 2019 में जब सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव गुना-शिवपुरी सीट पर लड़ा था तो इस संसदीय सीट की 8 विधानसभा में से सिर्फ पिछोर ही वो सीट थी जहां से सिंधिया को अपने प्रतिद्वंदी बीजेपी कैंडिडेट डॉ. केपी यादव से अधिक वोट मिले थे. हालांकि वे ये चुनाव हार गए थे.
प्वाइंट नंबर 3
अब बात करते हैं वीरेंद्र रघुवंशी की. वीरेंद्र रघुवंशी मूल रूप से सिंधिया गुट के नेता थे. सूत्रों के अनुसार जब सिंधिया कांग्रेस में थे तो वीरेंद्र रघुवंशी को उनका कट्टर समर्थक माना जाता था. सिंधिया की वजह से ही वे एक बार विधानसभा चुनाव जीते लेकिन जब दूसरी बार उनकी बुआ और बीजेपी नेता यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव में उतरी तो वीरेंद्र रघुवंशी चुनाव हार गए. यहां से दोनों के संबंधों में खटास आ गई और वीरेंद्र रघुवंशी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ छोड़कर 2014 में बीजेपी ज्वॉइन कर ली.
सूत्रों के अनुसार सिंधिया के कट्टर विरोधी रहे बीजेपी नेता जयभान सिंह पवैया ने उनको भाजपा में शामिल कराया और 2018 के विधानसभा चुनाव में कोलारस सीट से उनको टिकट दिलाकर चुनाव भी जिता दिया. लेकिन सिंधिया के बीजेपी में आ जाने के बाद से वीरेंद्र रघुवंशी बीजेपी में साइडलाइन होने लगे और ऐसे में उन्होंने कुछ महीने पहले बीजेपी छोड़कर कमलनाथ के सहारे कांग्रेस में एंट्री पा ली.
प्वाइंट नंबर 4
सूत्र बताते हैं कि सिंधिया के जाने के बाद से शिवपुरी जिले में कांग्रेस के मजबूत नेता बनकर केपी सिंह उभरे हैं और यहां की अधिकतर विधानसभा सीटों पर उनके ही कहने से टिकट दिए गए हैं. ऐसे में केपी सिंह ने इस बात का मुखर विरोध किया कि शिवपुरी सीट से वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट मिले.
इसे लेकर कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति तक यह विवाद पहुंचा और कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को इस बात के लिए मनाया गया कि शिवपुरी सीट से केपी सिंह ही चुनाव लड़ेंगे और वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट नहीं दिया जाएगा. आखिर में यहीं फैसला हुआ.
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