मनसा देवी से वैष्णो देवी तक... उन हादसों की कहानी जब श्रद्धा बनी मौत की वजह

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Haridwar stampede: हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर से लेकर देश के अन्य धार्मिक स्थलों तक, भीड़ प्रबंधन की कमी और अफवाहों के कारण बार-बार जानलेवा भगदड़ होती रही है. प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा इंतजामों की कमी से श्रद्धालुओं की आस्था पर गहरा संकट छाया है.

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Haridwar stampede: रविवार यानी 27 जुलाई की सुबर हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में मची भगदड़ में 6 लोगों की मौत हो गई और कई लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए हैं. इस हादसे ने एक बार फिर से धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की पोल खोल दी है. 

हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है जब आस्था की भीड़ ने जानलेवा रूप ले लिया हो. पिछले कुछ सालों में ऐसे कई हादसे हो चुके हैं जिससे ये साफ पता चलता है कि इस तरह के हादसे होने के बाद भी प्रशासन सबक नहीं ले रहा है. 

त्योहारों की रौनक मातम में बदली

- बात अगर इस साल यानी 2025 ही की जाए तो पुरी में रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ बेकाबू हो गई थी. रथों के पास इतना ज्यादा धक्का-मुक्की हुआ की इसमें तीन श्रद्धालु की मौत हो गई और कई घायल हो गए थे.

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- इसी साल गोवा के एक मंदिर उत्सव में भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जहां भगदड़ में छह लोगों की जान चली गई.

- इतना ही नहीं जनवरी महीने में तिरुपति में वैकुंठ एकादशी के दौरान टिकट लेने के लिए लाइन में लगे लोगों के बीच धक्का-मुक्की हुई और छह लोगों की जान चली गई थी. 

दशकों से दोहराई जा रही है त्रासदी

2024 में हाथरस में हुए 'सत्संग' के दौरान हुआ हादसा तो आज भी लोगों के जेहन में ताजा है. वहां 121 लोगों की मौत हुई थी. ये भारत के इतिहास की अब तक की सबसे दर्दनाक भगदड़ों में से एक बन गई.

वहीं इंदौर में रामनवमी पर बावड़ी ढहने, या बिहार के मखदुमपुर मंदिर में अफवाह से मची भगदड़, हर हादसे में एक ही पैटर्न दिखता है कि कैसे बिना तैयारी के आयोजित धार्मिक कार्यक्रम, भीड़ नियंत्रण की कमजोर व्यवस्था और अफवाहों का असर लोगों की जान ले रही है. 

अफवाहें और अव्यवस्था के कारण जा चुकी है लोगों की जान 

  • साल 2013 में मध्यप्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास एक पुल के टूटने की अफवाह ने 115 लोगों की जान ले ली थी.
  • राजस्थान के जोधपुर में भी ऐसा ही हुआ, जब चामुंडा देवी मंदिर में बम की अफवाह से 250 लोग मारे गए.
  • नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश में चट्टान गिरने की अफवाह ने 162 श्रद्धालुओं की ज़िंदगी छीन ली.

इन घटनाओं से साफ है कि अफवाहें अगर भीड़ में फैल जाएं, तो उन्हें रोक पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.

2005 में 340 लोगों की जा चुकी है जान

अब तक का सबसे भयावह हादसा महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में साल 2005 में हुआ था, उस वक्त वार्षिक मेले के दौरान भगदड़ में 340 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी. यह हादसा एक नारियल फिसलने की वजह से शुरू हुआ, लेकिन खत्म हुआ सैकड़ों जानों के नुकसान पर.

क्या सबक लिया गया?

सवाल उठता है कि इन हादसों के बाद क्या कोई ठोस कदम उठाए गए? क्या हर साल दोहराई जाने वाली ऐसी त्रासदियों को टाला नहीं जा सकता? जवाब आज भी अधूरा है.

हर बार प्रशासन "जांच" और "मुआवजे" की बात करता है, लेकिन भीड़ नियंत्रण के असल उपाय जमीनी स्तर पर अक्सर नदारद रहते हैं. ना पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होती है, ना ही भीड़ को संभालने के लिए प्रशिक्षित बल तैनात किया जाता है.

श्रद्धा में सुरक्षा क्यों नहीं?

भारत में धार्मिक आयोजनों में हर साल लाखों लोग जुटते हैं, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था का स्तर अक्सर स्थानीय मेले जैसा होता है. ना मेडिकल सुविधा पर्याप्त होती है, ना आपातकालीन निकासी मार्ग तय होते हैं.

भारत जैसे धार्मिक और विविधता भरे देश में आस्था की भीड़ को नजरअंदाज करना, उसे सामान्य मान लेना अब बेहद खतरनाक हो चुका है. हर हादसे के पीछे एक ही चीख सुनाई देती है- "भीड़ को संभालो!"

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