ज्ञानवापी और मथुरा के बाद अब मध्य प्रदेश के धार की भोजशाला का होगा सर्वे, क्या है इसकी कहानी?

अभिषेक

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Dhar Bhojshala controversy: मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला पर राज्य की हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI) को भोजशाला की ऐतिहासिकता का वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वेक्षण करने के लिए वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया है. काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्णजन्म भूमि विवाद के बाद अब एमपी के धार में भी वैज्ञानिक सर्वे कराया जा रहा है. वैसे बता दें कि, 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' संस्था ने मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दिया था. जिसपर पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ASI को सर्वे करने का आदेश दिया है. धार स्थित इस भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्ष अपना दावा करते है जिसे लेकर दोनों के बीच लंबे वक्त से विवाद चला आ रहा है. इसकी वजह से कई बार तनाव की स्थिति भी बन चुकी है. अब आज हाई कोर्ट ने इसके वैज्ञानिक सर्वे को मंजूरी दे दी है. 

जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस देव नारायण मिश्र की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि, ASI की एक्सपर्ट कमेटी दोनों पक्षकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 'ग्राउंड पेनिट्रेशन रडार सिस्टम'(GPS), कार्बन डेटिंग पद्धति सहित सभी उपलब्ध वैज्ञानिक तरीकों से परिसर के पचास मीटर के दायरे में सर्वे करेगी वहीं जरूरत पड़ने पर खुदाई करा कर सर्वेक्षण करेगी. इस सर्वे की तस्वीरें और वीडीओ भी बनाए जाएंगे. ASI को 29 अप्रैल से पहले सर्वे की रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपनी है क्योंकि कौरत ने 29 अप्रैल को इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख लगाई है.  

भोजशाला को लेकर आखिर क्या है विवाद? 

धार स्थित इस भोजशाला को लेकर हिंदू संगठन का दावा है कि, यह इमारत राजा भोज कालीन है और यह मां सरस्वती का मंदिर है. हालांकि हिंदु संगठन का ये भी दावा है कि, राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का कहना है कि, वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे है. मुस्लिम इसे 'भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद' कहते है. दोनों पक्ष इस भोजशाला को लेकर अपने अलग-अलग दावे करते है जिसकी वजह से विवाद की स्थिति बनी हुई है. 

अब जानिए भोजशाला का इतिहास?

आज से करीब हजार वर्ष पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे.  

ऐसा कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस भोजशाला को ध्वस्त करा दिया था. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. फिर 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने इसके दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी. बताया जाता है कि, 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय एक में है. वैसे हाईकोर्ट में दाखिल इस याचिका में मां सरस्वती की इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है.

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