दोषियों संग मिलीभगत, शक्ति का दुरुपयोग… बिलकिस मामले में SC ने गुजरात सरकार को खूब फटकारा

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Bilkis Bano
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Bilkis Bano Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप का शिकार हुई बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने बिलकिस बानो मामले में फैसला सुनाते हुए गुजरात सरकार को जमकर फटकार लगाई. यहां तक कहा कि गुजरात सरकार ने ‘दोषियों में से एक के संग मिलीभगत’ और ‘उसके साथ मिलकर काम’ किया. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकर को खरीखोटी सुनाते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और वह फैसला भी लिया, जो उसके अधिकार क्षेत्र में था ही नहीं.

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले की तीखी आलोचना की है. इसपर विस्तार से जानने से पहले आइए जानते हैं कि बिलकिस बानो का मामला क्या था.

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5 महीने की प्रेगनेंट थी बिलकिस और गुजरात दंगे के दंगाइयों ने किया गैंगरेप

बिलकिस बानो के साथ 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गैंग रेप किया गया था. उस वक्त बिलकिस की उम्र 21 वर्ष की थी और वह पांच महीने की प्रेगनेंट थीं. दरिंदगी पर उतारू दंगाइयों की भीड़ ने बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. एक विशेष अदालत ने 21 जनवरी 2008 को बिलकिस बानो मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया और उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई. इसके बाद ये दोषी करीब 15 साल तक जेल में रहे. 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा कर दिया.

रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई पीआईएल

बिलकिस के दोषियों के रिहाई के गुजरात सरकार के इस फैसले की काफी आलोचना हुई. 25 अगस्त 2022 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ने इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की. नवंबर 2022 में खुद बिलकिस बानो ने अपने दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगाई. अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो और अन्य की याचिका पर 11 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

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फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

बिलकिस गैंगरेप मामले में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जवल भूइयां ने सोमवार को फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने गैंग रेप और हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को ‘घिसा-पिटा’ और ‘बिना सोचे-समझे’ किया गया बताते हुए रद्द कर दिया. बेंच ने बिलकिस के दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के सामने सरेंडर करने को भी कहा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलकिस मामले में दोषियों पर मुकदमा महाराष्ट्र में चलाया गया था. ऐसे में दोषियों की माफी की याचिका पर फैसला लेने का अधिकार महाराष्ट्र सरकार का बनता है, न कि गुजरात सरकार का. बेंच ने कहा कि इस मामले में कानून के शासन (Rule of law) का उल्लंघन हुआ क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास थे ही नहीं. गुजरात सरकार ने शक्तियों का दुरुपयोग किया.

सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2022 को दिए गए एक दूसरी पीठ के आदेश को भी यह कहते हुए अमान्य माना कि दोषियों ने ‘अदालत को गुमराह’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ इसे हासिल किया था. असल में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने तब गुजरात सरकार को निर्देश दिया था कि वह नौ जुलाई 1992 की अपनी नीति के मुताबिक समय पूर्व रिहाई के लिए एक दोषी की याचिका पर विचार करे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC का 2022 का आदेश धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया था क्योंकि वहां भी तथ्य छुपाए गए. जिस राज्य में ट्रायल चला, उसे छूट पर निर्णय लेने का अधिकार था, गुजरात छूट पर ये फैसला लेने में सक्षम नहीं है. दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया कि उसका अधिकार क्षेत्र गुजरात के पास है.

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