चुनाव आयोग ने जारी किया 2 फेज की वोटिंग का फाइनल डेटा, कम वोटिंग से बिहार में किसे होगा फायदा?

News Tak Desk

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Bihar Lok Sabha Election: देश में लोकतंत्र का महापर्व कहा जाने वाला लोकसभा चुनाव चल रहा हैं. देश भर में यह चुनाव सात चरणों में पूर्ण होगा. अभी तक दो चरण की वोटिंग हो चुकी है. इन दोनों चरणों में बिहार के कुल 40 सीटों में से 9 सीट पर मतदान पूरा हो चुका है. बाकी बची 31 सीटों पर अगले पांच चरण में मतदान होगा. दो फेज के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने मतदान के आंकड़े जारी किए है. डेटा की बारीकी से जांच करने पर दिलचस्प रुझान सामने आए है. इस आंकड़े के मुताबिक, 2019 के चुनाव की अपेक्षा में बिहार में इस बार कम मतदान हुआ है. आकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि, बिहार में हुई वोटिंग में करीब 2 से 6 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है.  

आपको बता दें कि, पिछले लोकसभा चुनाव के अपेक्षा में नवादा में 6 फीसदी कम मतदान हुआ है. वहीं बांका में भी 4 फीसदी कम मतदान दर्ज किया गया है. आइए समझते हैं पहले और दूसरे फेज में बिहार की 9 सीटों पर हुए वोटिंग से क्या है संकेत.  

पहले फेज की 4 सीटों का ये है आंकड़ा  

पहले चरण में हुए चुनाव में बिहार की 4 सीटों जमुई, गया, नवादा और औरंगाबाद में चुनाव हुए. इस चुनाव में जमुई में 51.25 फीसदी, गया में 52.76 फीसदी, नवादा में 43.17 फीसदी और औरंगाबाद में 50.35 फीसदी मतदान हुए. अगर हम इन आंकड़ों की तुलना 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से करें तो इन सभी चार सीटों पर 4 से 6 फीसदी तक कम मतदान हुआ है. 

पिछले चुनाव की अपेक्षा बांका में करीब 6 फीसदी कम हुआ मतदान 

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में बिहार के कटिहार, भागलपुर, किशनगंज, पूर्णिया और बांका लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ. कटिहार में 63.76 फीसदी, बांका में 54.48 फीसदी, किशंगंज में 62.84 फीसदी और पूर्णीया में 63.08 फीसदी मतदान हुए. बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव के अपेक्षा में कटिहार में 3.88 फीसदी, बांका में 4.12 फीसदी, किशनगंज में 3.54 फीसदी और पूर्णिया में 2.29 फीसदी कम मतदान हुआ. आंकड़ों से यह साफ हो रहा है कि 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बिहार में काफी कम मतदान हुआ है. 

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'स्विंग वोटर निभा सकते है महत्वपूर्ण भूमिका' 

बिहार के लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में हो रही इस कमी के सियासी मायनों को समझने के लिए हमने देश के चुनावों पर नजर रखने वाले और CSSP के फेलो प्रोफेसर संजय कुमार से बात की. मतदान में हो रही इस कमी के ट्रेंड पर संजय कुमार ने कहा कि, चुनावों में जब मतदान कम होता है तब इस बात की कोई श्योरिटी नहीं होती है कि, किस राजनैतिक दल को फायदा होगा और किसको नुकसान होगा. अगर इस चुनाव के आंकड़े देखें तो ये साफ नजर आता है कि, वोटरों के मन में उदासीनता जरूर है क्योंकि वोटिंग को लेकर चुनाव आयोग के इतने प्रयासों के बाद भी लोग मतदान में रुचि नहीं दिखा रहे है.  

प्रोफेसर संजय ने चुनाव में मतदान करने वाले वोटरों की तीन कैटेगरी भी बताई. उन्होंने बताया पहला किसी पार्टी के प्रति पूरे तरीके से समर्पित वोटर, दूसरा पिछले 2-3 चुनावों में किसी विशेष पार्टी को वोट करने वाला वोटर और तीसरा स्विंग वोटर जो हर चुनाव में अपना वोट बदलता रहता है. इसमें एक बात ध्यान देने वाली यह है कि, स्विंग वोटर किसी भी पार्टी से बंधा हुआ नहीं होता है. स्विंग वोटर मुख्यतः पार्टी के आइडियोलॉजी से जुड़ाव रखता है और जिसमें बदलाव होने पर वह भी शिफ्ट होता रहता है. उन्होंने एक प्रमुख बात ये बताई कि, चुनाव में कम मतदान होने पर स्विंग वोटर निर्णायक भूमिका निभाते है.   

कम वोटिंग का किसे मिलेगा फायदा? 

प्रोफेसर संजय कहते है कि, हम इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकते है कि, मतदान में कमी होने पर किस पार्टी को फायदा होगा और किसे नुकसान, लेकिन हम देश में चल रहे सियासत से चुनाव में वोटिंग के कमी की वजहों को समझने का प्रयास जरूर कर सकते है. वो कहते है कि, हाल के दिनों में देश खासकर बिहार में जो माहौल बना है चाहे वो इलेक्टोरल बॉण्ड को लेकर हो या महंगाई को लेकर या बेरोजगारी को लेकर सभी मुद्दे सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ ही परसेप्शन बना रहे है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 2 करोड़ रोजगार, महंगाई कम करने का वादा, किसानों की इनकम दुगुना करना आदि मुद्दों पर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन कुछ खास छाप छोड़ते नजर नहीं आई है. इससे संजय कुमार कहते है कि, इस चुनाव में बीजेपी के कमिटेड वोटरो में थोड़ी निराशा जरूर देखने को मिल रही है. 

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कम वोटिंग पर विपक्ष को लेकर संजय कुमार कहते है कि, जब चुनाव में कम मतदान हो रहा है तो इससे वर्तमान में विपक्ष को कोई खास नुकसान होता नजर नहीं आ रहा है. बल्कि कांग्रेस के INDIA अलायंस को फायदा ही हो सकता है. जैसा की हमने हाल ही में आए CSDS के आंकड़ों में देखा कि, राहुल गांधी को पसंद करने वालों और वर्तमान सरकार के रिपिट न होने के लिए वोट करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है.   

बिहार में चल सकता है तेजस्वी का जादू!

बिहार में पिछले कुछ समय से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव खासा लोकप्रिय नजर आ रहे हैं. इसके पीछे की बात भी दिलचस्प ही है. प्रदेश में RJD और जेडीयू के गठबंधन से बनी महागठबंधन सरकार ने करीब 17 महीने सरकार चलाई. तब की सरकार में डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया थे जिनमें से करीब 4 लाख से अधिक सरकारी नौकरियां दे भी दी. चुनावी रैलियों में तेजस्वी यादव अपनी सरकार में किए गए कामों को लेकर मुखर है. इसके साथ ही बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को लेकर लगातार BJP-NDA को घेर भी रहे है. तेजस्वी यादव अपनी रैली में पीएम नरेंद्र मोदी के पुराने भाषण को सुनाकर उनके किए हुए वादों को याद दिला रहे है जो पूरे नहीं हुए. इन सब से राजद-तेजस्वी यादव और INDIA गठबंधन के पक्ष में माहौल बनता नजर आ रहा है वैसे चुनाव पूर्व आए ओपिनियन पोल में भी बिहार में INDIA को फायदा होता दिख रहा था. 

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यह लेख न्यूजतक के साथ इंटर्नशिप कर रहे IIMC के डिजिटल मीडिया के छात्र राहुल राज ने लिखी है. 

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