सहारा का धंधा कैसे होता गया मंदा? सुब्रत रॉय के राइज एंड फॉल की पूरी कहानी

रूपक प्रियदर्शी

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Subrata Roy
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News Tak: सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय के बिजनेस मॉडल पर हमेशा सवाल उठते रहे. निवेशकों से लेकर पैसे लेने के तौर-तरीके से लेकर और भी बहुत सारे सवाल उसपर उठे. जांच हुई, सुब्रत रॉय को जेल जाना पड़ा. लोगों से लिए पैसे लौटाने भी पड़े. ये सब करते डूब गया सहारा श्री सुब्रत रॉय का सहारा इंडिया परिवार. बुधवार को सुब्रत रॉय का 75 साल की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया.

सहारा का बिजनेस मॉडल जैसा भी था लेकिन बहुत सालों तक बढ़िया चला. सुब्रत रॉय ने बिजनेस करते हुए उस व्यक्ति से बैर मोल लिया जिसके इशारे पर सरकार चला करती थी. 2013 में सुब्रत रॉय ने किसी इंटरव्यू में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) चेयरपर्सन सोनिया गांधी का जिक्र करते हुए कहा था कि, सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल उठाना गलती थी. उन्होंने कहा था कि उनका सोनिया गांधी पर इमोशनल कमेंट सहारा को भारी पड़ गया. 

जब 2004 में यूपीए लेफ्ट के समर्थन से सत्ता में आया, तो मैंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी(CPM) के नेताओं के सामने सोनिया गांधी के इटालिन मूल की होने पर आपत्ति जताया था. ये वो समय था जब सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती थी लेकिन उन्होंने पद लेने से मना किया था. सोनिया के बारे में ऐसे विचार के कारण सहारा को आरबीआई का क्रोध झेलना प़ड़ा. नॉन बैंकिंग बिजनेस बंद करना पड़ा. सोनिया ने भले बुरा न माना हो लेकिन उनके आसपास के लोगों ने ज्यादा बुरा माना होगा.

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सोनिया गांधी सुब्रत रॉय से गुस्सा थी या नहीं. सहारा पर लगी सरकारी बंदिशों के पीछे सोनिया गांधी थी या नहीं, इसकी कभी कोई पुष्टि नहीं हुई. 2004 से 2014 तक देश में यूपीए सरकार थी. यूपीए चेयरपर्सन होते हुए सोनिया गांधी बहुत शक्तिशाली होती गई. ये एक फैक्ट है कि यूपीए सरकार के समय सहारा इंडिया पर सरकारी एजेंसियों का शिकंजा कसता गया.

2008 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया(आरबीआई) ने सहारा को लोगों से पैसे उगाही बंद करने और 2015 तक पैसे लौटाने को कहा था. सहारा ने शेयर बाजार के रास्ते 25 हजार करोड़ जुटाए लेकिन सेबी से इजाजत नहीं ली. ये भी गलती हुई. सेबी ने ऑर्डर दिया कि 15 परसेंट सालाना ब्याज के साथ निवेशकों के पैसे लौटाने होंगे. सुब्रत रॉय पैसे लौटाने के लिए तैयार नहीं हुए. सेबी ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट की भी अवहेलना की तो जेल जाना पड़ गया. तब जाकर सहारा ने 15 हजार करोड़ रुपये सेबी के फंड में जमा कराए. 

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यूपी के गोरखपुर से की थी शुरुआत

गोरखपुर में 1978 में सुब्रत रॉय ने ऐसे लोगों से पैसे लेने शुरू किया जिनका बैंक अकाउंट नहीं होता था. सहारा के एजेंट हर रोज पैसे जमा कराते थे. देखते-देखते 10-15 साल में सहारा का काम देश भर में फैल गया. अखबार निकले, टीवी चैनल खोला, एयरलाइंस, होटल हर जगह सहारा का कारोबार फैलने लगा. भारतीय क्रिकेट टीम सहारा की जर्सी पहनती थी. बॉलीवुड सहारा श्री के इशारे पर नाचता था. 

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सहारा जिस बिजनेस में काम करती रही उसके लिए नियम था. डिपॉजिट लेने की कोई लिमिट नहीं थी. सिर्फ़ इतनी शर्त थी कि हर 100 में से 80 रुपये सरकारी बॉन्ड में लगाने हैं ताकि डिपॉजिट सुरक्षित रहें. बाक़ी 20 रुपये कंपनी जहां चाहें वहां लगा सकती थी. सहारा ग्रुप पर आरोप लगता रहा कि डिपॉजिट के 20% का इस्तेमाल अनाप-शनाप धंधे में किया. रिजर्व बैंक ने यही सोर्स बंद कर दिया था.

किसका है पैसा और कौन है निवेशक सब गुमनाम 

सहारा में किसके पैसे लगे, कौन निवेशक था, ये रहस्य आज तक रहस्य बना हुआ है. सरकार ने संसद में एक नंबर दिया था- 13 करोड़ लोगों के एक लाख करोड़ सहारा में फंसे हैं. मोदी सरकार की पहल से सहारा में फंसे लौटाने के लिए सहारा रिफंड पोर्टल बना. सिर्फ 5 लाख लोग रिफंड लेने आए. सहारा रिफंड पोर्टल के लिए 5 हजार करोड़ लौटाए जा रहे हैं

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