कर्नाटक कैबिनेट ने प्राइवेट कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए 100 फीसदी के आरक्षण पर लगाई मुहर, क्या टिक पाएगा ये?

अभिषेक

एसोचैम कर्नाटक के सह-अध्यक्ष आरके मिश्रा ने कर्नाटक सरकार पर तंज कसते हुए 'एक्स' पर लिखा, 'कर्नाटक सरकार का एक और शानदार कदम. स्थानीय आरक्षण को अनिवार्य करें और इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए हर निजी कंपनी में एक सरकारी अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा, तो यह भारतीय आईटी और वैश्विक क्षमता केंद्रों को डरा देगा. 

ADVERTISEMENT

Siddaramaiah and  DK Shivakumar
Siddaramaiah and DK Shivakumar
social share
google news

Reservation in Karnataka: कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य में नौकरियों को लेकर एक नया फरमान जारी किया है. प्रदेश कैबिनेट ने निजी क्षेत्र में ग्रुप C और D की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 100 फीसदी आरक्षण अनिवार्य करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही विधेयक में प्रबंधन पदों के 50 फीसदी और गैर-प्रबंधन पदों पर 75 फीसदी कन्नड़ लोगों की नियुक्ति का भी निर्देश दिया गया है. यह फैसला सोमवार को हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया.

कर्नाटक CM सिद्धारमैया ने मंगलवार को एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'सोमवार को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में 'सी और डी' ग्रेड पदों के लिए 100 फीसदी कन्नड़ लोगों की भर्ती को अनिवार्य बनाने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी गई.' फैसले के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'यह हमारी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ लोगों को कन्नड़ भूमि में नौकरियों से वंचित नहीं होना चाहिए और उन्हें मातृभूमि में आरामदायक जीवन बनाने का अवसर दिया जाना चाहिए.' सिद्धारमैया ने अपनी सरकार को 'कन्नड़ समर्थक' बताया और कहा कि इसकी प्राथमिकता 'कन्नड़वासियों के कल्याण की देखभाल करना' है. 

कौन होगा योग्य ये जानिए 

'कर्नाटक विधानसभा में गुरुवार को इसे लेकर विधेयक पेश किए जाने की संभावना है. जानकारी के मुताबिक, विधेयक स्थानीय उम्मीदवार को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो कर्नाटक में पैदा हुआ है, 15 साल की अवधि से राज्य में निवास करता है और स्पष्ट रूप से कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम है. उम्मीदवारों के पास कन्नड़ भाषा के साथ माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र होना चाहिए. विधेयक में कहा गया है कि, जिनके पास प्रमाणपत्र नहीं है तो उन्हें सरकार से अधिसूचित नोडल एजेंसी के कन्नड़ दक्षता परीक्षा पास करना होगा. 

इसके साथ ही अगर योग्य स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो उद्योगों और प्रतिष्ठानों को सरकार के सहयोग से तीन साल के भीतर स्थानीय उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने के लिए कदम उठाने चाहिए. इसके बाद भी अगर पर्याप्त संख्या में स्थानीय उम्मीदवार अभी भी उपलब्ध नहीं हैं, तो कंपनियां छूट के लिए आवेदन कर सकती है.  हालांकि विधेयक में स्पष्ट रूप से ये बात कही गई है कि, प्रबंधन श्रेणि की नौकरियों में 25 फीसदी और गैर-प्रबंधन श्रेणियों के लिए 50 फीसदी से कम छूट नहीं होगी. 

स्थानीय उम्मीदवारों के लिए रोजगार के लिए लागू इस कानून का पालन करने में विफलता पर 10 हजार से 25 हजार रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. 

यह भी पढ़ें...

उद्योगपतियों ने की आलोचना 

कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर बायोकॉन लिमिटेड की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ ने कहा कि, एक तकनीकी केंद्र के रूप में, हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है और हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए नौकरियां प्रदान करना है, हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में हमारी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए. उन्होंने लिखा ऐसी चेतावनी होनी चाहिए जो अत्यधिक कुशल भर्तियों को इस नीति से छूट दे.

ऐसे ही एसोचैम कर्नाटक के सह-अध्यक्ष और YULU के सह-संस्थापक आरके मिश्रा ने कर्नाटक सरकार पर तंज कसते हुए 'एक्स' पर लिखा, 'कर्नाटक सरकार का एक और शानदार कदम. स्थानीय आरक्षण को अनिवार्य करें और इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए हर निजी कंपनी में एक सरकारी अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा, तो यह भारतीय आईटी और वैश्विक क्षमता केंद्रों को डरा देगा. 

पहले भी लागू हो चुके है ऐसे कानून लेकिन टिक नहीं पाए 

साल 2022 में हरियाणा सरकार ने राज्य में 30 हजार से कम सैलेरी वाली नौकरियों में हरियाणा के युवाओं के लिए 75 फीसदी के आरक्षण को लेकर एक कानून बनाया. हालांकि हाई कोर्ट ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के निवासियों को 75 फीसदी कोटा प्रदान करने वाले कानून पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने इसके पीछे की वजह संविधान के आर्टिकल 19 से मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया था. इसके साथ ही यह भी कहा था कि, राज्य ऐसी दीवारें नहीं बना सकता जो 'संविधान की एकता की भावना और आत्मा' को प्रभावित करती हो. इस कानून के लागू होने से कृत्रिम दीवारें बनेगी जो देश के लिए सही नहीं है. अब कर्नाटक सरकार ने ऐसा ही कानून लाया है. कर्नाटक सरकार अपने इस कानून के लिए क्या दलीलें पेश करेगी और इस कानून के साथ क्या होगा ये तो देखने वाली बात होगी. 

लेलेस्ट जानकारी के मुताबिक CM सिद्धारमैया ने अपना ट्वीट डिलीट कर लिया है. इसके बाद अब ये कयास लगाए जा रहे है कि, कर्नाटक सरकार अपने फैसले पर U-टर्न ले सकती है. 

    follow on google news
    follow on whatsapp