अब भारत को मिलने वाली है ‘भारतीय न्याय संहिता’! क्या है ये और पुराने कानून से कैसे अलग?

देवराज गौर

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ipc, crpc and evidence act 2023
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The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 Bill: संसद का शीताकालीन सत्र सोमवार से शुरू हुआ है. माना जा रहा है कि इसी सत्र के दौरान मोदी सरकार संसद में ऐसे कानून लाने जा रही है जिससे अपराधिक न्याय प्रणाली (criminal justice system) की पूरी व्यवस्था ही बदल जाएगी. इसी साल मॉनसून सत्र के आखिरी दिन यानी 11 अगस्त 2023 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीन नए बिलों को पेश किया.

IPC, CrPC और एविडेंस एक्ट को बदला जाएगा

इसमें IPC (इंडियन पिनल कोड यानी भारतीय दंड संहिता,1860) को भारतीय न्याय संहिता-2023, CrPC (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसिज्योर यानी दंड प्रक्रिया संहिता, 1973) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और इंडियन एविडेंस एक्ट-1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 शामिल हैं.

IPC, CrPC और एविंडेंस एक्ट अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानून थे. ये कानून पहली बार 1860 में लागू किए गए थे. यानी 163 साल पहले. उनकी जगह नए नामों के साथ नए कानून लाए जा रहे हैं.

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क्या हैं ये तीनों कानून

क्या है IPC-

ये बताता है कि किसे गुनाह माना जाएगा या कोई कृत्य क्राइम कब बनता है. उसके अलावा उस गुनाह की सजा क्या होगी. पुराने आईपीसी में कुल 576 सेक्शन थे, जो नए बिल में घटकर सिर्फ 356 रह गए हैं. 175 सेक्शन को मॉडिफाई करने की बात कही गई है. 8 नए प्रावधान लाए जाएंगे साथ ही 22 सेक्शन को हटाया जाएगा.

क्या है CrPC-

ये गिरफ्तारी, जांच, जमानत और ट्रायल की प्रक्रिया की बात करता है. पहले इसमें 484 सेक्शन थे जो अब बढ़कर 533 सेक्शन हो जाएंगे. इसमें 9 नए प्रोविजन्स जोड़े जाएंगे. और 10 ऐसे प्रोविजन्स हैं जिन्हें हटाकर किसी और तरीके से जोड़ा गया है.

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क्या है एविडेंस एक्ट-

यह साक्ष्य की स्वीकार्यता यानी किस एविडेंस को प्रूफ माना जाएगा और किसे नहीं, साथ ही साक्ष्यों से जुड़े सारे विषयों को डील करता है. अभी 167 सेक्शन हैं, भारतीय साक्ष्य संहिता में ये बढ़ाकर 170 किए गए हैं.

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गुलामी की याद दिलाते हैं पुराने कानून- सरकार

पिछले सत्र में गृहमंत्री अमित शाह ने तीन नए बिल पेश करते समय कहा था कि हम गुलामी की सभी चीजों की समाप्त कर देंगे. नए कानूनों को लाने के पीछे के उद्देश्यों को बताते हुए सरकार ने कहा था कि पिछले 100 सालों में अपराध की प्रवृत्ति, अपराध करने का तरीका और अपराधी सबमें जमीन-आसमान का फर्क आया है. उदाहरण के तौर पर 100 साल पहले किसी ने साइबर क्राइम नाम के क्राइम की कल्पना भी नहीं की होगी. उसी तरह के लूपहोल्स को भरने के लिए इस कानून की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही थी.

मुख्य सवाल यह है कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में इस तरह के बदलाव से क्या हासिल होगा? क्या न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी? क्या कोर्ट में मामले तेजी से निपटाए जाएंगे?

इन कानूनों में तारीख पे तारीख से निजात की बात कही गई है. 90 दिन में जांच और ट्रायल खत्म होने के साथ 180 दिन में हर हाल में जांच समाप्त करने की बात कही गई है. चार्ज फ्रेम होने के 30 दिनों के भीतर ही फैसला सुनाने की भी बात शामिल है. वहीं फैसले को 7 दिन के अंदर ऑनलाइन मोड में भी उपलब्ध कराने का नियम है.

1- आईपीसी की जगह लेने वाले प्रावधानों में राजद्रोह के कानून खत्म हो जाएंगे. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में ही देशद्रोह वाले कानूनों को स्थगित कर दिया था.

2- संगीन मामलों में फॉरेंसिक टीम का क्राइम सीन पर जाना जरूरी.

3- मॉब लिंचिंग के लिए 7 साल की जेल का प्रावधान

4- नाबालिग के साथ रेप में मौत की सजा का प्रावधान. गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल या आजीवन कारावास का प्रावधान.

5- दाऊद इब्राहिम जैसे मोस्ट-वांटेड की गैर-मौजूदगी में मुकदमा चलाने का प्रावधान.

6- एक केस में ज्यादा से ज्याद तीन साल में सजा करवाने का प्रावधान

कानून के जानकारों का मानना है कि इन कानूनों के आने से सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़े करीब 69,000 मामलों, हाई कोर्ट्स में पड़े करीब 60 लाख से अधिक मामलों और जिला न्यायालयों में करीब 4 करोड़ से ज्यादा मामलों के निपटने में तेजी आएगी.

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