सिंधिया पर पहली बार इतना फायर हुईं प्रियंका, सिंधिया संग कैसे रहे गांधी परिवार के रिश्ते?

देवराज गौर

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राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया
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Gandhi-Scindia Family Relations: कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी 15 नवंबर (बुधवार) को मध्यप्रदेश के दतिया में चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंची. रैली को संबोधित करते हुए प्रियंका ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर जमकर हमला बोला. प्रियंका ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया उन लोगों के काम करते हैं जो उन्हें महाराज बुलाते हैं. जब तक सिंधिया को कोई महाराज नहीं बुलाता तब तक वह किसी का काम नहीं करते. हम तो किसी को महाराज नहीं बुला पाएंगे. उनका (सिंधिया) का कद तो छोटा है लेकिन उनका अहंकार बहुत बड़ा है. प्रियंका यहीं नहीं रुकी उन्होंने सिंधिया के परिवार को भी घेरा. प्रियंका ने कहा कि सिंधिया ने अपने परिवार की परंपरा को बखूबी निभाया है. सिंधिया ने विश्वासघात किया है.

इस पर सिंधिया भी चुप नहीं रहे. प्रियंका के इस बयान पर चुनावी मौसम में सिंधिया का भी जवाब आना था, आया भी. सिंधिया ने एक्स पर पोस्ट करते हुए प्रियंका गांधी को भी उनके परिवार को घेरकर तीखा जवाब दिया. सिंधिया की प्रतिक्रिया आप यहां पढ़ सकते हैं…

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कैसे रहे हैं सिंधिया संग गांधी परिवार के रिश्ते

देश की सियासत में गांधी परिवार जहां आजादी के पहले से ही सक्रिय था, तो वहीं सिंधिया परिवार आजादी के बाद राजनीति में कूदा. सिंधिया और गांधी परिवार के रिश्ते तीन पीढ़ी पुराने हैं.इसकी शुरुआत ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया और इंदिरा गांधी से हुई. इंदिरा और विजयाराजे एक दूसरे को दुश्मन मानती थीं. वहीं इंदिरा के बेटे राजीव और विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया ने दोनों परिवारों के रिश्तों में नजदीकियां बढ़ी. तो तीसरी पीढ़ी राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन रिश्तों को और गहरा किया. लेकिन एकबार फिर अपनी दादी की ही तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए, तो दोनों परिवारों के बीच राजनैतिक तल्खियां ऐसे बढ़ने लगीं कि इसमें परिवारों को शामिल किया जाने लगा.

इंदिरा और विजयाराजे के संबंध

1957 के लोकसभा चुनावों से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ग्वालियर-चंबल में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ज्योतिरादित्य के दादाजी और विजयाराजे के पति जीवाजीराव सिंधिया को अप्रोच किया. लेकिन, उनकी राजनीति में रुचि न होने के कारण विजयाराजे ने कांग्रेस के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतीं. कांग्रेस में उनकी जमी नहीं. कुछ समय बाद वह जनसंघ में शामिल हो गईं. 1962 का चुनाव उन्होंने जनसंघ के टिकट पर ही लड़ा. 1975 में इंदिरा ने जब इमरजेंसी लगाई तो विजयाराजे ने इसका जमकर विरोध किया. विजयाराजे को दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया. ग्वालियर में उनके महल पर भी सरकारी एजेंसी घुस गईं और सामान की तलाशी के साथ-साथ जब्ती भी की.

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विजयाराजे को इंदिरा की राजनीति से दूर रहने की शर्त भी माननी पड़ी. कारण था कि उनके बेटे माधवराव को इमरजेंसी में जेल न जाना पड़े. इससे इंदिरा और विजयाराजे के बीच कटुता और बढ़ गई. विजयाराजे इससे इतना आहत हुईं थीं कि उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव इंदिरा गांधी के खिलाफ ही लड़ा, लेकिन उनकी बुरी हार हुई.

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राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया के संबंध

राजीव और माधवराव के संबंध इंदिरा और विजयाराजे के ठीक उलट थे. जितनी इंदिरा और विजयाराजे में दुश्मनी थी उतनी ही दोस्ती राजीव और माधवराव में थी. माधवराव और राजीव एक साथ दून स्कूल में पढ़े थे. माधवराव ने अपना पहला चुनाव 1971 में जनसंघ के टिकट पर लड़ा था.

इमरजेंसी के दौर में जब उनकी मां विजयाराजे जेल में थीं उस समय माधवराव नेपाल में अपनी ससुराल में आराम से समय काट रहे थे. कुछ समय बाद माधवराव के संबंध अपनी माँ के साथ बिगड़ने लगे और वह अपनी माँ की मर्जी के बगैर कांग्रेस में शामिल हो गए. 1984 में इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और माधवराव उनके भरोसेमंद सलाहकारों में शामिल हो गए. 1984 का चुनाव ग्वालियर से अटलबिहारी के खिलाफ माधवराव सिंधिया ने राजीव गांधी के कहने पर ही लड़ा था.

राजीव उन्हें मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाना चाहते थे. लेकिन 1991 में राजीव की हत्या कर दी गई. उसके बाद भी माधवराव गांधी परिवार के साथ उसी भरोसे के साथ बने रहे. 2001 में एक विमान हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में एंट्री ली.

राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के संबंध

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहली बार अपनी पिता के देहांत के बाद खाली हुई उनकी पारंपरिक सीट गुना से 2002 में उपचुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे. इसके दो साल बाद राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री हुई. वह अपनी पिता की पारंपरिक सीट अमेठी से पहली बार लोकसभा पहुंचे. ये दोनों भी एक साथ दून स्कूल से पढ़े थे. राजनीति में आने के बाद दोनों की दोस्ती ने परवान चढ़ना शुरू किया.

राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो ज्योतिरादित्य उनकी कोर टीम का हिस्सा थे. राहुल ने पार्टी में नए चेहरों को आगे लाने की योजना बनाई तो ज्योतिरादित्य इसमें भी सबसे आगे थे. संसद में भी ज्योतिरादित्य राहुल के साथ बैठते थे और उनका नाम राहुल के सबसे भरोसेमंद के तौर पर लिया जाता था. कई बार दोनों में मतभेद होने के बाद प्रियंका बड़ी बहन की भूमिका के साथ दोनों में सुलह कराती थीं.

लेकिन एकबार फिर समय का पहिया घूमा और ज्योतिरादित्य ने पलटी मारकर बीजेपी का हाथ थाम लिया. ज्योतिरादित्य मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. बात नहीं बनी. 2020 में 22 विधायकों के साथ सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस सरकार गिर गई.

इसके बाद तक भी दोनों एक दूसरे पर हमले करने से बचते चले आए. लेकिन राजनीति में ये सब ज्यादा देर तक नहीं चलता. जब मानहानि के केस में राहुल को सांसदी गंवानी पड़ी तो कांग्रेस ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किए. इसे लेकर ज्योतिरादित्य ने राहुल को स्वार्थी राजनीतिज्ञ कहा. और अब प्रियंका ने ज्योतिरादित्य और उनके परिवार को विश्वासघाती करार दिया है. इस पर ज्योतिरादित्य ने भी प्रियंका को पार्ट-टाइम राजनीतिज्ञ घोषित कर दिया है.

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