राहुल गांधी ने पीएम मोदी को लिख दी ये कैसी चिट्ठी , क्या जवाब भी मिलेगा?

रूपक प्रियदर्शी

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Rahul Gandhi News: आगामी लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ‘भारत जोडो न्याय यात्रा’ निकाले हुए हैं. राहुल की यह यात्रा कांग्रेस की किस्मत बदलने के लिए आखिरी मास्टर स्ट्रोक है. यात्रा मणिपुर से शुरू हुई जो उत्तर पूर्व, बंगाल, बिहार होते हुए अभी छत्तीसगढ़ में है. यात्रा के बीच से ही 10 फरवरी को राहुल गांधी ने पीएम मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी में उन्होंने, बंगाल के मनरेगा मजदूरों को पैसे दिलाने की बात लिखी.

राहुल गांधी ने मोदी को भेजी चिट्ठी में लिखा, ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत मेरी यात्रा पश्चिम बंगाल से गुजर रही थी. इस दौरान ‘पश्चिम बंगाल खेल मजदूर समिति’ के मनरेगा श्रमिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने श्रमिकों को होने वाली समस्याओं से मुझे अवगत कराया. मनरेगा की केंद्रीय धनराशि रुक जाने के कारण मार्च 2022 से लाखों भाईयों और बहनों को उनके काम से वंचित कर दिया गया है.’

पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में भी राहुल गांधी ने ये आरोप भी लगाया कि, ‘काम पाने वाले परिवारों की संख्या साल 2021-22 में 75 लाख परिवार से गिरकर 2023-24 में केवल 8 हजार परिवार तक रह गई है. राहुल गांधी ने बंगाल में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मनरेगा मजदूरों से बातचीत की थी. मजदूरों ने राहुल से अपना दर्द बांटा था कि, उनको मजदूरी का पैसा नहीं मिल रहा है. राहुल गांधी ने केरल से लेकर झारखंड तक जहां मौका मिला उन्होंने मनरेगा में काम करने वालों से बात की.

मनरेगा पर रहती है कांग्रेस की खास नजर

मनरेगा योजना पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी हमेशा नजर रखते हैं. मनरेगा में काम घटने से लेकर बजट घटने तक राहुल गांधी, सरकार को जगाए रखते हैं. 2019 के बाद से संसद में सोनिया गांधी ने जिन एकाध मौके पर भाषण दिया हैं, वो मनरेगा के लिए ही दिया है. कांग्रेस मनरेगा को अपनी योजना मानती है. यह योजना यूपीए वन सरकार में मजदूरों को फिक्स रोजगार, फिक्स मजदूरी की गारंटी के लिए शुरू हुई थी. कहा जाता है कि, 2009 चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की बड़ी वजह मनरेगा योजना ही बनी थी.

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ममता भी मनरेगा के बहाने केंद्र पर साधती रही हैं निशाना

मनरेगा में कांग्रेस और ममता बनर्जी कॉमन एजेंडा है. दोनों पार्टियों का अलायंस टूटने के बाद मनरेगा पर राहुल और ममता बनर्जी दोनों एक लाइन पर ही बोल रहे हैं. मनरेगा मजदूरों के पैसों के पेमेंट के लिए बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की भी मोदी सरकार से लड़ाई चल रही है. बंगाल में मनरेगा के 21 लाख मजदूर हैं जिनका पेमेंट मार्च 2002 से पेंडिंग है. ममता का आरोप है कि, तीन बार पीएम को चिट्ठी लिखने और कई मुलाकातों में अनुरोध करने के बाद भी सरकार ने पेमेंट रोका हुआ है. मनरेगा मजदूरों के हक की आवाज बुलंद करने के लिए ममता बनर्जी धरना पर भी बैठी. उन्होंने एलान किया है कि, अगर मोदी सरकार ने पैसे नहीं भेजे, तो 21 फरवरी तक उनकी सरकार मजदूरों को हक का पैसा देगी.

अब मनरेगा के बारे में जान लीजिए

यह योजना साल 2005 में शुरू हुई जिसे पहले नरेगा कहा जाता था. इसका नाम साल 2010 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा किया गया. यह दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजनाओं में से है. ग्रामीण विकास मंत्रालय इसके लिए नोडल मिनिस्ट्री है जो राज्य सरकारों से साथ मिलकर इस योजना को चलाती है. इसमें मजदूर को साल भर में कम से कम 100 दिन के मजदूरी की गारंटी मिलती है. सरकारी डेटा के मुताबिक करीब 15 करोड़ मजदूर इस योजना से जुड़े हैं. इस योजना की सबसे बड़ी सफलता ये मानी जाती है कि, इससे बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से बाहर आ पाने में कामयाब हुए. मनरेगा में मजदूर काम तो राज्यों में करते हैं लेकिन मजदूरी केंद्र सरकार देती है.

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2005 में UPA सरकार में शुरू दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना 100 दिन की मजदूरी की गारंटी 15 करोड़ मजदूर योजना से जुड़े

2014 चुनाव में यूपीए सरकार की विदाई हो गई. नई सरकार की कमान नरेंद्र मोदी ने संभाली. पीएम मोदी ने मनरेगा योजना को बंद नहीं किया लेकिन मनरेगा का डंका भी नहीं पीटा. कांग्रेस को मनरेगा का क्रेडिट तो नहीं दिया बल्कि जब भी मौका मिला उन्होंने उलाहना ही दिया. मोदी राज में भी 10 साल से मनरेगा चल रही है लेकिन सरकार पर कभी मनरेगा का बजट घटाने, कभी काम न होने या कभी मजदूरों का पैसा रोकने जैसे आरोप लगते ही रहते हैं.

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