महिलाओं को मेंस्ट्रुअल लीव मिलनी चाहिए या नहीं? स्मृति ईरानी के जवाब के बाद तेज हुई चर्चा

अभिषेक

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Paid Menstrual leave: महिलाओं को उनके मासिक धर्म (मेंस्ट्रुअल) के समय पेड लीव यानी सवैतनिक छुट्टी मिलनी चाहिए या नहीं? देश-दुनिया में लंबे समय से चल रहा यह विमर्श एक बार फिर केंद्र बिंदु में है. देश की संसद में इसे लेकर पिछले दिनों एक बहस दिखी. असल में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज झा ने इसे लेकर संसद में सवाल किया. इसके जवाब में स्मृति ईरानी ने जो कहा अब उसपर चर्चा हो रही है. आइए इस पूरे मामले को विस्तार से जानते हैं.

पहले मनोज झा के सवाल पर जानिए स्मृति ईरानी का जवाब

बुधवार को मनोज झा ने संसद में सरकार से पूछा कि सरकार ने ऐसे कौन से कदम उठाए हैं कि नौकरियों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान निश्चित संख्या में पेड लीव मिलें. स्मृति ईरानी ने इस सवाल पर अपनी निजी राय बताते हुए टिप्पणी की. स्मृति ने कहा कि महिला के तौर पर मैं जानती हूं कि पीरियड्स और मेंस्ट्रुएशन साइकिल परेशानी की बात नहीं हैं. उन्होंने आगे कहा कि पीरियड्स के दौरान ऑफिस से लीव मिलना महिलाओं से भेदभाव का कारण बन सकता है. कई लोग जो खुद मेंस्ट्रुएट नहीं करते हैं, लेकिन इसे लेकर अलग सोच रखते हैं. हमें उनकी सोच को आधार बनाकर ऐसे मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए जिससे महिलाओं को समान अवसर मिलने कम हो जाएं.

अब स्मृति ईरानी के इसी बयान की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा चल रही है. कोई उनकी बातों का समर्थन तो कोई विरोध कर रहा है.

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देश में पहली बार लालू यादव की सरकार ने दिया था मेंस्ट्रुएशन के दौरान पेड लीव

सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश या पीरियड लीव कार्यस्थल पर वेतन के साथ छुट्टी की बात है. यह महिला कर्मचारियों को पीरियड के समय होने वाले दर्द या परेशानी पर काम से छुट्टी लेने की सवैतनिक अनुमति देती है. यानी वो परेशानी में छुट्टी पर भी रहें और इसका उन्हें वेतन भी मिले. ये मांग नई नहीं है. भारत में पहली बार साल 1992 में एसएल भगवती बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के स्वास्थ्य और देखभाल के लिए मासिक धर्म अवकाश के पक्ष में बात कही थी. साल 1992 में बिहार की तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार मासिक धर्म को लेकर नीति लेकर आई थी, जिसमें महिलाओं को हर महीने दो दिन की छुट्टी का प्रावधान था. इसके अलावा केरल में प्रतिमाह एक दिन, उत्तर प्रदेश में प्रतिमाह एक दिन और दिल्ली में भी इसे लेकर प्रावधान किए गए हैं.

वर्तमान में देश में स्विगी, जोमैटो, बायजु, जयपुरकुर्ती.कॉम, ओरिएंट इलेक्ट्रिक जैसी कंपनीयां भी मासिक धर्म पर सवैतनिक अवकाश दे रही है.

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दुनिया के देशों में इसे लेकर क्या है नियम

दुनिया के अन्य देशों में मासिक धर्म को लेकर अलग-अलग नियम हैं. स्वीडन साल 2016 में मासिक धर्म के लिए छुट्टी के साथ वेतन देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था. साल 2017 में इटली ने भी मासिक धर्म के लिए अवकाश देना शुरू कर दिया. अफ्रीकी देश जाम्बिया ने भी साल 2015 में मासिक धर्म के लिए महीने में एक दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की. फिलीपींस ने साल 2019 में इसके लिए महीने में दो दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की. एशियाई देश जापान में महिलाओं को मासिक धर्म के समय छुट्टी के लिए हर महीने एक से तीन दिन की छुट्टी का प्रावधान है. दक्षिण कोरिया भी इसके लिए महीन में एक से तीन दिन की छुट्टी देता है. इंडोनेशिया महीने में दो और ताइवान साल में तीन दिन की छुट्टी देता है.

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हमने इस मुद्दे पर महिलाओं के बीच काम करने वाली वूमेन एक्सपर्ट्स से बात की.

महिलाओं को लेकर काम करने वाली सामाजिक एक्टिविस्ट रंजना कुमारी ने बताया कि मैं पीरियड में छुट्टी को लेकर कोई यूनिवर्सल नियम बनाने के खिलाफ हूं, लेकिन हां महिलाओं को अगर पीरियड में समस्या होती है तो उन्हें कैजुअल लीव का प्रावधान जरूर होना चाहिए. यानी उन्हें आसानी से छुट्टी मिलनी चाहिए. अगर ऐसा कोई नियम बनता है तो निश्चित रूप से समाज के लिए नई पहल होगी.

स्मृति ईरानी के इस बयान पर कि अगर महिलाओं को ऐसी छुट्टी दी जाती है तो उन्हें समाज में अलग नजर से देखा जाएगा पर उन्होंने कहा कि, ‘ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. सबके घरों में महिलायें है और सभी को पीरियड के बारे में पता है. मैं नहीं मानती की इससे समाज में कोई भेदभाव जैसी चीज होगी.’

इसी मुद्दे पर हमने ‘मुहिम’ ऑर्गेनाइजेशन की फाउंडर और डायरेक्टर स्वाती से बात की. स्वाति ने यूपी के वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच मासिक धर्म के दौरान रखी जाने वाली स्वच्छता के प्रति उन्हें जागरूक करने में काफी काम किया है. उन्होंने हमें बताया कि, ‘हमने अपनी संस्था में 2017 से पीरियड डे/लीव लागू किया हुआ है. मेरा ऐसा मानना है कि अगर पीरियड में छुट्टी को लेकर कोई नियम बनता है तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए.‘ उन्होंने आगे कहा कि, ‘ये बात बिल्कुल ही तर्कहीन है कि पीरियड लीव मिलने पर महिलाओं को देखने के नजरिए में परिवर्तन होगा. हम सभी को पता है कि महिलाओं को मैटरनिटी लीव पहले से मिल रही है तो क्या उन्हें इसकी वजह से समाज में अलग नजरिए से देखा जाता है? ऐसा बिल्कुल नहीं है.’

स्वाति कहती हैं, ‘आज हम समाज और संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए ऐसे मुद्दों पर हम तर्क-वितर्क करने लगते है जबकि महिलाओं में ये नेचुरल प्रोसेस है. सभी महिलाओं के लिए पीरियड का अनुभव अलग-अलग होता है. किसी को समस्या कम तो किसी को ज्यादा होती है. कभी तो ऐसी सिचूऐशन होती है कि वो कहीं आने-जाने में भी असमर्थ हो जाती है. हम इस मामले का जनरलाइजेशन नहीं कर सकते क्योंकि सबके लिए सिचूऐशन एक समान नहीं होती.’

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