काशी तमिल संगमम से कैसी सियासत साधना चाहते हैं पीएम मोदी और बीजेपी?
2014 के चुनाव के बाद से बीजेपी ने देश के उन हिस्सों में भी खुद को मजबूत किया जहां उसकी मौजूदगी नगण्य थी. जैसे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के राज्य. पर बीजेपी दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ बाकी प्रदेशों में दमदार उपस्थित दर्ज नहीं करा पाई है.
Kashi Tamil Sangamam: वाराणसी में आयोजित हुआ काशी तमिल संगमम का दूसरा संस्करण कई मामलों में चर्चित रहा. इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि कार्यक्रम में पीएम नरेन्द्र मोदी ने हिंदी में भाषण दिया और तमिल श्रोताओं के लिए इसका तमिल में लाइव ट्रांसलेशन हुआ. ये हुआ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) भाषिणी की मदद से. तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण भारत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के कई पहलुओं का कार्यक्रम है. यह पिछले साल यानी 2022 से ही शुरू हुआ है. इसका मुख्य उद्देश्य उत्तर एवं दक्षिण भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को करीब लाना, हमारी साझा विरासत की समझ विकसित करना और इन क्षेत्रों के लोगों के बीच संबंध को और मजबूत करना है. पिछले साल हुए इस कार्यक्रम में तमिलनाडु से 2400 लोगों को वाराणसी ले जाया गया था. जिसके बाद उन्हें अयोध्या और प्रयागराज भी ले जाया गया था. इस बार कई छात्र-छात्राओं को वाराणसी ले जाया गया है. यह शिक्षा मंत्रालय सहित अन्य मंत्रालयों और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से आयोजित किया जाता है. IIT मद्रास और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) इस कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसियां हैं.
पर क्या इस कार्यक्रम का सिर्फ सांस्कृतिक महत्व है? ऐसा नहीं है. इस कार्यक्रम के पीछे एक सियासी डिजाइन भी है जो दक्षिण भारत की पॉलिटिक्स को उत्तर भारत की उस पॉलिटिक्स से कनेक्ट करने की है जहां बीजेपी ने खुद को अजेय बना रखा है. खासकर उस वक्त में जब विपक्ष लगातार यह नैरेटिव बना रहा है की दक्षिण भारत में तो पीएम मोदी का जलवा नहीं चलता.
आइए इसे समझते हैं.
बीजेपी के लिए क्यों अहम है यह आयोजन?
भारतीय जनता पार्टी की शुरुआत से लेकर अबतक की जर्नी देखें तो यह एक ऐसे राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन की उपज रही जिसमें दक्षिण भारत की उपस्थिति कुछ खास नहीं है. 2014 के चुनाव के बाद से बीजेपी ने देश के उन हिस्सों में भी खुद को मजबूत किया जहां उसकी मौजूदगी नगण्य थी. जैसे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के राज्य. पर बीजेपी दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ बाकी प्रदेशों में दमदार उपस्थित दर्ज नहीं करा पाई है. ऐसे में खासकर 2024 के चुनावों और अपनी आगे की सियासत को देखते हुए बीजेपी की महात्वाकांक्षा पूरे भारत में मजबूत होने की है. इसलिए बीजेपी इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए दक्षिण के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहती है.
पार्टी के नेताओं ने इस बात को भी स्वीकार किया कि यह तमिलनाडु में बीजेपी और मतदाताओं के बीच एक पुल बनाने की कोशिश है. पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि यह दक्षिण खासकर तमिलनाडु में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बीजेपी की विचारधारा के बारे में गलतफहमी को दूर करने के लिए भी है.
इससे पहले सौराष्ट्र तमिल संगमम का भी आयोजन कर चुकी है बीजेपी
उत्तर-दक्षिण अंतर को पाटने के लिए केंद्र ने अप्रैल में सौराष्ट्र तमिल संगमम का भी आयोजन किया था. शिक्षा मंत्रालय के तहत भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष, शिक्षाविद चामू कृष्ण शास्त्री के अनुसार, तमिलनाडु के 12 जिलों विशेष रूप से मदुरै, कुंभकोणम और सलेम में सौराष्ट्र के 12 लाख से अधिक लोग रहते हैं.
बीजेपी इससे पहले भी तमिलनाडु में सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी रही है. इसके लिए वह कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर फोकस कर रही है. विपक्ष मोदी सरकार के इस कार्यक्रम पर नजर बनाए हुए है. तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके की सहयोगी (सीपीआई-एम) ने राज्य सरकार से इस आयोजन को रोकने का आग्रह किया था और आरएसएस में कॉलेज के छात्रों का सुनियोजित ढंग से शामिल करने का आरोप भी लगाया था.