बिरसा मुंडा कौन हैं, ये आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण क्यों

देवराज गौर

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बिरसा मुंडा एक स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे. आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं.
बिरसा मुंडा एक स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे. आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं.
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बिरसा मुंडाः आज लोक नायक बिरसा मुंडा का जन्मदिन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची के बिरसा मुंडा म्यूजियम में जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा मोदी सरकार 2021 में ही कर चुकी है.

बिरसा मुंडा एक युवा स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे. जिन्होंने 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल फूंका.

केवल 25 साल की उम्र में जीवन को अलविदा कहने वाले बिरसा मुंडा का जन्म खूंटी जिले के उलिहातू गांव में 1857 की क्रांति के 18 साल बाद 1875 में हुआ. बिरसा आदिवासी समुदाय की मुंडा जनजाति से आते थे. उनका शुरुआती जीवन बिहार और झारखंड के आदिवासी इलाकों खासकर छोटा नागपुर पठार के इलाके में बीता.

अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने के लिए अपनाया ईसाई धर्म, फिर समझा खेल

बिरसा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा साल्गा में अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में प्राप्त की. जयपाल नाग के कहने पर ही बिरसा को जर्मन मिशन स्कूल में दाखिले के लिए ईसाई धर्म अपनाना पड़ा. कुछ समय बाद उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ दिया. बाद मे बिरसा ने अपने भीतर ईसाइयत का प्रभाव महसूस किया. अंग्रेज शासकों और ईसाई मिशनरियों ने जो धर्म परिवर्तन का जाल फैलाया था, बिरसा उसे समझ चुके थे.

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उन्होंने अपने ही नाम से ‘बिरसाइत’ धर्म शुरू किया. बिरसाइत से बड़ी संख्या में बिरसा और ओरांव समुदाय की आदिवासी जनजातियां जुड़ने लगीं. यह ईसाई मिशनरियों के लिए उनके धर्म परिवर्तन प्रोग्राम के लिए एक चुनौती बन गया.

1886 से 1890 के बीच बिरसा ने अपना ज्यादा समय चाईबासा में गुजारा. वहां आदिवासी क्रांतिकारी नेताओं के संपर्क में आने से बिरसा का मन औपनिवेशक अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों के अंग्रेजों के खिलाफ धधक उठा. बिरसा मुंडा ने धर्म परिवर्तन, जल-जंगल और जमीन के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. बिरसा का पूरा आंदोलन 1895 से 1900 के बीच पूरी तेजी से चला.

3 मार्च 1900 को बिरसा मुंडा को अंग्रेजी पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया जब वह चक्रधरपुर के जामकोपाई जंगल में अपनी आदिवासी गुरिल्ला सेना के साथ सो रहे थे. 9 जून 1900 को 25 वर्ष की छोटी उम्र में रांची जेल में हैजा के कारण उनकी मृत्यु हो गई.

बिरसा मुंडा के जाते ही अंग्रेजों ने उनके आंदोलन को कुचल दिया लेकिन वह आदिवासियों में आत्मसम्मान और अपना-देश, अपना-राज की भावना जगा गए. बिरसा का प्रभाव इस तरह था कि उनके जाने के बाद आदिवासियों ने उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया.

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बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर आदिवासी वोटर्स को साधने की कोशिश?

पीएम मोदी बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी के उलिहातु जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं. पीएम मोदी ने खूंटी से ही केंद्र सरकार की विकासशील भारत संकल्प यात्रा को हरी झंडी दिखाई है. यह यात्रा केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार प्रसार और लोगों के फीडबैक को लेने के लिए निकली है. विपक्ष को इस यात्रा से दो मुख्य आपत्तियां हैं. पहली की इसे पांच राज्यों के चुनाव के दौरान निकाला जा रहा है. इस यात्रा में रथ प्रभारी केंद्र सरकार के अधिकारी हैं. विपक्ष की दूसरी आपत्ति यह है की अधिकारियों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है.

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पांच राज्यों में खासकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटों का इंपोर्टेंस बहुत है. ऐसा कहा जा रहा है कि बिरसा मुंडा जयंती पर यात्रा शुरू कर और उनके जन्मस्थान से आदिवासी वोटर्स को लुभाने की कोशिश की जा रही है.

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