क्या बीजेपी की पसमांदा मुस्लिम सियासत को नुकसान पहुंचाएंगे सांसद रमेश बिधूड़ी के आपत्तिजनक बोल?

देवराज गौर

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बीजेपी की मुस्लिम पॉलिटिक्स को नुकसान पहुंचाएगा बिधुड़ी का बयान
बीजेपी की मुस्लिम पॉलिटिक्स को नुकसान पहुंचाएगा बिधुड़ी का बयान
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पिछले दिनों संसद में भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के मुस्लिम सांसद कुंवर दानिश अली को लेकर आपत्तिजनक बातें कहीं. इसको लेकर भारी राजनीतिक विवाद शुरू हुआ और फिलहाल मामले की जांच संसद की प्रिविलेज कमेटी को सौंपी गई है. अब चर्चा इस बात की हो रही है कि एक मुस्लिम सांसद पर बीजेपी सांसद की आपत्तिजनक टिप्पणियां कहीं बीजेपी की मुस्लिम राजनीति पर भारी न पड़ जाएं.

खबर क्यों है?

कुंवर दानिश अली अमरोहा से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मुस्लिम सांसद हैं. दरअसल बीजेपी पिछले कुछ समय से पसमांदा मुस्लिमों की राजनीति कर रही है. इससे बीजेपी यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि विपक्ष की तरफ मुसलमानों का जो वोट जाता है तो विपक्ष ने भी कोई मुसलमानों का हित नहीं किया है. बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों के मुद्दे को बड़ी प्रमुखता से उठाती रही है. बीजेपी यह बताने की कोशिश करती रही है कि मुस्लिमों में भी पसमांदा मुस्लिमों की हालत बहुत खराब है. पिछली सरकारों ने इन्हें सिर्फ वोट बैंक समझा है इनका भला नहीं किया है. मोदी सरकार में यह भला हुआ है.

अब देखना यह है कि क्या बिधुड़ी का यह बयान बीजेपी की मुसलमानों को अपने पाले में करने की कोशिश को नुकसान पहुंचायेंगा या फिर यह बयान बीजेपी के कोर वोटर को कंसोलिडेट (एकजुट) करने में मदद करेगा.

यहां विस्तार से जानिएः

रमेश बिधुड़ी के बयान के बाद से इस पर राजनीतिक हलकों में चर्चा गरम है. इस बयान के क्या मायने हैं औऱ इसका दूरगामी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा हम इसे ही जानने की कोशिश करेंगे.

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समय-समय पर मुसलमानों को रिझाने की कोशिश करती रही है बीजेपी:

भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुसलमानों को लेकर अपनी रणनीति में काफी समय से बदलाव किया है. समय-समय पर संघ प्रमुख भी ऐसे बयान देते देखे गए हैं जहां पर मुसलमानों को साथ लेकर चलने की उन्होंने अपील की है. कई मौकों पर संघ प्रमुख मोहन भागवत यह भी कह चुके हैं कि “मुसलमानों के बिना हिंदुत्व नहीं है”. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आनुसांगिक संगठन ‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ भी मुस्लिम समुदाय के भीतर पिछले डेढ़ दशक से पहुंच बनाने में लगा है.
संघ प्रमुख मोहन भागवत कई मौकों पर कहते मिले हैं कि अब संघ कार्यकर्ताओं को मुस्लिम इलाकों में जाना चाहिए एवं उनसे निकटता बढ़ानी चाहिए। मुस्लिमों के साथ संवाद कर उनके साथ अपने विचार शेयर करने चाहिए. संघ प्रमुख अक्सर यह कहते भी दिखे हैं कि “धर्मातंरण के मुद्दे को किसी कम्युनिटी के खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि मिसगाइडेड यूथ के तौर पर लेना चाहिए”.

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क्यों बदल रही है बीजेपी की रणनीतिः

दरअसल बीजेपी की विशेष नज़र पसमांदा मुसलमानों पर है, विश्लषकों के मुताबिक जो उत्तर प्रदेश में हुए 2022 के उपचुनाव में बीजेपी को जिताने में अहम साबित हुए थे. बीजेपी अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को अपने पाले में लाने की कोशिश के साथ-साथ अब पसमांदा मुसलमानों को भी अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही है. पसमांदा मुसलमान मुस्लिम समुदाय में पिछड़े माने जाते हैं. पसमांदा शब्द उर्दू और फारसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है पिछड़ा या पीछे धकेल दिए गए लोग. पसमांदा शब्द का सबसे पहले उपयोग भारत में 1998 में अली अनवर अंसारी द्वारा किया गया था जब उन्होंने “पसमांदा मुस्लिम महाज” नामक संगठन की नींव डाली थी. यह देश भऱ के पसमांदा मुसलमानों का एक संगठन है.

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क्यों अहम है पसमांदा मुसलमान:

एक अनुमान के मुताबिक भारत के कुल मुसलमानों का करीब 80-85 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं. विश्लेषकों के मुताबिक बचे हुए 15-20 फीसदी उच्च मुस्लिम ही माने पठान, मुगल, शेख इत्यादि ही शिक्षा, कारोबार और नौकिरियों में सबसे ज्यादा हैं. पसमांदा मुस्लिमों को हिंदू दलितों की तरह ही मुस्लिम समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यह बीजेपी के लिए एक बड़े वोट बैंक का काम कर सकता है.

मुस्लिम वोटों में बीजेपी की क्या है स्थिति:

बीजेपी के पास इस समय 17वीं लोकसभा में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. इसे लेकर बीजेपी की समय-समय पर खासी आलोचनी होती रही है. लेकिन बावजूद इसके बीजेपी का मुस्लिम वोट बैंक पिछले चुनावों की तुलना में बढ़ा है. सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 9 फीसदी वोट मिला था जो 2019 में बढ़कर करीब 20 फीसदी हो गया. वहीं दूसरी तरफ अगर लोकसभा सीट के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें जहां देश की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी (करीब 4 करोड़) रहती है वहां बीजेपी को 2017 में 7 फीसदी वोट मिला था जो 2022 में बढ़कर 8 फीसदी हो गया था.

क्या कहते हैं विश्लेषक:

यूपी तक से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आस मोहम्मद कहते हैं कि मुसलमानों का एक पक्ष जो बीजेपी की तरफ झुक गया था चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना हो या अन्य कई योजनाएं जिनका मुस्लिम वर्ग को सीधा लाभ मिला था वह अपने अस्तित्व की बात आने पर निश्चित तौर पर छिटक जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि राजनेताओं द्वारा उस भाषण व क्लिप को चुनावों में खूब भुनाया जाएगा.

दानिश अली के अमरोहा से होने कारण जब उनसे पूछा गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को इस बयान के कारण क्या नुकसान उठाना पड़ सकता है के जबाब में आस मोहम्मद बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है, बीजेपी को मुसलमानों का जो 2-4 प्रतिशत वोट जाता दिखाई दे रहा था, वो शायद अब न मिले.

एक अन्य विश्लेषक का मानना है कि ‘ऐसे नेता और प्रधानमंत्री मोदी जो मुस्लिम वोटबैंक पर जोर दे रहे थे, ऐसे बयान उन वोटर्स के लिए और उन वोटर्स के मन में बीजेपी के प्रति दूरी पैदा करने वाले बन सकते हैं’. साथ ही बीजेपी जो ये संभावना बनाती नजर आ रही थी कि वह मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ेगी और विपक्ष को कमजोर करेगी इसकी संभावना कम ही नजर आ रही है.

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