छत्तीसगढ़ का खजुराहो: 11वीं सदी का भोरमदेव मंदिर, रहस्य और रोमांच के साथ नक्काशी का अद्भुत नमूना
Chhattisgarh Tourism: छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहलाने वाला भोरमदेव मंदिर 11वीं सदी की नक्काशी, नागर शैली और रहस्यमय कामकला के लिए प्रसिद्ध है. जानिए कैसे पहुंचें और क्या देखें.
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Chhattisgarh Tourism: भोरमदेव मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि 11वीं–12वीं सदी के कल्चुरी-नागवंशी शाहियों की कलाकारी और सांस्कृतिक दृष्टि की प्रतिमूर्ति है. छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले (कवार्धा) स्थित यह मंदिर ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहलाता है, क्योंकि इसकी चारों ओर बनी मूर्तियों में काम-शिल्प, काम-कामुकता और जीवन की विविध झलक स्पष्ट रूप से उभरती है. भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित, आज भी यह कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है.
इतिहास और वास्तुकला की झलक
भोरमदेव मंदिर की नींव सन् 1089 में नागवंशी नरेश गोपाल देव ने रखी थी, और यह नागर शैली में निर्मित है, जिसमें प्रमुख रूप से चार मंजिलों वाला संरचना और शिखर शामिल है. यहां की विशेषता इसकी शांत और धार्मिक गणेश-शिव से परे काम-कामुक शिल्पकला है, जो भगवान और मानव जीवन के अद्वितीय सह-अस्तित्व को दर्शाती है. इस कारण इसे ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है.
घूमने का सही समय
- अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त है जब मौसम सुहावना रहता है और मंदिर क्षेत्र हरियाली से भरा होता है.
- मार्च में आयोजित ‘भोरमदेव महोत्सव’ भी देखने लायक होता है.
- मानसून में (जुलाई–सितंबर) भी प्रकृति बहुत सुंदर होती है, लेकिन रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं.
कैसे पहुंचें?
- सड़क मार्ग: रायपुर से भोरमदेव की दूरी लगभग 125 किमी है. रायपुर > कवर्धा > भोरमदेव रूट से टैक्सी या बस द्वारा पहुंचा जा सकता है.
- रेलवे स्टेशन: निकटतम स्टेशन राजनांदगांव (130 किमी) या रायपुर जंक्शन (125 किमी) है.
- हवाई मार्ग: सबसे नजदीकी एयरपोर्ट स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर (120 किमी) है.
प्राकृतिक व सांस्कृतिक ओराजन
70 वर्ष पहले की खुदाई में यही मंदिर ग्रामीण वन-सीमा वाले उच्च पहाड़ी पहाड़ियों में मिला; जिसमें आसपास का मनोरम दृश्य, गहरी हरियाली और मंदिर के ताल-तालाब की शांत झील इस स्थल को पर्यटन और अध्ययन दोनों के लिए उपयुक्त बनाते हैं . निकटवर्ती Maikal Hills जंगलों में ट्रेकिंग विकल्प, भोरमदेव वाइल्डलाइफ रिज़र्व में वन्यजीवन पर्यटक निश्चित रूप से मंत्रमुग्ध कर देते हैं.
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यहां क्या देखें?
- भोरमदेव मंदिर की दीवारों पर बनी सैकड़ों शिल्प-आकृतियां.
- मंडवा महल और छेरकी महल, जिनमें ग्रेनाइट पत्थरों की दुर्लभ नक्काशी है.
- भोरमदेव वाइल्डलाइफ सेंचुरी, जहां ट्रेकिंग और बर्ड वॉचिंग की सुविधा.
- मैकल पहाड़ियों के घने जंगलय
- तालाब व प्राकृतिक झीलें, जो सूर्यास्त के समय बेहद सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती हैं.
कहां रुकें?
- भोरमदेव मंदिर के पास वन विभाग द्वारा संचालित Forest Guest Houses और Eco Huts उपलब्ध हैं (ऑनलाइन बुकिंग जरूरी).
- कवर्धा शहर (20 किमी दूर) में बजट और मिड-रेंज होटल्स भी है.
क्या खाएं?
- छत्तीसगढ़ी व्यंजन: चीला, फरा, ठेठरी, अइरसा, अंगाकर रोटी
- स्थानीय गांवों में देसी महुआ मिठाइयां और सल्फा शरबत भी लोकप्रिय हैं.
- मंदिर के पास मानसून और उत्सव के समय अस्थायी फूड स्टॉल्स लगते हैं.
टिप्स और सुझाव
- मंदिर परिसर के भीतर शालीन कपड़े पहनें, यह एक धार्मिक स्थल है.
- गाइड लें ताकि मंदिर की कलाकृतियों को सही तरह से समझा जा सके.
- ट्रेकिंग या जंगल भ्रमण के लिए हल्के जूते और पानी की बोतल जरूर रखें.
- मोबाइल नेटवर्क कुछ जगहों पर कमजोर हो सकता है.