मध्य प्रदेश के जंगलों में यहां मिला 10 हजार साल पुराना ‘खजाना’, ये जान इतिहासकार भी हैरान
STR के जंगलों में पहाड़ियों पर इतिहास के कई खजाने छुपे हुए हैं, जो कि अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. अब सतपुड़ा से 10 हजार साल पुरानी रॉक पेंटिग्स मिली हैं.
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MP News: मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के नर्मदापुरम जिले में स्थित सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (Satpuda Tiger Reserve) पूरे देश में प्राकृतिक सौंदर्य और बाघों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है. देशभर से सैलानी सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में जंगल सफारी के लिए पहुंचते हैं. STR के जंगलों में पहाड़ियों पर इतिहास के कई खजाने छुपे हुए हैं, जो कि अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. अब सतपुड़ा से 10 हजार साल पुरानी रॉक पेंटिग्स मिली हैं.
सतपुड़ा क्षेत्र में मांसाहारी और शाकाहारी वन प्राणियों की खोज की जा रही है. खोजकर्ताओं को करीब 10 हजार वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि गणना दल को करीब 10 हजार वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं. पनारा मैप में गणना कर रहे बिहार से आए वनरक्षक रोहित कुमार, बाली ढीकू, विनय सराठे की टीम को पनारा बीट में एक पहाड़ी पर बनी रख पेंटिंग देखने को मिली हैं.
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100 स्थान से अधिक जगह पर है रॉक पेंटिंग
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अंदर पहाड़ियों पर करीब 100 से अधिक स्थानों पर रॉक पेंटिंग बनी हुई है. चूंकि सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में पहले गांव बसे हुए थे. इस कारण यह रॉक पेंटिंग आसानी से देखने को मिल जाती थी. लेकिन अब यह कोर एरिया वन्य प्राणियों के लिए संरक्षित हो गया है, इसलिए इन पहाड़ियों तक पहुंच पाना आम आदमी के लिए अब संभव नहीं है. क्योंकि अब यह टाइगर जोन है. उन्होंने बताया कि चूरना गुंदी में जो रॉक पेंटिंग है वह सबसे ज्यादा साफ और सुंदर है. उसमें हाथी घोड़े पर बारात को दर्शाया गया है, लेकिन यहां तक पहुंच पाना संभव नहीं है. क्योंकि यह एक गुफा नुमा पहाड़ी के अंदर है और उसमें मधुमक्खियों के छत्ते काफी संख्या में हैं.
रॉक पेंटिंग में मिलते हैं कई सालों के प्रमाण
सतपुड़ा की वादियों में पहाड़ों पर उकेरी गई रॉक पेंटिंग में जंगल में रहने वाले लोगों के जनजीवन को दर्शाया गया है. वर्षों पहले जो लोग रहते थे, पहले जीवन-यापन किस तरह होता था, वह हाथी घोड़े की सवारी करते थे. चित्र में हाथ में भाला, बरछी, तीर-कमान लेकर जानवरों का शिकार किया करते थे. ज्यादातर पेंटिंग में शिकार करते हुए दिखाया गया है. इन पेंटिंगों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कई सालों के प्रमाण है जो आज भी सतपुड़ा की पहाड़ियों में संजोए हुए हैं.
प्रागैतिहासिक कॉल की है रॉक पेंटिंग
प्राध्यापक व इतिहास की व्याख्याता डॉ हंसा व्यास ने बताया कि सतपुड़ा के जंगल की वादियों व पहाड़ियों पर जो रॉक पेंटिंग जिसे शैलचित्र भी कहा जाता है, वे प्रागैतिहासिक काल यानी लगभग 10 हजार वर्ष पुराने प्रतीत हो रहे हैं. इतिहास की गाना अनुसार मध्यांशम काल ईसापूर्व 2500 से लेकर 8 हजार वर्ष तक का माना जाता है. इसे मेसालिथिक काल भी कहा जाता है. विषय वस्तु और चित्रों की शैली के आधार पर यह प्रागैतिहासिक काल के माने जा सकते हैं.
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