गर्मी में राहत देने वाले 'रूह अफजा' की क्या है कहानी? 118 साल बाद अब क्यों हो रहा है विवाद?
दिल्ली की गलियों में 118 साल पहले शुरू हुए रूह अफजा की कहानी दिलचस्प है. मन को सुकून, शरीर को ठंडक देने वाले इस शरबत की मिठास गर्मियों में सुकून और तरोताजा कर देती थी. लेकिन ये शरबत अब तीखे विवादों में आ गया है, जब योग गुरु बाबा रामदेव ने इसे 'शरबत जिहाद' का नाम दे डाला है.
ADVERTISEMENT

न्यूज़ हाइलाइट्स

118 साल पुराना रूह अफ़ज़ा अब विवादों में, रामदेव ने कहा- ये है 'शरबत जेहाद'!

गर्मी में राहत देने वाला शरबत अब सोशल मीडिया पर जंग की वजह बन गया!

हमदर्द बनाम पतंजलि: ट्रेडमार्क से शुरू हुआ विवाद, अब धर्म और राजनीति तक पहुंचा!
गर्मी की तपिश में एक गिलास ठंडा रूह अफजा... मन को सुकून, शरीर को ठंडक देता है. यह शरबत जो गर्मियों में हर घर की शान होता है. लेकिन हाल ही में ये मीठा शरबत तीखे विवादों में आ गया, जब योग गुरु बाबा रामदेव ने इसे 'शरबत जिहाद' का नाम दे डाला. साथ ही इसकी कमाई पर सवाल उठाए. उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर रूह अफजा खरीदोगे तो मस्जिद, मदरसे खुलेंगे... क्या है 118 साल पुरानी इस ड्रिंक की कहानी...
रूह अफजा न सिर्फ अपने स्वाद से देश और दुनिया पहचान रखता है, बल्कि भारत और पाकिस्तान की साझा विरासत का प्रतीक भी है. आइए, जानते हैं इस लाल शरबत की दिलचस्प कहानी, जिसने दिलों को जीता और बंटवारे को भी मात दी...
एक हकीम का सपना
साल 1906. दिल्ली की गलियों में भीषण गर्मी. लाल कुआं बाजार में हकीम हफीज अब्दुल मजीद का छोटा सा दवाखाना था, जिसका नाम था हमदर्द. गर्मी से परेशान लोग डिहाइड्रेशन और थकान की शिकायत लेकर आते थे. हकीम साहब ने सोचा, क्यों न एक ऐसी दवा बनाई जाए जो शरीर को ठंडक दे और पोषण भी. इस तरह यूनानी चिकित्सा पद्धति और ज्ञान से 1907 में हकीम ने फल, जड़ी-बूटियां, गुलाब, केवड़ा और खसखस को मिलाकर एक गाढ़ा लाल सिरप तैयार किया.
यह भी पढ़ें...
जिसका नाम रखा- रूह अफजा, रूह यानि आत्मा ओर अफजा मतलब ताजगी देने वाला. यह दवा धीरे-धीरे लोगों की पसंदीदा शरबत बन गई. लोग इसे बोतलों में भरकर ले जाने लगे.
लोकप्रियता का सफर
रूह अफजा की लोकप्रियता लगातार बढ़ी तो हकीम हफीज अब्दुल मजीद को लगा कि इसकी पैकिंग और लेबलिंग करानी जाए. उस दौर में मुंबई में मिर्जा नूर अहमद ये काम करते थे. 1910 में रूह अफजा के लिए रंग-बिरंगा लेबल बनाया, जो मुंबई के बोल्टन प्रेस में छपा. खास बात ये है कि हमदर्द कंपनी ने आज तक इस लेबल को बदला नहीं और यह आज भी जस का तस है. रूह अफजा जल्दी ही हर घर की पसंद बन गया. इफ्तार की मेज हो या गर्मी की दोपहर, इसका गिलास हर किसी को भाने लगा. 1920 तक हकीम मजीद की छोटी सी दुकान 'हमदर्द दवाखाना' एक बड़ा प्रोडक्शन हाउस में तब्दील हो चुका था.
बंटवारा और नई उड़ान
1922 में हकीम मजीद का निधन हो गया. इसके बाद उनकी पत्नी रबीआ बेगम और उनके बेटों ने हमदर्द की कमान संभाली. 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे ने कई कहानियां बांट दीं, लेकिन रूह अफजा को नहीं. बड़े बेटे अब्दुल हमीद ने भारत में हमदर्द को संभाला, जबकि छोटे बेटे मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए. कराची में उन्होंने नया कारखाना शुरू किया. पाकिस्तान में वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर ही हमदर्द कंपनी स्थापित की गई. पाकिस्तान में केवड़े की कमी के चलते सईद ने गुलेबहार और सिट्रोन फूलों का इस्तेमाल किया, जिसने वहां भी इसकी लोकप्रियता बढ़ाई. दोनों देशों में रूह अफजा की चमक बरकरार रही.
बंटवारे ने रूह अफजा को नुकसान के बजाय फायदा पहुंचाया. दोनों देशों में इसकी मांग बढ़ी. यह इफ्तार पार्टियों से लेकर गर्मियों की महफिलों तक हर जगह छा गया. बाद में बांग्लादेश में भी हमदर्द की शाखा खुली, जिसे 1971 में वहां के लोगों को सौंप दिया गया.
रूह अफजा से जुड़ी अनूठी बातें
रूह अफजा आज 40 से ज्यादा देशों में बिकता है. फालूदा, लस्सी, शरबत या कुल्फी, हर रूप में यह लोगों का पसंदीदा है. इसकी खासियत सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान की साझा संस्कृति भी है. अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 में अफगान शरणार्थी इसे बिना पानी मिलाए सीधा पी जाते थे, और कुछ लोग तो कार के इंजन को ठंडा करने के लिए भी इसका इस्तेमाल करते थे!
रूह अफजा को लेकर विवाद भी खूब हुए
2024 में रूह अफजा पर उसके स्वास्थ्य संबंधी दावों को लेकर भी सवाल उठे. खासतौर पर बांग्लादेश में यह आरोप लगा कि इसके लेबल पर दिखाए गए हर्बल और फ्रूट एक्सट्रैक्ट्स की पुष्टि नहीं हो सकी. इसके अलावा, इसके अधिक शुगर कंटेंट को लेकर डॉक्टरों ने सावधानी बरतने की सलाह दी है. 2022 में हरियाणा के मानेसर स्थित हमदर्द फैक्ट्री में 50% हिंदू आरक्षण की मांग को लेकर स्थानीय स्तर पर विवाद हुआ. आरोप लगे कि फैक्ट्री की ज़मीन हिंदू किसानों की थी और वहां हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है. हालांकि हमदर्द ने इन आरोपों से साफ इनकार किया.
Tirumala Temple: कौन हैं पवन कल्याण की रसियन पत्नी अन्ना लेझनेवा, जिन्हें तिरुपति में कराना पड़ा मुंडन?
'शरबत जिहाद' का आरोप
हाल ही में रूह अफजा उस समय विवादों में पड़ गया बाबा रामदेव ने दावा किया कि हमदर्द (रूह अफजा की कंपनी, जो एक वक्फ संस्था है) की कमाई मस्जिदों और मदरसों में जाती है. उन्होंने इसे 'शरबत जिहाद' कहकर तंज कसा और अपने गुलाब शरबत को बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा, "शरबत के नाम पर एक कंपनी है जो शरबत तो देती है लेकिन शरबत से जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है. बनवाने दीजिए, उनका वो मज़हब है."
"लेकिन आप यदि वो शरबत पिएंगे तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे. और पतंजलि का गुलाब का शरबत पीते हैं, तो गुरुकुल बनेंगे. ये शरबत जिहाद, लव जिहाद, वोट जिहाद चल रहा है ना? ऐसे शरबत जिहाद भी चल रहा है. आपको ये शरबत जिहाद से बचना है."
रामदेव के बयान से मची हलचल
रामदेव के इस बयान ने सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट्स तक हलचल मचा दी. हमदर्द 1948 से वक्फ के तौर पर काम करता है, जिसका मकसद दान और सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देना है. हमदर्द ने भी इस पर सफाई दी कि उनकी संस्था एक वक्फ ट्रस्ट जरूर है, लेकिन उनके अस्पताल, यूनिवर्सिटी और सेवाएं सभी समुदायों के लिए खुली हैं. लेकिन ये सफाई बाबा रामदेव का नाम लेकर नहीं दी गई है.
इस मामले में बवाल और बढ़ गया है. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने योग गुरु बाबा रामदेव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. रामदेव के शरबत ‘जेहाद’ वाले बयान को दिग्विजय ने देश में धार्मिक सद्भाव के माहौल को बिगाड़ने वाला बताया. उन्होंने भोपाल के स्थानीय थाने में एक शिकायत दर्ज कराई और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग की है.