ओडिशा में कांग्रेस के गोल्डन टाइम के कद्दावर नेता की हुई घर वापसी! कौन हैं गिरिधर गमांग?

रूपक प्रियदर्शी

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Giridhar Gamang
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Giridhar Gamang: गिरिधर गमांग ओडिशा के उस जमाने में सीएम थे जब प्रदेश का नाम उड़ीसा हुआ करता था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे, लेकिन गमांग की सबसे ज्यादा चर्चा तब हुई जब उनके एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी. किस्सा ये है कि 1999 में 13 महीने वाली वाजपेयी सरकार को बहुमत का संकट था. लोकसभा सांसद रहते हुए कांग्रेस ने गिरिधर गमांग को उड़ीसा का सीएम बनाया था. सीएम रहते हुए लोकसभा में गमांग ने वोट डाला था. विवाद तो बहुत हुआ लेकिन कुछ भी नियम के खिलाफ नहीं हुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी के पक्ष में 269 वोट पड़े थे. खिलाफ में 270 वोट पड़े थे. एक्स्ट्रा एक वोट गमांग का माना गया था.

गिरिधर गमांग अब एकबार फिर से चर्चा में आए है, क्योंकि 80 साल की उम्र में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में वापसी की है. कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन और ओडिशा कांग्रेस के इन्चार्ज अजॉय कुमार ने गिरिधर गमांग को करीब 9 साल बाद कांग्रेस में शामिल कराया. गिरिधर गमांग अपने साथ पत्नी हेमा गमांग, बेटे शिशिर गमांग को लेकर कांग्रेस में लौटे हैं. गमांग बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में लौटे हैं, ये कहते हुए कि बीजेपी के पास कांग्रेस जैसा विजन है ही नहीं. हालांकि 2015 में बीजेपी में जाने के बाद पिछले साल बीआरएस में शामिल हो गए थे लेकिन लौटकर कांग्रेस में ही आना पड़ा.

कौन हैं गिरिधर गमांग?

गमांग ओडिशा में कांग्रेस के गोल्डन टाइम वाले नेता है. गमांग ओडिशा में कांग्रेस की आखिरी सरकार के सीएम थे. उनके बाद कांग्रेस और सत्ता में 36 का ऐसा रिश्ता बना कि 5 चुनावों से कांग्रेस सिर पीट रही है लेकिन बार-बार नवीन पटनायक बीजेडी की सरकार बना लेते हैं. इस बार भी ऐसा न हो, इसके लिए कांग्रेस कई स्टेप्स ले रही है. गमांग एंड फैमिली की कांग्रेस में वापसी ऐसी ही स्टेप्स की पहली स्टेप है.

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एक वोट से सरकार गिराने के अलावा भी गिरिधर गमांग के नाम कई रिकॉर्ड हैं. 43 साल कांग्रेस में रहे. 1972 से 2004 के बीच 9 बार ओडिशा की कोरापुट लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव जीते. 1977 की जनता लहर में भी गमांग अपनी सीट निकाल ले गए. 1999 में सीएम होने के कारण लोकसभा चुनाव नहीं लड़े तो पत्नी हेमा गमांग को लड़ाकर भी कोरापुट की सीट अपने कब्जे में रखी. कांग्रेस से 11 बार उनको चुनाव का टिकट मिला जिसमें से 9 में उन्होंने जीत दर्ज की. 11 साल तक इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकारों में मंत्री रहे. 1999 में उनको सीएम बनाकर प्रमोशन दिया गया था लेकिन एक साल भी सीएम नहीं रह सके. साइक्लोन में 10 हजार लोगों की मौत के बाद सरकार चली गई. तब लोगों का जो गुस्सा कांग्रेस को झेलना पड़ा उसकी कीमत पार्टी आज तक चुका रही है.

ओडिशा में 2000 से नवीन पटनायक हर चुनाव जीत रहे हैं. 1996 का लोकसभा चुनाव आखिरी चुनाव था, जिसमें कांग्रेस ने प्रदेश की 21 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 16 सीटें जीती थी. 1998 में 5 सीटे जीतने के बाद हर चुनाव में कांग्रेस 1-2, 1-2 सीटें जीतती रही. अभी भी लोकसभा में कांग्रेस का एक ही सांसद है.

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ओडिशा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस

ओडिशा में कांग्रेस अपने हाल पर बरसों तक रही लेकिन इस बार गंभीर कोशिश शुरू हुई है. लोकसभा चुनावों के लिए जब खरगे-राहुल ने राज्यों की कांग्रेस से बैठकें शुरू की तो उसमें भी ओडिशा का नंबर आया. राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा लेकर ओडिशा पहुंचने वाले हैं. 4 जिलों में 4 दिन में 341 किलोमीटर की यात्रा चलेगी राहुल की. ओडिया के लिए ओडिशा-इस नारे के साथ कांग्रेस ने नवीन पटनायक सरकार के खिलाफ कैंपेन शुरू किया है.

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ओडिशा में भारत जोड़ो यात्रा

कांग्रेस का भरोसा उन राज्यों को लेकर बढ़ा है जहां वो कभी सत्ता में होती थी लेकिन जनाधार खत्म हो गया. कर्नाटक, तेलंगाना भी ऐसे ही राज्य थे लेकिन कांग्रेस ने दोनों राज्यों में जोरदार वापसी की. ओडिशा में कांग्रेस के लिए इसलिए भी संभावना वाला राज्य है जहां बीजेपी आज तक ताकतवर नहीं बन पाई. जनता ने कभी आजमाया नहीं. राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के सोए कैडर को जगाने का काम करेगी. अगर चुनाव में जनता ने नवीन पटनायक की विदाई का मन बनाया तो बीजेपी से कहीं ज्यादा चांस कांग्रेस का बन सकता है.

 

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