उत्तर प्रदेश में अलायंस के बाद भी इलेक्शन नहीं लड़ेगी AIMIM, जानिए आखिर क्या हैं ओवैसी का प्लान?

रूपक प्रियदर्शी

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PDM Alliance in UP: उत्तर प्रदेश में बाहुबली डॉन मुख्तार अंसारी की मौत का वक्त लगभग वही है जब असदुद्दीन ओवैसी यूपी की राजनीति में रीलॉन्चिंग के लिए कदम रख रहे हैं. मुख्तार अंसारी की जेल में मौत पर ओवैसी को जितना अफसोस है उतना सवाल भी है. अफसोस इतना किम मुख्तार अंसारी के परिवार का गम बांटने औवैसी हैदराबाद से गाजीपुर पहुंच गए. मुख्तार अंसारी के बेटे उमर को गले लगाया. 40 मिनट तक परिवार के साथ बिताया और इफ्तार किया. फिर सोशल मीडिया पर लिखा, 'इंशा अल्लाह इन अंधेरों का जिगर चीरकर नूर आएगा.'  

चुनाव से पहले मुख्तार अंसारी की मौत को चुनावों से जोड़कर भी देखा जा रहा है. अखिलेश यादव, मायावती, गैर-बीजेपी पार्टियों ने मुख्तार की मौत का जश्न नहीं बल्कि शोक मनाया. इसी बीच मौका देख ओवैसी ने भी मौत पर सवाल उठाकर यूपी के मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश की. 28 मार्च को मुख्तार की मौत हुई. 31 मार्च को AIMIM और अपना दल कमेरावादी ने अलायंस कर लिया. ओवैसी मुसलमानों की, पल्लवी दलित-पिछड़ों की राजनीति करती हैं. दोनों ने मिलकर यूपी में PDM यानी पिछड़ा, दलित और मुस्लिमों का तीसरा मोर्चा बनाया है जो बीजेपी के NDA और सपा-कांग्रेस के INDIA खिलाफ लड़ेगा. PDM मोर्चे में राष्ट्र उदय पार्टी और प्रगतिशील मानव समाज पार्टी जैसे छोटे दल भी शामिल हैं.

ओवैसी-पल्लवी ने बनाया PDM अलायंस 

वैसे यूपी के ओपिनियन पोल की बात करें तो सभी एकतरफा बीजेपी के पक्ष में जाते दिख रहे है. अगर अनुमान बदलते है तो कुछ सीटें सपा-कांग्रेस निकाल सकती है. वैसे तो पल्लवी पटेल और ओवैसी ने अभी तक यूपी में कुछ कमाल किया नहीं है लेकिन दोनों के साथ आने से खलबली जरूर मची है. माना जा रहा है कि, पल्लवी और ओवैसी दलित-पिछड़े-मुसलमानों का वोट बांटेंगे जिसका फायदा बीजेपी ले जाएगी. ओवैसी बसपा के जरिए यूपी में रीलॉन्चिंग की कोशिश में थे लेकिन मायावती तैयार नहीं हुई. फिर ओवैसी को ऑफर पल्लवी पटेल ने दिया.हैदराबाद जाकर मिली तब जाकर दोनों का अलायंस फाइनल हुआ. 

अलायंस के बाद भी चुनाव नहीं लड़ रही AIMIM 

ओवैसी-पल्लवी में अलायंस बनने के बाद कहानी में ट्विस्ट ये है कि, यूपी में अलायंस करने के बाद भी AIMIM चुनाव नहीं लड़ रही है. चुनाव से पहले 20 सीटों पर लड़ने की बात हो रही थी. लेकिन अचानक से मुरादाबाद लोकसभा सीट से AIMIM नेता वकी रशीद ने निर्दलीय नामांकन भरने के बाद वापस ले लिया. यूपी AIMIM ने 20 सीटों की लिस्ट भेजी थी लेकिन ओवैसी ने हां-ना कुछ नहीं किया. ओवैसी की पार्टनर पल्लवी पटेल पहले ही अपने उम्मीदवार उतार चुकी हैं. अब सवाल उठेंगे कि, जब चुनाव लड़ना नहीं था तो हैदराबाद से आकर उन्होंने ऐसी पार्टी से अलायंस क्यों किया जिसका दायरा ही फूलपुर, मिर्जापुर, वाराणसी के आसपास तक सीमित है. हालांकि इसके पीछे ओवैसी कह रहे हैं कि,हमारा मकसद बड़ा है.

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AIMIM का विस्तार कर रहें ओवैसी

हैदराबाद से बाहर निकल चुकी AIMIM तेलंगाना, बिहार, महाराष्ट्र में लोकसभा की तीन सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है. अलायंस हुआ भी तो पहले दौर का नामांकन खत्म होने के बाद. 19 अप्रैल को पहले दौर में जिन 8 सीटों पर चुनाव होने हैं वहां मुसलमानों की आबादी ठीकठाक बताई जाती है. लेकिन AIMIM सिंबल से कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं है. ओवैसी की नजर उस वोट बैंक के लिए विकल्प बनना है जो समाजवादी पार्टी के लिए वोट डालता रहा है. ओवैसी का दावा है कि, पिछले चुनाव में 90 परसेंट मुसलमान वोट सपा को गए लेकिन इससे मुसलमानों का कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कहा सपा में मुसलमान बस दरी बिछाने के लिए रह गए हैं. 

पिछले चुनाव में क्या रहा है AIMIM का प्रदर्शन?

यूपी में AIMIM पिछले दो विधानससभा चुनावों से लॉन्च है लेकिन आधा-आधा परसेंट वोट काटने के अलावा कुछ विशेष कमाल नहीं कर पाई है. 2017 के विधानसभा में 38 उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमें से कोई नहीं सका. सभी उम्मीदवारों को मिलाकर 2 लाख वोट हासिल हुए. 2022 के चुनाव में कुछ बेहतर स्थिति थी. फिर 38 सीटों पर लड़े लेकिन इस बार वोट साढे चार लाख यानी आधा परसेंट हो गया. वैसे इन दोनों चुनावों में जीत बीजेपी की हुई थी.

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2019 में महाराष्ट्र की औरंगाबाद लोकसभा सीट जीतने और 2020 में बिहार में 5 विधानसभा सीटें जीतने के बाद ओवैसी हर उस राज्य में पहुंच जाते हैं जहां चुनाव होते हैं. मुसलमानों के कारण एंट्री हलचल पैदा करती है. करीब 10 राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है AIMIM लेकिन कहीं कोई जोरदार हाजिरी लगी नहीं. 

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